आलस्य क्या है आलस्य केसै खत्म करे?
एक बार आलस्य से परेशान एक व्यक्ति गौतम बुद्ध के पास आता है और कहता है बुद्ध मेरे अंदर बहुत आलस्य है मैं इस आलस्य की वजह से अपने जीवन में वह सब कुछ नहीं कर सकता जो मैं करना चाहता हूं इस आलस्य ने मुझे बहुत परेशान कर रखा है इसकी वजह से मैं अपने जीवन मैं उन्नति नहीं कर पा रहा हूं और कृपया आप मुझे इस आलस्य से छुटकारा पाने का कोई तरीका बताऐ?आलस्य क्या है आलस्य केसै खत्म करे?
आलस्य क्या है आलस्य केसै खत्म करे?
यह सुन गौतम बुद्ध मुस्कुराते हैं और उस आलसी व्यक्ति से कहते हैं कि तुम्हें कैसे पता कि तुम्हारे अंदर आलस्य है? उस आलसी व्यक्ति ने कहा बुद्ध केवल मैं ही नहीं मेरा पूरा परिवार भी यही कहता है कि मैं एक आलसी व्यक्ति हूं. बुद्ध ने कहा क्या तुम मुझको इसका प्रमाण दे सकते हो कि तुम एक आलसी व्यक्ति हो. उस आलसी व्यक्ति ने कहा जी बुद्ध मैं आपको प्रमाण दे सकता हूं. बुद्ध ने कहा चलो फिर प्रमाण दो.
उस आलसी व्यक्ति ने कहा बुद्ध मैं ये तो जानता हूं कि सुबह सुबह जल्दी उठना मेरे स्वास्थ्य और मेरे मन दोनों के लिए ही लाभकारी है लेकिन मेरा आलस्य मुझे जल्दी उठने ही नहीं देता. बुद्ध ने कहा अच्छा, परंतु क्या तुम्हें पता है कि आलस्य होता क्या है उस आलसी व्यक्ति ने कहा बुद्ध मुझे यह तो नहीं मालूम कि आलस्य क्या होता है लेकिन यह जो कुछ भी होता है बहुत बुरा होता है.
आलस्य क्या है
बुद्ध ने कहा आलस्य एक मानसिक अवस्था है एक भाव है एक विचार है जिसे जाने अनजाने मे हम इंसान खुद ही अपने अंदर पैदा करते हैं. आलसी व्यक्ति ने कहा परंतु वो कैसे बुद्ध. बुद्ध ने कहा पहले तो तुम यह समझो कि हमारे भीतर आलस्य के दो कारण होते हैं पहला कारण शारीरिक और दुसरा कारण मानसिक.
शारीरिक आलस्य
शारीरिक आलस्य का पहला कारण है भोजन. जब हम कोई ऐसा भोजन ग्रहण करते हैं जिसमें खुद कोई जीवन नहीं है तो यह भोजन हमारे शरीर के लिए बोझ बन जाता है और फिर ये हमारे शरीर के अंदर आलस्य पैदा करता है क्योंकि हमारा शरीर भोजन से मिलने वाली ऊर्जा के सहारे चलता है और फिर हम इसे जैसा भोजन देते हैं वैसे ही उर्जा हमारे शरीर को भी प्राप्त होती है इसलिए यदि तुम आलस्य से बचना चाहते हो तो आसानी से पचने वाले और सीधे प्रकृति से मिलने वाली भोज्य पदार्थों को अपने भोजन में शामिल करो.
शारीरिक स्तर पर आलस्य का दूसरा कारण है गलत तरीके से चलना गलत तरीके से बैठना और गलत तरीके से लेटना. गौतम बुद्ध ने अपने आश्रम के बौद्ध भिक्षुओं की ओर इशारा करते हुए कहा अगर तुम ध्यान से देखो तो इस आश्रम की बोद्ध भिक्षुओं को चलने बैठने और लेटने के अवस्थाओं में एक विशेष प्रकार का संतुलन तुम्हे नजर आएगा. जब ये चलते हैं तो उनके पैरों के बीच एक तालमेल होता है, जब ये बैठते हैं तो इनकी रीड की हड्डी एकदम सीधी होती है और गर्दन थोड़े से ऊपर होती हैं.
