गंगाजल में अस्थिया क्यों विसर्जन किया जाता है?

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सनातन धर्म में मां गंगा को मोक्षदायिनी कहा गया है. स्कंद पुराण में बताया गया है कि गंगा के स्नान के मात्र से ही 10 तरह के पापा से मुक्ति मिल जाती है.माना जाता है कि पृथ्वी के अलावा मां गंगा के दो धाराएं आकाशगंगा और एक पाताल में बहती है. हमारे संस्कृति में कोई भी शुभ कार्य गंगा के पवित्र जल के बिना संभव नहीं हो पाता. बच्चे के मुंडन से लेकर मृत्यु के बाद मनुष्य की अस्थियों तक को गंगा में प्रवाहित किया जाता है. मृतक की अस्थियां को धार्मिक दृष्टिकोण से फूल कहा जाता है जहां संतान फल है, वही पूर्वजों की अस्थियां फुल कहलाती है.गंगाजल में अस्थिया क्यों विसर्जन किया जाता है? 

गंगाजल में अस्थिया क्यों विसर्जन किया जाता है? 

 हिंदू धर्म में  व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कार बताए गए हैं इनमें सबसे आखरी संस्कार मृत्यु के बाद किया जाने वाला अंतिम संस्कार है. इसकी गरुड़ पुराण मैं एक पूरी विधि बताई गई है इस विधि में मृतक दह संस्कार के बाद उसकी अस्तियों को गंगा में प्रवाहित करने का विधान भी है.इसके पीछे धार्मिक कारण तो है ही लेकिन एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक कारण भी है जो इस पूरे संसार के जीवन के लिए आवश्यक है तो चलिए जानते है?

गंगा को सभी तीर्थों में परम तीर्थ और नदियों में सबसे श्रेष्ठ नदी माना गया है. वह सभी प्राणियों जहां तक की महा पापियों को भी मोक्ष प्रदान करने वाली है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गंगा को सबसे पवित्र नदी माना जाता है हिंदू धर्म में गंगा का स्थान इसलिए भी सर्वोच्च माना जाता है क्योंकि की देवी गंगा भगवान शिव के जटा में वास करते हुए धरती पर अवतरित हुई थी. धार्मिक लोगों में यह भी मान्यता है कि तब तक मृत आत्मा की परलोक यात्रा प्रारंभ नहीं होती जब तक की उसके फूलों को गंगा में विसर्जित नहीं किया जाए.

गंगा में अस्थि विसर्जन के महत्व भविष्य पुराण में श्री कृष्ण ने बताया है राजा भागीरथ के प्रयासों से गंगा के पृथ्वी पर आगमन के समय श्री कृष्ण गंगा स्नान का महत्व बताते हैं. इसी प्रसंग में वह गंगा से कहते हैं कि मृत व्यक्ति के शव बड़े पुण्य के प्रभाव से ही तुम्हारे अंदर आ सकता है जितने दिनों तक उसकी की एक एक हड्डी तुम्हारे में रहती है उतने समय तक वह बैकुंठ में वास करता है. यदि कोई अज्ञानी व्यक्ति भी तुम्हारे जल का स्पर्श करके प्राण त्यागता है तो वह भी मेरी कृपा से परम पथ का अधिकारी होता है.

गरुड़ पुराण में पक्षीराज गरुड़ के पूछने पर भगवान विष्णु भी गंगा में अस्थि विसर्जन का महत्व बताते हुए कहते हैं – कि जिस किसी का भी अस्थि गंगा जल में प्रवाहित होती है उसका ब्रह्मलोक से फिर पुनर्जन्म नहीं होता मनुष्य की अस्थि जितने समय तक गंगाजल में रहती है उतने समय तक वह स्वर्ग लोक में रहता है इसीलिए माता-पिता सहित परिवार के सदस्य के मृत्यु के बाद उनकी अस्थियों का विसर्जन गंगा में जरूर करना चाहिए.

