कुम्भ मेला कब और क्यों मनाया जाता है, जाने कुम्भ मेला से जुड़ी पौराणिक कथा?

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महाकुम्भ मेला

दोस्तों आपलोगों ने कुम्भ मेला का नाम तो जरूर सुना होगा क्या आपको पता है इस मेले के बारे मै की ये कुम्भ मेला क्यों लगता है और कौन कौन से जगह पर लगता है अगर आपको नहीं मालूम है तो चलिए आज हम बात करेंगे कुम्भ मेले से जुड़ी जानकारी एवं पौराणिक कथाएं।

कुम्भ मेला भारत देश मे लगने वाली सबसे विशाल एवं महत्पूर्ण मेला होता है ये मेला 12 वर्षो मे एक बार लगता है। [wpdiscuz-feedback id=”qhmzvewbv7″ question=”कुम्भ मेला कहाँ लगता है ” opened=”0″]यह मेला भारत के चार तीर्थ स्थल जगहों पर लगता है पहला उत्तराखंड राज्य के हरिद्वार के गंगा नदी के तट पर , दूसरा नासिक के गोदावरी नदी के तट पर , तीसरा मध्यप्रदेश के उज्जैन के शिप्रा नदी के तट पर, और चौथा प्रयागराज (इलाहबाद ) के गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के संगम तट पर आयोजित किया जाता है[/wpdiscuz-feedback] इस स्थान को प्रयागराज संगम के नाम से जाना जाता है। यह मेला 12 वर्षो मे चारो तीर्थ स्थलों मे चार बार आयोजित एवं मनाया जाता है

यह विश्व का सबसे बड़ा मेला कहा जाता है इस मेले मे लाखो एवं करोड़ो की संख्या मे दूर दूर से श्रद्धालुगण एवं नागा साधु आते है और नदी मे डुबकी लगा कर अपने कई जन्मो का पापो का प्रायश्चित करते है और मोक्ष की मार्ग की ओर बड़ते। हिन्दू धार्मिक अनुष्ठानों के अनुसार मान्यता है की कुम्भ मेले के दौरान गंगा नदी मे स्नान करने से अठासी पीड़ियो के पाप मुक्त हो जाते है।

कुम्भ मेला कब लगता है

इस मेले के लिए जो नियम एवं समय निर्धारित हैं उसी के अनुसार यह मेला लगता है चारो स्थानों पर कुम्भ मेला लगने का ज्योतिष शास्त्र के अनुसार समय निर्धारित है।

प्रयागराज कुम्भ

[wpdiscuz-feedback id=”bkox9spmwt” question=”प्रयागराज मे कुम्भ मेला कब लगता है ” opened=”1″]प्रयागराज संगम यानि (इलाहबाद ) में महाकुंभ मेला  माघ अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्रमा मकर राशि में होते हैं और गुरू मेष राशि में होता है तब इस स्थान पर महा कुम्भ का आयोजन होता है। [/wpdiscuz-feedback]यहाँ पर कुम्भ 1989, 2001, 2013 मे लगा था इसके बाद 2025 में फिर लगेगा।

यहाँ पर लगने वाले कुम्भ मेला अन्य कुम्भों से सबसे अधिक प्रसिद्ध है क्योंकि इस स्थान पर तीनो नदियों गंगा यमुना और सरस्वती का संगम है इस स्थान को पृथ्वी का केंद्र और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का उद्गम माना जाता है। सनातन धर्म के अनुसार इस जगह की मान्यता है कि सृष्टि की रचना से पूर्व ब्रम्हाजी ने इसी स्थान पर तपस्या एवं अश्वमेघ यज्ञ किया था. दश्वमेघ घाट और ब्रम्हेश्वर मंदिर इस यज्ञ का साक्षी एवं स्वरुप अभी भी यहां मौजूद हैं।

हरिद्वार कुम्भ

[wpdiscuz-feedback id=”195gs33xdq” question=”हरिद्वार मे कुम्भ मेला कब लगता है ” opened=”1″]उत्तराखंड के हरिद्वार मे कुम्भ मेला जब गुरु कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मेष राशि में होता है तब इस स्थान पर कुंभ मेला लगता है।[/wpdiscuz-feedback] यहाँ पर कुम्भ 1986, 1998, 2010 मे लगा था इसके बाद 2021 में फिर लगेगा।

