मित्रों जैसा कि हम सभी जानते हैं हिंदू धर्म में समय के काल खंडों को चार युगों अर्थात सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर और कलयुग में बांटा गया है। जिसमें कलयुग को मानव जाति का सबसे श्रापित युग कहा गया है लेकिन मित्रों आप यह नहीं जानते होंगे कि विष्णु पुराण में महर्षि व्यास जी ने कलयुग को सर्वश्रेष्ठ युगों में से एक बताया गया है। उनका ऐसा कहने के पीछे क्या तर्क था और कलयुग को सर्वश्रेष्ठ कैसे बताया गया है आज हम बात जानेंगे इसके बारे में जिसका वर्णन विष्णु पुराण में किया गया।
वेदव्यास जी के अनुसार कलयुग
मित्रों विष्णु पुराण के छठे अंश के अध्याय 2 में वर्णित आज की इस कथा के अनुसार एक दिन महर्षि व्यास गंगा नदी में स्नान कर रहे थे तभी कुछ ऋषि गण वहां पहुंचे। और उन्होंने देखा कि व्यास जी नदी में डुबकी लगाकर ध्यान कर रहे हैं यह देखकर वें ऋषिगण नदी तट पर एक वृक्ष के निचे बैठ गए। फिर कुछ समय बाद महर्षि व्यास जब ध्यान से उठकर जल में खड़े हुए तब वें कहने लगे कि “युगों में कलयुग, वर्णों में शूद्र, और इंसानों में स्त्री श्रेष्ठ है” ऐसा कह कर उन्होंने जल में फिर से एक डुबकी लगाया और फिर कुछ समय बाद बाहर निकल कर बोले “शूद्र तुम श्रेष्ठ हो तुम धन्य हो “ यह कहकर महामुनि फिर से जल में मग्न हो गए। और फिर जल से निकल कर बोले ” स्त्रिया ही साधु है और उनसे धन्य कोई नहीं है “। गंगा तट पर वृक्ष के पास बैठे हुए ऋषियों ने जब यह सुना तो उन्हें बड़ा ही आश्चर्य हुआ और फिर वें सभी आपस में बात करने लगे कि अब तक तो हम लोगों ने सुना था कि युगों में कलयुग श्रापित युग है और जातियों में ब्राह्मण ही श्रेष्ठ है तो फिर व्यास जी ऐसा क्यों कह रहे हैं, तब फिर उनमें से एक ऋषि ने कहा कि इस प्रश्न का उत्तर सिर्फ व्यास जी ही दे सकते हैं। तो फिर कुछ समय बाद व्यास जी जब उन ऋषियों के पास पहुंचे तब उन ऋषि यों ने इस प्रश्न का उत्तर व्यास जी से माँगा। Also Read :- श्री कृष्ण ने बताये कलयुग के कड़वे सत्य, जानकर शर्मनाक हो जायेंगे।
युगों में श्रेष्ठ कलयुग
तब फिर व्यास जी ने इसका उत्तर ऋषि को देते हुए कहां कि हे ऋषिगण जो फल सतयुग में मनुष्य 10 वर्ष तपस्या, ब्रम्हचर्य, आदि करने से मिलता है वो फल मनुष्य त्रेतायुग में 1 वर्ष,और द्वापर में 1 महीने और कलयुग में 1 दिन में मनुष्य प्राप्त कर सकता है इस कारण ही मैंने कलयुग को श्रेष्ठ कहा है। वहीं जो धर्म सतयुग में त्याग , त्रेता में यज्ञ, द्वापर में देवार्चन से प्राप्त होता है वही कलयुग में प्रभु के भक्ति और कीर्तन मात्र से मिल जाता है। कलयुग में मनुष्य एक छोटे से परिश्रम से सफलता हासिल कर सकता है इसलिए मैंने कलयुग को श्रेष्ठ कहा है।
कलयुग में शूद्र
इसके बाद आगे वेदव्यास जी कहते हैं कि कलयुग में शूद्र कैसे श्रेष्ठ है मैं आप सब से कहता हूँ। तब फिर वेदव्यास जी कहते हैं कि ब्राह्मणों को पहले ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना होता है तब फिर भी वेद, शास्त्रों एवं मंत्रो का अध्ययन कर के तीनों वर्णों को मार्गदर्शन एवं धर्म की ज्ञान देते थे जिससे वह परम पद को प्राप्त होते है। इस कार्य के लिए उन्हें अनुशासन एवं धर्म की मर्यादा में रहने की आवश्यकता होती है लेकिन अब कलयुग में बहुत से ब्राह्मण इन मर्यादाओं का पालन नहीं करते हैं इसलिए उसे परम पद की प्राप्ति जल्दी नहीं होती है। लेकिन आज इसकलयुग में भी ऐसे वर्ण है जो इन मर्यादाओं उन पर लागू नहीं होती है और वें है – शूद्र वर्ण। शुद्र वर्ण कलयुग में द्विजों और अन्य वर्णों का सेवा करने से ही उन्हें परम लोक की प्राप्ति कर लेगा इसलिए मैंने शुद्र को सबसे कलयुग में मनुष्य में श्रेष्ठ कहा है। गरुड़ पुराण: – मृत्यु के बाद तेरहवीं क्यों मनाई जाती है,जाने पौराणिक कथाओं के अनुसार?
कलयुग में स्त्रियां ही साधु है
उसके बाद वेदव्यास जी स्त्रियों के बारे में कहते हुए बतलाते हैं कि स्त्रियां ही कलयुग में साधु है। ऐसा इसलिए वेदव्यास जी कहते हैं कि – कलयुग में अधर्म का साम्राज्य अधिक होगा और लोग अपने धर्म का पालन सही से नहीं करेंगे। कलयुग में कई स्त्रियां ऐसे भी होंगे जो अपने पतिव्रता धर्म का भी सही से पालन नहीं करेंगे ऐसे में जो स्त्री अपने पतिव्रता धर्म का पालन एवं अपने परिवार का धर्म पूर्वक सेवा भाव करेंगे उन्हें ही परम पद की प्राप्ति होंगी। जो कलयुग में सभी स्त्रियों के लिए संभव नहीं होगा इसलिए मैंने स्त्रियों को साधुओं के समान धर्मपूर्वक कर्म करने वाला कहा हूँ।
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