मित्रों मनुष्य के लिए जीवन मरन एक रहस्यमयी यात्रा है ये किसी को भी पता नहीं होता की शिशु का जन्म कब होगा या फिर किसी व्यक्ति की मृत्यु कब होगी। लेकिन सबके मन में ये सवाल जरूर रहता है कि आखिर मृत्यु से पूर्जन्म तक की यात्रा होती कैसे है?तो आज की इस पोस्ट में हम आपको इसी बारे में विस्तार से बताएंगे जिसका वर्णन हिंदू धर्म के पवित्र पुराणों में से एक गरुड़ पुराण में किया गया है? गरुड़ पुराण: मृत्यु के बाद आत्मा कैसे लेती है पुनर्जन्म?
गरुड़ पुराण: मृत्यु के बाद आत्मा कैसे लेती है पुनर्जन्म?
मित्रों उपनिषदों के अनुसार एक संग्रह के अगर कई भाग कर दिए जाए तो उससे भी कम समय में आत्मा एक शरीर को छोड़कर कर दूसरे शरीर में प्रवेश कर जाती है और ये सबसे कम समय अवधि है। वही सबसे ज्यादा समय अवधि 30 सेकंड की मानी गई है लेकिन पुराणों के अनुसार ये समय लंबा भी हो सकता है 3 दिन 13 दिन सवा माह या फिर सवा साल। वहीं अगर कोई आदमी नया शरीर धारण नहीं कर पाती वो मुक्ति के लिए इस पृथ्वी पर ही भटकती रहती है स्वर्ग लोक पितृलोक या अधो लोग मैं अपना समय व्यतीत करती है।
जीवआत्मा का पुनर्जन्म
अब सूक्ष्म शरीर को धारण किए हुए इस जीवात्मा का स्थूल शरीर के साथ बार-बार नाता टूटना या फिर बनना ही पुनर्जन्म कहलाता है। अब ये तो आप सभी जानते हैं कि कर्म और पुनर्जन्म एक दूसरे से जुड़े हुए हैं मनुष्य के कर्मों के अनुसार उसका पुनर्जन्म होता है और पुनर्जन्म के बाद नए कर्म संग्रहित होते हैं। वही दोबारा जन्म लेने के भी दो उद्देश्य है पहला ये कि व्यक्ति अपने जन्मों के कर्मों के फल का भोग करता है जिससे वो उनसे स्वतंत्र हो जाता है और दूसरा ये कि इन भोगो से अनुभूति प्राप्त करके नए जीवन में इनके सुधार का उपाय है।
ताकि बार-बार जन्म लेकर आत्मा विकास की तरफ बिना रुके बढ़ती जाए और आखिर में सभी अपने कर्मों द्वारा जीवन का श्रेय करके मुक्त अवस्था को प्राप्त हो। अब मित्रों आपके मन में ये प्रश्न भी उठ रहा होगा की पुनर्जन्म के बाद कौन सी योनि मिलती है
पुनर्जन्म के बाद कौन सी योनि मिलती है
तो योनि में बात करें जातियों की तो जातियां चार प्रकार की होती है वनस्पति जाति ,पशु जाति ,पक्षी जाति और मनुष्य जाति। कर्मों के अनुसार आत्मा जिस शरीर को प्राप्त होती है वही उसकी जाति कहलाती है। अगर कुछ अच्छे कर्म किए हो तो कम से कम मनुष्य से नीचे की जाति नहीं मिलती। अब मित्रों यह भी जानते हैं कि किन कारणों के चलते एक आत्मा का पुनर्जन्म होता है।
सबसे पहले तो ईश्वर किसी महत्वपूर्ण कार्य के महात्माओं और दिव्य पुरुषों की आत्माओं के पुनर्जन्म लेने की आज्ञा देती है। अब पुण्य कर्मों के प्रभाव से मनुष्य की आत्मा स्वर्ग में सुख तो भोगती है लेकिन जब तक पुण्य कार्यों का असर रहता है तभी तक वो आत्मा देव्य सुख प्राप्त करते हैं और जब इन सब कर्मों का प्रभाव खत्म हो जाता है तब उसे दोबारा जन्म लेना पड़ता है, और तो और कर्म अगर कोई मनुष्य अत्यधिक पुण्य कर्म करता है तब उसे उन पुण्य कर्मों का फल भोगने के लिए उन्हें मृत्यु लोक में आना पड़ता है।
इसके अलावा जीवात्मा किसी से प्रतिशोध लेने के लिए पूर्ण जन्म लेती है यदि किसी मनुष्य को धुर्त या फिर किसी दूसरी तरह से परेशान करके मार दिया जाए तब वह आत्मा अवश्य ही पुनर्जन्म लेती है। इसके अलावा अकाल मृत्यु होने पर या फिर अपूर्व साधना को पूरा करने के लिए आत्मा पुनर्जन्म लेती है। तो मित्रो चलिए अब जानते हैं कि आखिर मृत्यु के बाद आत्मा जाती कहां है
मृत्यु के बाद आत्मा जाती कहां है
बता दें कि गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा को यमदूत सिर्फ 24 घंटों के लिए ही यमलोक लेकर जाते हैं। और इन्हें 24 घंटों के दौरान आत्मा को उसके द्वारा किए गए सभी पाप और पुण्य का लेखा-जोखा किया जाता है इसके बाद उस आत्मा को फिर से वही छोड़ दिया जाता है जहां उसने अपने प्राणों का त्याग किया था। फिर जब उस आत्मा के धरती पर 13 दिन बीत जाते हैं तब उसे वापिस यमलोक ले जाया जाता है।
बता दें कि मृत्यु के बाद जीवात्मा को यमलोक के मार्ग कई तरह के बाधाओं का सामना करना पड़ता है और इन्हीं बाधाओं में से एक यमलोक के मार्ग में पड़ने वाली वैतरणी नदी है मित्रों ऐसा माना जाता है कि पुण्य आत्मा तो इस नदी को बड़ी ही आसानी से पार कर लेती है लेकिन पापी आत्मा नदी में बूरी तरह प्रताड़ित की जाती है। गरुड़ पुराण में लिखा है की पक्षीराज गरुड़ श्रीहरि से पूछते हैं हे प्रभु मृत्युलोक और यमलोक के जो वैतरणी नदी से उस जीवात्मा का क्या संबंध है और इसे नदी में कैसे सजाएं मिलती है?