नासिक कुम्भ मेला

[wpdiscuz-feedback id=”9lovqb0y1v” question=”नासिक मे कुम्भ मेला कब लगता है ” opened=”1″]नासिक मे गोदावरी के तट पर यह कुम्भ मेला जब
सूर्य एवं गुरू दोनों ही सिंह राशि में होते हैं तब इस स्थान पर यह मेला का आयोजन किया जाता है। यहाँ पर कुम्भ 1980, 1992, 2003, 2015 मे लगा था इसके बाद 2027 में फिर लगेगा।[/wpdiscuz-feedback]

उज्जैन

[wpdiscuz-feedback id=”81jmxfku4y” question=”उज्जैन मे कुम्भ मेला कब लगता है ” opened=”1″]मध्यप्रदेश के उज्जैन में कुंभ मेला तब लगता है जब वृहस्पति ग्रह यानि गुरु कुम्भ राशि मे प्रवेश करता है तब और यह समय 12 वर्षो मे एक बार आता है। यहाँ पर कुम्भ 1980, 1992, 2004, 2016 मे लगा था इसके बाद 2028 में फिर लगेगा।[/wpdiscuz-feedback]

पुराणों के अनुसार कुम्भ मेला क्यों लगता है

सनातन धर्म ग्रन्थ विष्णु पुराण के उल्लेख से मिलता है कुम्भ मेले से जुड़ी कथाएं। 

पुराणों के अनुसार कहा जाता है की महर्षि दुर्वासा एक बार स्वर्गलोक मे पधारे परन्तु देवराज इन्द्र अपने घमंड के नशे मे चूर उसने दुर्वासा ऋषि का आदर नहीं किये, इस पर दुर्वासा ऋषि को क्रोध आ गया और उसने इन्द्र एवं समस्त स्वर्ग लोक के देवताओं को उसके बल क्षीण होने का श्राप दें दिया। श्राप के कारण जब सभी इन्द्र एवं देवता अपनी शक्तियों मे कमजोर हो गए थे तब असुरों ने इस मौके का फायदा उठाकर स्वर्गलोक पर आक्रमण करना शरू कर दिया।

देवताओं और असुरों के युद्ध मे बार-बार देवताओं को असुरों से परास्त होना पड़ा। इस मुश्किल मे सभी देवताओं और इन्द्र सोच मे पड़ गए और उन्होंने ब्रह्मा जी के पास जा के सारा वृतांत सुनाया। तब ब्रह्मा जी सभी देवताओ को लेकर भगवान श्री हरि विष्णु के पास गए और इसका समाधान पूछा। तब भगवान विष्णु ने देवताों को असुरों के साथ मिलकर क्षीर सागर मे अमृत निकालने के लिये समुद्र मंथन करने को कहा जिस पर सभी देवताओं एवं असुर मान गए। उसके बाद जब

समुद्र मंथन के बाद अमृत निकला तब देवताओं के इशारे पर इन्द्र का पुत्र जयंत अमृत का कलश लेकर भागने लगा। इस पर असुरों को लगा की हमारे साथ धोखा हुआ है और असुरों के गुरु शुक्राचार्य के कहने पर सभी असुर जयंत को पकड़ कर अमृत का कलश छीनने का प्रयास करने मे लग गए अन्तः जयंत को असुरों ने पकड़ ही लिया और अमृत कलश पर असुरों ने अपना अधिकार ज़माने की कोशिश कर ही रहे थे तो उसी वक्त पर सभी स्वर्गलोक के देवता एवं इन्द्र वहां आ गए और असुरों एवं देवता मे युद्ध छिड़ गया।

यह युद्ध 12 दिन तक चली थी और इस युद्ध मे अमृत की चार बुँदे धरती पर गिरी थी। जो पहला स्थान प्रयागराज, दूसरा स्थान हरिद्वार, तीसरा स्थान उज्जैन, और चौथा स्थान नासिक था इसलिए इन्ही चार जगहों पर कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है। देवताओं और असुरों का युद्ध 12 दिन तक चला था जो पृथ्वीलोक पर 12 वर्ष के बराबर होता है इसलिए यह मेला हरेक बारह वर्षो मे एक बार लगता है।

श्री कृष्ण ने बताये कलयुग के कड़वे सत्य, जानकर शर्मनाक हो जायेंगे।

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