मित्रों पुरातन काल में बहुत से विद्वान महान हुआ करते थे जिनमें में से एक थे उच्च कोटि के दिग्गज आचार्य चाणक्य।जो विश्व भर में कौटिल्य के नाम से मशहूर हुए। उसके बारे में सब ने कुछ ना कुछ तो सुना ही है या जानते हैं।लेकिन क्या आपको यह पता है कि चाणक्य की मृत्यु कैसे हुई। अगर नहीं तो चलिए जानते है?आचार्य चाणक्य की मृत्यु कैसे हुई थी ?
आचार्य चाणक्य कौन थे?
चाणक्य तत्कालीन समय के मगध के तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य, शिक्षक एवं प्रमुख विद्वान थे। उन्होंने बहुत से ग्रंथों की रचना की थी जिनमें अर्थशास्त्र सबसे प्रमुख कहा जाता है। इतिहास काल में आचार्य ने मौर्य वंश के विकास में अपना संपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य, बिंदुसार मौर्य तथा सम्राट अशोक तीनों का ही मार्गदर्शन किया था। चाणक्य का जन्म ईसा पूर्व 371 में हुआ था जबकि उनकी मृत्यु ईसा पूर्व 283 में हुई थी।
चाणक्य का उल्लेख ममुद्राराक्षस, वृहदकथाकोर्स, वायु पुराण, मत्स्य पुराण, विष्णु पुराण आदि में मिलता है।वृहद कथा कोश का मानें तो उनकी पत्नी का नाम यशोमति था। मुद्राराक्षस के मुताबिक चाणक्य का असली नाम विष्णु गुप्त था उनका जीवन कई रहस्यों से भरा हुआ है आज भी भारत के राजनीति के इतिहास में कौटिल्य का नाम स्वर्ण अक्षर में बताया जाता है वहीं शिक्षक धर्मचार्य लेखक और अर्थशास्त्री भी थे।
ऐसा कहा जाता है कि रसायन के नाम से उन्होंने ही काम सूत्र लिखी थी चाणक्य के पिता चाणक्य ने उनका नाम कौटिल्य रखा था और तो और कौटिल्य नाम से विख्यात चाणक्य ने अर्थशास्त्र नाम का महान ग्रंथ भी लिखा है। आचार्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र एवं नीति शास्त्र नामक ग्रंथों की गणना विश्व के महान ग्रंथों में से की जाती है। विष्णुगुप्त तक्षशिला वर्तमान में रावलपिंडी के पास वहां के ही निवासी थे।चलिए बताते हैं उनकी मृत्यु कैसे हुई।
आचार्य चाणक्य की मृत्यु कैसे हुई थी ?
आचार्य चाणक्य के मौत के बारे में कई तरह के बातों का उल्लेख मिलता है ऐसा बताया जाता है कि वह अपनी सभी कार्यों को पूर्ण करने के बाद एक दिव्य रथ पर सवार होकर मगध से दूर जंगलों में चले गए थे। उसके बाद वे कभी नहीं लौटे वहीं कुछ के अनुसार उन्हें मगध की रानी हेलिना ने जहर देकर मार दिया था। इसके अलावा चाणक्य की मृत्यु को लेकर बहुत सी कहानियां प्रचलित है लेकिन कौनसी सच है इस बात की पुष्टि नहीं है।
ऐसे तो आचार्य की मृत्यु की दो तरह की कहानियां प्रचलित है पहली कहानी यह उस समय की बात है जब चंद्रगुप्त के मरने के बाद चाणक्य के अनुशासन तले राज्य या बिंदुसार सफलतापूर्वक शासन चला रहे थे लेकिन इसी काल में वह परिवारिक संघर्ष षड्यंत्र का सामना भी कर रहे थे। ऐसा कहते हैं कि परिवार और राज दरबार के कुछ लोगों को आचार्य चाणक्य का राजा के प्रति इतनी गरीबी पसंद नहीं थी। उनमें से एक मंत्री सुबंधु था जो कुछ भी करके विष्णुगुप्त को राजा से दूर कर देना चाहता था।
सुबंधु ने चाणक्य के खिलाफ कई षड्यंत्र रचे। राजा बिंदुसार के मन में यह गलतफहमी भी बताई गई कि उनके मां के मृत्यु का कारण कोई और नहीं स्वयं आचार्य चाणक्य ही है जिस कारण धीरे-धीरे राजा और आचार्य में दूरियां बढ़ने लगी। अंत में यह दूरियां इतनी बढ़ गई कि चाणक्य ने महल छोड़कर जाने का फैसला कर लिया और एक दिन वह चुपचाप महल से निकल गए। चाणक्य के जाने के बाद एक दाई ने बिंदुसार को उनकी माता के मृत्यु का रहस्य बताया।
चाणक्य की मृत्यु का राज
उस दाई के मुताबिक आचार्य सम्राट चंद्रगुप्त के खाने में रोजाना थोड़ा-थोड़ा विष मिला देते थे। ताकि विष को ग्रहण करने के आदि हो जाए और यदि कभी शत्रु उन्हें विष का सेवन करा कर मारने की कोशिश भी करें तो उसका राजा पर कोई असर ना हो। लेकिन एक दिन वह विष मिलाया हुआ खाना गलती से राजा की पत्नी ग्रहण कर लेती है जो उस समय गर्भवती थी। विष के खाना खाते ही उनके तबीयत बिगड़ने लगती है और जब आचार्य को इस बात का पता चला तो वे तुरंत रानी की गर्भ को काटकर उसमें से शिशु को बाहर निकाल लेते हैं और इस तरह राजा के वंश की रक्षा करते हैं।
दाई आगे कहती है यदि चाणक्य ऐसा नहीं करते तो आज आप मगध की राजा नहीं होते। वही जब राजा बिंदुसार को दाई से यह सच बता चला तो उन्हें चाणक्य के सिर पर लगा दाग हटाने के लिए उन्हें महल में वापस लौटने को कहा लेकिन आचार्य ने मना कर दिया। उन्होंने पूरी उम्र उपवास करने की ठान और अंत में प्राण त्याग दिए।
दूसरी कहानी के अनुसार राजा बिंदुसार के मंत्री सुबंधु ने आचार्य को जिंदा जलाने की कोशिश की थी। जिसमें वे सफल भी हुए हालांकि ऐतिहासिक तथ्यों के माने तो विष्णुगुप्त ने खुद प्राण त्यागे थे या फिर किसी षड्यंत्र का शिकार हुए थे यह आज तक पता नहीं चल पाया है तो मित्रों आप ने जाना कि आचार्य चाणक्य मृत्यु कैसे हुई थी अगर आपको पहले से ही किसी बात की जानकारी है तो हमें नीचे कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं धन्यवाद।
मृत्यु के बाद आत्मा कितने दिन धरती पर रहती है | Garud Puran Story in Hindi |