मित्रों जैसा कि आप सभी जानते ही हैं कि मनुष्य के अंदर ईश्वर का विश्वास जन्म से ही नहीं होता, परंतु समय के साथ-साथ व्यक्ति के विचार हैं बदलते हैं और वह अपने धर्म के अनुसार ईश्वर मे विश्वास करने लगता है। किंतु आज का दौर यानी कलयुग में कई मनुष्यो के अंदर आलस ने जन्म ले लिया है और वह केवल भगवान के भरोसे ही बैठे रहते हैं। तो आज हम आपको अपनी इस प्रस्तुति के माध्यम से यह बताएंगे कि जो मनुष्य ईश्वर के भरोसे बैठा रहता है उसके साथ क्या होता है।क्या इंसान को भगवान भरोसे बैठना चाहिए या नहीं?
क्या इंसान को भगवान भरोसे बैठना चाहिए या नहीं?
मित्रों ऐसा अक्सर देखने को मिला है कि मनुष्य अपने लक्ष्य को पाने के लिए मेहनत करने से ज्यादा भगवान के भरोसे बैठा रहता है। हमारे धर्म ग्रंथों में से एक महाभारत के अनुसार भगवान कृष्ण ने युद्ध के आरंभ में ही पांडवों से कहा था कि सिर्फ मेरे साथ होने से आप इस युद्ध को नहीं जीत सकते। वही युद्ध में विजय बनने के लिए आपको अपनी पूरी शक्ति के साथ लड़ना होगा क्योंकि कर्म किए बिना सफलता किसी को नहीं मिलती।
दो मित्र की कथा
और मित्रों कर्म का महत्व बताने वाली एक लोक कथा भी प्रचलित है जिसके अनुसार पुराने समय में 2 मित्र हुआ करते थे। एक बहुत ही मेहनती था और एक सिर्फ भगवान के भरोसे अपना जीवन जी रहा था वह दिन भर भगवान की भक्ति में लीन रहता था। दोनों ने साथ मिलकर खेती के लिए जमीन खरीदी।
मेहनती व्यक्ति खेत में दिन भर मेहनत करता वही उसका दूसरा भक्त दोस्त दिनभर पूजा अर्चना करता कि उसकी फसल अच्छी हो जाए। धीरे-धीरे काफी समय बीत गया और फसल काटने का समय आ गया। अब जो भक्त था उसने फसल बोई ही नहीं थी तो फसल होती कहां से लेकिन वही उसके वही मेहनती दोस्त ने अपनी पूरी फसल काटी।
इस पर पूजा करने वाला मित्र उससे जाकर बोला कि इसमें से आधा हिस्सा उसका है मेहनती व्यक्ति ने कहा कि भाई तुमने तो 1 दिन भी खेत में काम नहीं किया तो फिर इस फसल का आधा हिस्सा तुम्हारा कैसे हो गया। दोनों के बीच वाद-विवाद बढ़ा तो बात राजा तक जा पहुंची। राज्य के राजा ने दोनों मित्रों की बात सुनी और कहा कि मैं तुम दोनों को एक-एक बोरी गेहूं दे रहा हूं कल जो भी आदमी पूरा गेहूं साफ करके ले आएगा वही इस फसल का मालिक होगा।
भगवान भरोसे बैठने वाला इंसान
इसके बाद दोनों मित्र अपनी-अपनी बोरी लेकर घर पहुंचे। पूजा करने वाला ईश्वर के सामने बैठ गया और प्रार्थना करने लगा कि उसकी गेहूं की बोरी साफ हो जाए वही मेहनती व्यक्ति बोरी से गेहूं निकालकर उसे साफ करने में लग गया और पूरी रात लगाकर उसने गेहूं साफ भी कर दी। अगले दिन दोनों मित्र राजा के दरबार में पहुंचे मेहनती व्यक्ति के गेहूं साफ थे और उनमें से सारा कचरा निकाल दिया गया था जबकि भगवान की भक्ति करने वाले इंसान की बोरी जस की तस थी।
इस पर राजा ने उस भक्त से कहा की देवी देवता भी उन्हीं लोगों की सहायता करते हैं जो खुद मेहनत करते हैं तुमने रात भर भक्ति की लेकिन मेहनत नहीं की जबकि तुम्हारे मित्र ने मेहनत की और गेहूं का कचरा साफ किया, तुम भी मेहनत करते तो तुम्हारे गेहूं भी साफ हो गए होते तब जाकर भक्ति में लीन रहने वाले मनुष्य को राजा की पूरी बात अच्छे से समझ आई। जिसके बाद दोनों मित्र खेती में बराबर से मेहनत करने लगे और उन्हें उनकी मेहनत का फल भी मिला उनकी फसल काफी अच्छी हुई।
तो मित्रों इस कथा के माध्यम से हमने समझा कि भगवान भरोसे बैठे रहने से कुछ भी नहीं मिलता और अगर आप अपने जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा। जैसे क्रोध पर काबू रखें श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार व्यक्ति क्रोध में स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख पाता और आवेश में आकर गलत कार्य कर बैठता है क्रोध के वशीभूतो मनुष्य की बुद्धि व्यर्थ हो जाती है और उसे सत्य समझ नहीं आता इसीलिए अपना अहीत कर्म से बचने के लिए इंसान को गुस्से को खुद पर हावी नहीं होने देना चाहिए।
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