एक दिन मां गंगा भगवान नारायण से मिलने उनके बैकुंठ धाम गई तब उन्होंने श्री हरि से पूछा – हे प्रभु व्यक्ति मेरे जल में स्नान करने पर सभी के पाप नष्ट हो जाते हैं लेकिन मैं इतने पापों का बोझ कैसे उठाऊंगी तब भगवान नारायण ने कहा की आपके जल में जो भी साधु संत और वैष्णव आकर स्नान करेंगे तब आपके अंदर समाए हुए सभी पाप नस्ट हो जाएंगे आप हमेशा के लिए पतित-पावन बनी रहेंगी. पृथ्वी पर जो भी इस नदी में डुबकी लगायेगा है उसको मोक्ष की प्राप्ति होगी.

 गंगाजल की अस्थियां विसर्जन करने के वैज्ञानिक कारण

  मृतक के अस्तियों को गंगा आदि पवित्र नदियों में विसर्जन करने के प्रथा के पिछे एक वैज्ञानिक तथ्य भी छिपा हुआ है जोकि गंगा नदी से सैकड़ों वर्ग मील भूमि को सिचकर उपजाऊ बनाया जाता है जिससे उसके निरंतर प्रवाह के कारण भी उपजाऊ शक्ति घटती रहती है. ऐसे में गंगा में फास्फोरस की उपलब्धि बनी रहे इसीलिए उसमें अस्थि विसर्जन करने की परंपरा बनाई गई है ताकि फास्फोरस युक्त खाद्य पानी द्वारा अधिक पैदावार उत्पन्न की जा सके. 

फास्फोरस भूमि की उपजाऊ शक्ति को बनाए रखने के लिए एक आवश्यक तत्व होता है जो हमारे हड्डियों में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है. लेकिन अब यह सवाल उठता है यह असंख्य मात्रा में अस्थियों का विसर्जन करने के बाद वे गंगा का जल पवित्र और पावन क्यों बना रहता है आखिर अन्य नदियों की उपेक्षा में गंगा मैं डाली गई अस्थिया कुछ समय बाद गायब क्यों हो जाती है क्या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक या फिर धार्मिक कारण भी है

हालांकि इसका उत्तर अभी ढूंढा जाना बाकी है लेकिन फिर भी वैज्ञानिक संभावना के अनुसार गंगा जल में 12 अर्थात मरकरी मौजूद होता है जिससे विसर्जित की हुई हड्डियों का कैल्शियम और फास्फोरस पानी में घुल जाता है जो जल जंतुओं के लिए एक पौष्टिक आहार है. वैज्ञानिक दृष्टि से हड्डियों में गंध है यानि सल्फर विद्यमान होता है जो पारे के साथ मिलकर पारद का निर्माण करता है. इसके साथ साथ यह दोनों मिलकर मरकरी सल्फर सोल्ड का निर्माण करते हैं और हड्डियों में बचा शेष कैल्शियम पानी को स्वच्छ रखने में कार्य करता है.

  धार्मिक दृष्टि से पारद शिव का प्रतीक है और गंधक शक्ति का प्रतीक है सभी जीव अंततः शिव और शक्ति में विलीन हो जाते हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार नदी के जल में मौजूद बैक्टीरियो फेस नामक जीवाणु गंगाजल में मौजूद हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देता अर्थात यह ऐसा जीवाणु है जो गंदगी और बीमारी फैलाने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर देता है इसके कारण ही गंगा का जल नहीं सड़ता.

भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदी गंगा का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है इसका जल घर में सीसे या प्लास्टिक के डिब्बे आदि में रहकर छोड़ भी दिया जाए तो वर्षों तक यह खराब नहीं होता और कई तरह के पूजा पाठ में भी इसका उपयोग किया जाता है ऐसी आम धारणा है कि मरते समय व्यक्ति को यह जल पिला दिया जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.

अपने पापों का प्रायश्चित कैसे करें?

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