जब ये लेटते हैं तो इनका शरीर एकदम शीतल होता है इनका शरीर के किसी अंग पर कोई तनाव नहीं होता जिसके कारण ये गहरी और आरामदायक नींद ले पाते हैं. उस आलसी व्यक्ति ने पूछा बुद्ध क्या पर्याप्त नींद लेना भी उतना ही आवश्यक है. बुद्ध ने कहा ना कम ना ज्यादा हमेशा ही पर्याप्त मात्रा में सोना लाभकारी होता है अगर तुम आज की रात पर्याप्त नींद नहीं लेते तो तुम्हारा कल का पूरा दिन थकान और आलस्य भरा होगा इसलिए पर्याप्त नींद भी उतनी ही जरूरी है.
आलसी व्यक्ति ने कहा हां बुद्ध यह तो मैंने भी महसूस किया है. बुद्ध ने कहा शारीरिक के स्तर पर आलस्य का तीसरा कारण है सुबह जल्दी ना उठना यह सुन आलसी व्यक्ति ने कहा हां बुद्ध मैं तो सुबह जल्दी उठ ही नहीं पाता बुद्ध ने कहा तुम सुबह जल्दी तब उठ पाओगे जब तुम रात में जल्दी सोओगे. बुद्ध ने आश्रम के भिक्षुओं की ओर इशारा करते हुए कहा इन भिक्षुओं को देखो इन्होंने रात्रि में अपने सोने का एक निश्चित समय निर्धारित कर रखा है और यही कारण है कि यह हर दिन रोज प्रातः काल जल्दी उठने में सक्षम हो पाते हैं. हर एक बौद्ध भिक्षु को अनुशासन का पालन करना होता है और यही अनुशासन इनके जीवन में संतुलन लाता है.
कुछ लोग अनुशासन को एक बंधन समझते हैं उन्हें लगता है कि अनुशासन उन्हें बांधता है लेकिन सच्चाई यह बिल्कुल भी नहीं है कि अनुशासन हमें बांधता है बल्कि स्वतंत्र करता है. अनुशासन हमें इसलिए अगर तुम शारीरिक स्तर पर और आलस्य से छुटकारा पाना चाहते हो तो खुद को अनुशासन में ढ़ालो एक निश्चित दिनचर्या का पालन करो.
मानसिक आलस्य
उस आलसी व्यक्ति ने कहा लेकिन बुद्ध शुरुआत कहां से करें सही तरह का भोजन करने से सही तरह से बैठने लेटने और चलने से या फिर जल्दी उठने से. बुद्ध ने कहा शुरुआत अभी से करो जो भी तुम कर रहे हो उसे पूरे ध्यान से करो पहले तुम मन की स्तर पर आलस्य को समझो. बुद्ध ने कहा मानसिक स्तर पर आलस्य का पहला कारण है हमारी पुरानी गलत धारणाएँ जब हम किसी काम के लिए खुद को काबिल नहीं समझते तब हमारे भीतर आलस्य पैदा होता है.
अगर हमारे मन में यह विश्वास कर लिया कि पिछली बार की तरह इस बार भी मैं इस काम में असफल ही हूंगा तो हमें उस काम को करने में हमे हमेशा अलग तरीके से करना चाहिए? जबकि हम खुद को यह नहीं समझा पाते की पिछली बार और इस बार में बहुत फर्क है अब हम मानसिक तौर पर वो नहीं हैं जो हम पहले थे हमने पिछली हार से बहुत कुछ सीखा है इसलिए मानसिक आलस्य से बचने के लिए सबसे पहले खुद पर विश्वास करना सीखो.
