अनजाने में या भूल से किए हुए पापों का प्रायश्चित कैसे करें – पौराणिक कथा?

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दोस्तों आज के समय में हर कोई चाहे हम हो आप जाने अनजाने में कई ऐसी गलतियां हो जाती है जिन्हे सनातन धर्म में पापों की दृष्टिकोण में रखा जाता है जैसे इस संसार में कई ऐसे सूक्ष्म जीव होते हैं जो आंखों से दिखाई नहीं पड़ते लेकिन हमारे पैरों तले कई जीव दबकर मर जाते हैं और हमें इस बात का पता भी नहीं चलता है और हम अपने रोजमर्रा के कामों में लग जाते। परमात्मा ने सभी जीवो को एक समान माना है और लेकिन वह हमारे द्वारा जाने-अनजाने में मारे जाते हैं और उसका फल किसी ना किसी प्रकार में हमें भी भुगतना पड़ता है। लेकिन हमारे इस सनातन धर्म में ऐसे पापों से मुक्ति पाने के लिए कई ऐसे राह बताए गए जिसका वर्णन हमारे हिंदू धर्म के श्रीमद्भागवत पुराण के षष्टम स्कंध में किया गया है जिन्हे जानकर हम इन पापों से मुक्ति पा सकते हैं तो चलिए जानते हैं?

 अनजाने में किए हुए पाप के मुक्ति के उपाय

 श्रीमद् भागवत कथा के अनुसार एक बार महाराज परीक्षित सुखदेव जी से ऐसा प्रश्न करते हैं कि – हे प्रभुवर मैं आपसे यह जानना चाहता हूं कि यदि कुछ पाप हमसे जानें -अनजाने में हो जाते हैं जैसे कि कई चींटी मर गई, जब लोग स्वास लेते हैं तो उस के माध्यम से कई सूक्ष्म जीव जंतु प्रवेश करके मर जाते हैं, कई सूक्ष्म जीव जंतु लोगों को पैरों तले मर जाते हैं, भोजन बनाते समय लकड़ी जलाते हैं तो उस लकड़ी में कई ऐसे जीव जंतु वास करते हैं जो उस अग्नि में जलकर मर जाते है, तो इन सब पापों की मुक्ति का क्या उपाय है भगवन।

 शुकदेव जी महाराज राजा परीक्षित से कहते हैं – हे राजन ऐसे पापों से मुक्ति पाने के लिए मनुष्य को रोज पांच प्रकार के यज्ञ करने चाहिए।

 महाराज परीक्षित ने कहा – हे प्रभु मनुष्य को एक यज्ञ करने के लिए भी सोचना पड़ता है ऐसे में आप प्रतिदिन पांच यज्ञ की बात कर रहे हैं जो कि मनुष्य के लिए संभव नहीं हो सकता, आप कोई सरल उपाय बताये महाराज।

 पांच यज्ञ के बारे में बताएं शुकदेव जी –

 प्रथम यज्ञ – गौ को रोटी खिलाएं 

 तब सुखदेव जी महाराज ने राजा परीक्षित को कहा – हे राजन पहली यज्ञ है कि जब भी घर में रोटी बने तो पहली रोटी गौ को खिलाना चाहिए।

 दूसरा यज्ञ – चीटियों को भोजन दें 

 दूसरी यज्ञ है कि हर रोज 10 से 20 ग्राम आटा अथवा चीनी चीटियों को देना चाहिए या फिर वृक्ष के नीचे रख देना चाहिए जो कि चींटी आकर उन्हें खा ले।

 तीसरा यज्ञ – पशु-पक्षियों को अन्न दे 

 तीसरी यज्ञ यह है कि पशु पक्षियों को रोज अन्न, अन्न का दाना अथवा जल अवश्य खिलाएं एवं पिलाएं या फिर अपने छत के ऊपर बर्तन में जल अवश्य रखें इससे पक्षियों को गर्मियों के समय में जल की कमी ना हो ताकि कोई भी पक्षी जल के कारण अपनी प्यास से प्राण ना त्याग दे।

 चौथा यज्ञ – मछलियों को आटा दें 

 चौथी यज्ञ यह है कि राजन, जलाशय में मछलियों को आटे की गोली अवश्य डालना चाहिए।

 पांचवा यज्ञ – अग्नि को भोग लगाएं 

 पांचवी यज्ञ – अग्नि भोजन, तब सुखदेव जी महाराज ने राजा परीक्षित को पांचवी यज्ञ के बारे में बताते हुए कहा कि हे राजन घर में जब भी भोजन बने भोजन बनाने से पूर्व रोटी के टुकड़े में घी लगाकर उस अग्नि को भोग लगाना चाहिए जिस पर आप भोजन बना रहे हैं इससे यज्ञ के समान ही फल मिलता है।

 आगे सुखदेव जी महाराज राजा परीक्षित को कहते हैं – हे राजन इन सब क्रियाओं को नित्य करने से हमारे द्वारा जो जाने अनजाने में पाप होते हैं उन सब का प्रायश्चित हो जाता है और हमें उनका कोई दोष नहीं लगता है और हमें उन सब पापों का फल भी नहीं भुगतना पड़ता है।

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