एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवर्षि नारद बैकुंठ गए वहां उन्होंने भगवान विष्णु को प्रणाम किया और कहने लगे – प्रभु पृथ्वी पर अब आप का प्रभाव कम हो रहा है, धर्म पर चलने वालों को अच्छे फल प्राप्त नहीं हो रहा है,वही जो भी मनुष्य पाप करता है उनका भला हो रहा है. नारद जी की यह बात सुनकर श्रीहरि मुस्कुराए और कहने लगे- नहीं देवऋषि ऐसा नहीं है जो भी हो रहा है सब भाग्य के माध्यम से ही हो रहा है.
कर्म से जुड़े एक कथा
प्रभु का उत्तर ध्यान से सुनते हुए फिर देव ऋषि बोले मैं तो स्वयं देख कर आ रहा हूं पापियों को अच्छे फल मिल रहे हैं और वही भला करने वाले और धर्म के रास्ते पर चलने वालों को बुरा और कष्टदाई समय देखना पड़ रहा है. भगवान ने नारद जी को टोका और पूछा -तुम कोई ऐसी घटना तो बताओ.
तब नारद जी ने कहा- अभी मैं एक जंगल से गुजर रहा था हूं, वहां एक गाय दलदल में फंसी हुई थी जिसे कोई बचाने वाला भी नहीं था तभी एक चोर वहां से जा रहा था वह गाय को फंसा हुआ देखकर भी नहीं रुका,और तो और वह उस पर पैर रखकर दलदल वाली जमीन से आगे निकल गया आगे जाकर चोर को सोने के मोहरों से भरी एक थैली मिली. वही फिर थोड़ी देर बाद वहां से एक वृद्ध साधु गुजरा उसने उस गाय को बचाने की बहुत कोशिश की पूरे शरीर का जोर लगाकर उसने उस गाय को बचा लिया.
लेकिन मैंने देखा गाय को दलदल से निकालने के बाद हुआ साधु स्वयं एक गड्ढे में गिर गया अब प्रभु आप ही बताइए यह कौन सा और कहां का न्याय है.नारद जी की यह बातें सुनकर भगवान विष्णु बोले- जो हुआ सही हुआ जो चोर गाय पर पैर रख कर भाग गए थे उसकी किस्मत में एक बड़ा खजाना था लेकिन उसके इस पाप के कारण उसे केवल कुछ ही मोहरे मिली,
वहीं उस साधु को उस गड्ढे में इसलिए गिरना पड़ा क्योंकि उसके भाग्य में मृत्यु लिखी थी,लेकिन गाय को बचाने के कारण उसके पुण्य बढ़ गए और उसकी मृत्यु एक छोटी सी चोट में बदल गए,इसीलिए हे नारद इंसान के कर्मों से ही उसका भाग्य तय होता है.वेक्ति को कर्म करते रहना चाहिए क्योंकि कर्मों से ही भाग बदला जा सकता है.
जो भाग्य में लिखा होता है वही मिलता है?
एक दिन एक व्यक्ति ने पंडित जी से पूछा कि उसका भाग्य कैसा है और उसके भाग्य में कितना धन है, पंडित जी ने उसकी भाग्य की कुंडली देखकर बताया कि उसके भाग्य में रोज ₹50 हैं. पंडित जी की बातें सुनकर वह आदमी ज्यादा खुश तो नहीं हुआ, लेकिन जब उसकी जरूरत इतने पैसों से ही पूरी हो रही थी तो उसने फिर ज्यादा नहीं सोचा,यूं ही कई दिन बीत गए फिर एक दिन उसके दोस्त ने उससे कहा कि मैं तुम्हारी सादगी और नेक विचार देख कर मैं तुमसे बहुत प्रभावित हूं और अपनी बहन की शादी तुमसे करना चाहता हूं.
मित्र कि बात सुनकर वह आदमी बोला कि मेरी रोजाना की कमाई मात्र ₹50 ही है,तो तुम इस बात का ध्यान रखना कि तुम्हारी बहन को इसी कमाई में जीवन व्यतीत करना होगा. मित्र बोला कोई बात नहीं मुझे यह रिश्ता पसंद है. इसके बाद दोनों की शादी हो गई, इसके बाद अचानक अगले कुछ दिनों में उसी आदमी की आमदनी ₹300 प्रतिदिन हो गई. उसके बाद आदमी पंडित जी के पास गया और कहा कि परमात्मा ने तो मेरे भाग्य में ₹50 ही लिखे थे लेकिन मेरी अब रोजाना 300 रुपए की आमदनी होती है.
समय से पहले भाग्य से ज्यादा
पंडित जी मुस्कुराए और फिर बोले क्या हाल ही में तुम्हारा कोई रिश्ता या मंगनी हुई है, वह आदमी बोला हां हुई तो है तब पंडित जी बोले यह बाकी के रुपए तुम्हें उसी के भाग्य से मिल रहे हैं. इसके कुछ दिन बाद उसकी पत्नी गर्भवती हुई,जिसके बाद उसकी आमदनी 300 से बढ़कर 500 हो गई,अब वह आदमी चुकी ईश्वर में विश्वास रखने वाला था तब वह फिर से पंडित जी के पास गया और पूछने लगा कि मेरी आमदनी अब इतनी कैसे बढ़ गई है कहीं मैं तो अपराध तो नहीं कर रहा हूं.
आदमी की बात सुनकर पंडित जी ने उसे बताया कि यह आमदनी उसकी पत्नी और उसके बच्चे के भाग्य से बढ़ी है,इसीलिए परेशान होने की कोई बात नहीं. पंडित जी ने फिर आगे बताया कि हर इंसान को उसका भाग्य और समय के अनुसार ही मिलता है. उसके भाग्य से ही उसके घर में धन दौलत आती है,लेकिन अगर मनुष्य यह अभिमान करता है कि सब उसने कमाया है और सब उसी के कारण है तो यह उसकी मूर्खता से ज्यादा और कुछ भी नहीं है. तो मित्रों हमें इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि समय से पहले और भाग्य से ज्यादा नहीं मिलता.