मानसिक आलस्य का दूसरा कारण है छोटी सोच वाले और आलसी व्यक्तियों का साथ कई बार ऐसा होता है कि हम खुद आलसी नहीं होते लेकिन कुछ आलसी और कामचोर लोगों के साथ रहते रहते हैं हम खुद भी आलसी और कामचोर बन जाते हैं. यह सुन उस आलसी व्यक्ति ने कहा हां बुद्ध यह तो मैंने भी महसूस किया है बुद्ध ने कहा तो फिर सबसे पहले आलसी और कामचोर लोगों की संगति में रहना छोड़ो.
बुद्ध ने आगे कहा मानसिक आलस्य का तीसरा कारण है काम को टालने की आदत. काम को टालना आलस्य और मानसिक तनाव का सबसे बड़ा कारण है शुरुआत में तो हमें पता ही नहीं चलता लेकिन धीरे-धीरे ये आदत हमारे अंदर घर बना जाती है और यह एक अकेली आदत किसी भी इंसान की जिंदगी बर्बाद करने के लिए काफी है इसलिए जो काम आज किया जा सकता है उसे कल पर कभी ना टालें.
बुद्ध ने कहा मानसिक आलस्य का चौथा कारण है लक्ष्य का स्पष्ट ना होना. मान लो तुम किसी बड़े से रेगिस्तान में फंस चुके हो और तुम्हें जोरों की प्यास लगी है तब तुम क्या करोगे. उस आलसी व्यक्ति ने कहा मैं पानी की खोज करूंगा पर कोशिश करूंगा कि जल्द से जल्द रेगिस्तान के पास वाले गांव में पहुंच जाऊं. बुद्ध ने कहा लेकिन अगर बहुत कोशिश करने के बाद भी तुम्हें पानी ना मिले तब उस आदमी ने कहा मैं तब भी प्रयास करता रहूंगा क्योंकि मेरे पास और कोई दूसरा विकल्प ही नहीं होगा.
तब गोतम बुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा इंसान को आलस्य तभी घेरता है जब उसके पास कोई स्पष्ट लक्ष्य ना हो या फिर उसके समक्ष बहुत से विकल्प उपलब्ध हो इसीलिए लक्ष्य का निश्चित होना परम आवश्यक है. यदि तुम सुबह उठकर व्यायाम नहीं कर पा रहे हो तो उसका कारण तुम्हारी नजर का स्पष्ट ना होना है अभी तुम भविष्य में होने वाले रोगों और उन रोगों से होने वाली पीड़ा को स्पष्ट रूप से महसूस ही नहीं कर पा रहे हो.
बुद्ध ने आगे कहा मन के स्तर पर आलस्य का पांचवा कारण है किसी काम को करने की कोई बड़ी वजह है ना होना. मान लो तुम बहुत से कीमती गहने लेकर सुनसान रास्ते से गुजर रहे हो तुम चलते-चलते बहुत थक चुके हो और तुम्हारे बैठने का भी मन कर रहा है और तुम एक बड़े से पेड़ के नीचे आराम करने के लिए बैठ जाते हो तुम अभी बैठे ही थे कि तुमने देखा कि दूर से कुछ डाकू तुम्हारे तरफ भागे आ रहे हैं तो क्या ऐसी परिस्थिति में भी तुम्हारा आलस्य तुम्हें भागने से रोकेगा या रोक सकेगा नहीं ना.
मेरी एक बात को बड़े ध्यान से समझो तुम्हारा आलस्य केवल तम्हे उन्हीं कामों को करने से रोक सकता है जिन्हें करने कि तुम्हारे पास कोई बड़ी वजह नहीं है. वह आलसी व्यक्ति कहता है आपका बहुत-बहुत धन्यवाद बुद्ध अब मुझे आलस्य का सारा खेल समझ आ गया है. गौतम बुध कहते हैं कि मेरी एक बात हमेशा याद रखना जहां स्पष्टता है और काम को करने की कोई बड़ी वजह है वहां आलस्य हो ही नहीं सकता.
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