एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि हे प्रभु अगर किसी ने जीते जी पुण्य कर्म नहीं किए हो और उसकी मृत्यु का समय पास आ गया हो तो ऐसे में वह क्या करें जिससे उसे मरने के बाद स्वर्ग मिले.आखिर कैसे एक ही दिन में प्रायश्चित किया जा सकता है,,तभी इसके जवाब में भगवान श्रीकृष्ण ने एक रोचक कथा सुनाई- कथा की माने तो एक बार विंध्य पर्वत पर क्रोधन नाम का एक महाकुरूर बहेलिया रहता था, अपने पापों का प्रायश्चित कैसे करें?
पापों का प्रायश्चित एक दिन में कैसे करें
उसने अपनी पूरी जिंदगी हिंसा लूटपाट और मदिरापान मैं बिताया था,इसके बाद जब उसके जीवन का अंतिम समय आया, तब यमराज ने अपने दूतों को आदेश दिया है कि 1 दिन बाद वह क्रोधन को ले आए,यमराज का आदेश पाकर वह सीधा क्रोधन के घर पहुंच गए,जहां यमदूतों ने क्रोधन को बता दिया कि कल तेरा अंतिम दिन है,इसके साथ ही उन्होंने कहा कि तूने अपने पूरे जीवन में सिर्फ पाप ही किए हैं,तुम्हारे जीवन काल में पुण्य का कोई नामोनिशान ही नहीं है,लेकिन अगर तुम चाहो तो पुण्य अर्जित कर सकते हो,अभी भी 1 दिन का समय तुम्हारे पास है.
उसके बाद क्रोधन बहुत डर गया और समझ गया कि अब यमराज के सामने उसके सभी पापों का हिसाब होगा, क्योंकि आजीवन तो उसने पाप ही किए थे,वही वह यह भी सोच रहा था कि एक दिन में पुण्य कमाना नामुमकिन है,इसके बाद मृत्यु के डर से भयभीत बहेलियां महर्षि अंगिरा के शरण में उनके आश्रम जा पहुंचा और उन्हें सारी बात बताई.
इसके बाद महर्षि ने कहा कि परेशान मत हो बालक भले ही तुमने अपना जीवन अज्ञानता में बिता दिया हो लेकिन मेरे नजरिए में यह भी कोई साधारण बात नहीं है की मौत के 1 दिन पहले तुम्हारी आंखें खुल गई हो और तुम्हें अपनी गलती का एहसास हो गया हो. इसके बाद महर्षि ने क्रोधन को एक ऐसा उपाय बताया जिससे उसके सारे पाप खत्म हो जाएंगे जिससे उसे स्वर्ग लोक की प्राप्ति होगी. महर्षि ने कहा कि आज आश्विन शुक्ल एकादशी है तुम्हें आज व्रत करना होगा और सच्चे मन से भगवान विष्णु की आराधना करनी होगी.
अपने पापों का प्रायश्चित कैसे करें?
बस इस एक काम से तुम्हारे जीवन के सारे पाप खत्म हो जाएंगे,बस फिर क्या होना था महर्षि के कहे अनुसार बहेलिए ने ठीक है वैसा ही किया है जिसके परिणाम स्वरूप उसके सारे पाप नष्ट हो गए और उसे सीधा स्वर्ग में स्थान मिल गया. अपनी कथा पूरी करते हुए भगवान श्री कृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं जो भी इस धरती से बिना पुण्य किए जाता है उसका पूरा जीवन व्यर्थ होता है,इसीलिए हर मनुष्य को अपनी क्षमता के अनुसार दान अवश्य करना चाहिए.
इसके साथ ही गरीब दुखिया की भी हर मुमकिन मदद करनी चाहिए.वही श्री कृष्ण आगे कहते हैं कि आश्विन शुक्ल एकादशी का व्रत जो भी रखता हो चाहे वह बाल्यावस्था में हो या वृद्ध सभी को एक जैसा परिणाम ही मिलता है. इस व्रत के बराबर गंगा और काशी जैसे महान तीर्थ भी नहीं है.इसके साथ ही जो भी इस व्रत को करता है उसके मात्रकुल, पितृकुल, स्त्रिकुल, मित्रकूल का उद्धार हो जाता है और अंत में उसे बैकुंठ की प्राप्ति होती है.वही जो फल एक आम मनुष्य को 12 साल की घोर तप के बाद मिलता है वह फल इस व्रत मात्र को पूरा करने से मिल जाता है.
परीक्षित और शुकदेव मुनि की कथा
वही दोस्तों एक बार परीक्षित ने सुखदेव मुनि से कुछ ऐसा ही सवाल किया था. उन्होंने कहा था कि हे मुनिवर कई बार हम अनजाने में अपने पैरों तले चीटियों को कुचल देते हैं, स्वास के माध्यम से वायु में जीवो को नष्ट करते हैं,लकड़ियों को जलाते समय उस पर मौजूद जीवो को नाश कर देते हैं,तो ऐसे पापों का प्रायश्चित कैसे किया जाए,जिसपर आचार्य सुखदेव ने बड़ी ही सरलता से जवाब देते हुए कहा कि ऐसे पाप से मुक्ति के लिए रोज प्रतिदिन पांच प्रकार के यज्ञ करने चाहिए.
सभी पांच यज्ञ का व्याख्या करते हुए मुनिवर बोले -राजन यह ऐसे बड़े यज्ञ नहीं है सरल शास्त्री ही उपाय है जिन्हें यज्ञ के समान मानते हुए इस प्रकार का नाम दिया गया है यह पांच यज्ञ मनुष्य द्वारा किए गए अनजाने में किए गए बुरे कृतियों के बोझ से राहत दिलाते हैं.
पहला यज्ञ–
आचार्य सुखदेव ने बताया कि यदि हम अनजाने में कोई पाप कर देते हैं तो हमें उसके प्राश्चित के लिए रोजाना गाय को एक रोटी दान करनी चाहिए, जब भी घर में रोटी बने तो पहली रोटी गाय माता के लिए निकाल देना चाहिए,
दूसरा यज्ञ–
चिटीयों के लिए प्रतिदिन 10 ग्राम आटा वृक्षों के नीचे डाल देना चाहिए.
तीसरा यज्ञ–
पक्षियों के लिए रोज अन्न किसी अलग बर्तन में डाल देना चाहिए.
चौथा यज्ञ–
आटे की गोली बनाकर हर दिन जलाशय में डालना चाहिए.
पांचवा यज्ञ–
रोटी बनाकर उसके टुकड़े करके उसमें घी चीनी मिलाकर अग्नि को भोग लगाएं…..