वैतरनी नदी का वर्णन
इसके जवाब में भगवान श्री हरि कहते हैं कि जो भी पापी आत्मा इस नदी मैं प्रवेश करती है वो रक्त रूपी जल पात्र में घी की तरह घोली जाती है। इस नदी का रक्त रूपी जल कीटाणुओं और वज्र के समान सिंह वाले जीवो से भरा होता है साथ ही यह नदी घड़ियाल मगरमच्छ और इसके जैसे अनेक हिंसक और मांस खाने वाले जंजरो से भरी होती है। नदी में जैसे ही कोई पापी आत्मा प्रवेश करती है तो वो 12 सूर्य की गर्मी के बराबर तपने लगती है।
इस महताप में पापी चिल्लाते हुए गरुड़ विलाप करने लगता है और जब ताप उससे बर्दाश्त नहीं होता तब वो दुरात्मा उस भयंकर रक्त रूपी जल में डुबकी लगाने लगती है। मित्रों जिन लोगों ने अपने जीवन में पाप किए होते हैं उन्हें नर्क भेजा जाता है वही जो अच्छे कर्म करता है उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है जहां बुरे कर्म करने वालों को नर्क में दंडित किया जाता है वहीं अच्छे कर्म करने वालों को स्वर्ग में सभी तरह की सुख-सुविधाओं के साथ रखा जाता है।
वही 13 दिन बीत जाने के बाद जब आत्मा को वापिस यमलोक ले जाया जाता है तब उसके कर्मों के हिसाब से उसे 4 लोको में से किसी एक लोक में भेजा जाता है जिनमें से पहला है ब्रह्मलोक ,दूसरा है देव लोक, तीसरा पितृलोक और चौथा है नर्क लोक। सबसे पहले बात करें ब्रह्मलोक की तो इसमें वो पुण्य आत्माएं पहुंचती है जिन्होंने योग और तप करके मौक्ष प्राप्त कर लिया हो। वही देवलोक में वो आत्माएं पहुंचती है जिन्हें कुछ समय यहां रहने के बाद फिर से मनुष्य योनि में जन्म लेना होता है।
गरुड़ पुराण: मृत्यु के बाद आत्मा कैसे लेती है पुनर्जन्म?
पितृलोक की बात करें तो यहां सिर्फ वही आत्माएं पहुंचती है जो अपने पितरों के साथ समय बीता कर फिर से मानव जीवन में जन्म लेने वाला है इसके अलावा नर्क लोक सिर्फ पापी या फिर बुरी आत्मा ही पहुंचती है। मित्रों ये सभी आत्माएं यहाँ कुछ समय रहने के बाद अपने अपने कर्मों के हिसाब से अलग-अलग योनि में जन्म लेती है ज्ञानी से ज्ञानी आस्तिक से आस्तिक और नास्तिक से नास्तिक व्यक्ति को इस नर्क का सामना करना पड़ता है क्योंकि ज्ञान और विचार से ये तय नहीं होता कि आप कैसे हैं और कैसे कर्म करते हैं
किसी भी धर्म देवता और पितरों का अपमान करने वाले तामसिक भोजन करने वाले पापी और क्रोधित व्यक्तियों को नरक में भेजा जाता है। अब कोई भी पापी इंसान उससे पहले धरती पर तो नर्क झेलना ही पड़ता है लेकिन फिर मरने के बाद उसे अपने पापों के अनुसार यमलोक में अलग-अलग जगह कुछ समय बिताना पड़ता है इसीलिए तो कहते हैं कि किसी का बुरा नहीं करना चाहिए। तो मित्रों आज हमने जाना की मृत्यु के बाद आत्मा कहां जाती है अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी हो तो शेयर जरूर करें।
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