मित्रों गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु ने गरुड़ को प्राणियों की मृत्यु, यमलोक यात्रा, नर्क योनियों तथा सदगति जैसे विषय से सम्बन्ध एवं अनेक रहस्यमयी प्रश्नों का उत्तर दिया है। इसी क्रम में यह भी बताया गया कि किसी व्यक्ति का दाह संस्कार करने के बाद उसके परिजनों को श्मशान घाट की तरफ पीछे मुड़कर कभी नहीं देखना चाहिए। आखिर क्या है इसका मुख्य धार्मिक कारण जिसका वर्णन हिंदू धर्म के गरुड़ पुराण में किया गया जो आज हम लोग इसके बारे में जानेंगे।[गरुड़ पुराण के अनुसार शमशान की तरफ पीछे मुड़कर क्यों नहीं देखते है?]
शमशान की तरफ पीछे मुड़कर क्यों नहीं देखते है?
जीवन का सबसे बड़ा सत्य मृत्यु है फिर भी कुछ लोग इस बात को मानने से कतराते हैं इसीलिए महाभारत में युधिष्ठिर ने यमराज कहा था कि दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि लोग रोज ना किसी न किसी की मृत्यु होते देखता है सुनता है लेकिन स्वयं वह अपने मरने के बारे में कभी नहीं सोचता है जबकि मौत तो सबको एक ना एक दिन आनी ही है। मित्रों हमारा शरीर पांच तत्व पृथ्वी,जल,वायु,अग्नि, हवा इसी से मिलकर बना हुआ है और एक दिन इसी में मिल जाना है,
हिन्दू धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक कुल 16 संस्कार है, जिनमें 16वा संस्कार है – अंतिम संस्कार। इस संस्कार के अंतर्गत कई वैदिक नियम बताए गए हैं जिनका पालन करना जरूरी होता है अन्यथा ऐसा माना जाता है अगर इन नियमों के पालन में किसी प्रकार की कमी हुई, तो मृतक की आत्मा को बड़े कष्ट उठाने पड़ सकते हैं। सूर्यास्त से पहले दाह संस्कार करना, कपाल क्रिया, पुरुष परिजनों का मुंडन, पिंडदान तथा श्राद्ध कर्म आदि यें इन सब क्रियाएं अंतिम संस्कार में शामिल है। ऐसे ही कुछ नियम है जिनका उल्लेख गरुड़ पुराण में मिलता है इसी में यह बताया गया है कि मृतक का दाह संस्कार करने के बाद उनके परिजनों में से किसी को भी शमशान घाट की तरफ पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए।
हिन्दू धर्म में दाह संस्कार के बाद पीछे मुड़कर क्यों नहीं देखते है -गरुड़ पुराण?
असल में दाह संस्कार करने के बाद शरीर तो जल जाता है मगर आत्मा का अस्तित्व वही रहता है क्युकि भगवान श्री कृष्ण ने गीता में बताया गया है की आत्मा को ना तो कोई शस्त्र मार सकती है ना पानी डूबा सकती है ना ही कोई से जला सकती है और ना ही कोई उसे मार सकती है आत्मा अजर अमर अविनाशी है। और वह आत्मा अपने शरीर का नाश होने पर अपने अंतिम संस्कार की सारी क्रिया खुद देखती है।
गरुड़ पुराण में आगे बताया गया है कि मृत्यु के बाद भी कुछ लोगों की आत्मा अपने परिजनों के साथ एक जबरदस्त मोह बना रहा था। आत्मा के मोह ग्रस्त होने पर व्यक्ति की आत्मा उसके परिजनों के आसपास भटकती रहती है इस स्थिति में मृतक की आत्मा को मुक्ति मिलने में काफी समय लग जाता है ऐसी स्थिति में इस मोह का टूटना बहुत जरूरी होता है क्यों कि अगर ऐसा ना हो तो मृतक की आत्मा को परलोक गमन नहीं हो पाता है।
शमशान घाट की तरफ पीछे मुड़कर क्यों नहीं देखा जाता है?
मृतक की आत्मा और परिजनों के बीच इस मोह रूपी धागे को तोड़ने के लिए कि दाह संस्कार के बाद कोई भी परिजन पीछे मुड़कर ना देखें। अगर किसी ने भी पीछे मुड़ कर देखा तो मृतक की आत्मा को यह लगेगा कि परिजनों के अंदर अभी भी मेरे प्रति लगाव है और वह लौट सकती है। और दाह संस्कार के बाद अगर किसी ने भी पीछे मुड़कर नहीं देखा तो आत्मा को या लगेगा कि अब उसका इस लोक में समय पूरा हो गया और वह अपने मन को दूसरे लोक में जाने के लिए तैयार कर ले।
मृतक की आत्मा और इस लोक में स्थापित संबंधों को तोड़ने के लिए और भी कई कर्मकांड है जो 13 दिन तक चलते रहते हैं जिनमे पीछे मुड़कर ना देखना प्रारंभिक चरण में आता है। शमसान में जलती चिता की ओर पीछे मुड़ कर देखने पर मृतक की आत्मा जीवित व्यक्ति को प्रभावित करके उन्हें सता भी सकती है। बच्चे आत्माओं के प्रभाव में जल्दी आ जाते है इसीलिए शमसान से लौटते समय बच्चों को आगे रखना चाहिए। मित्रों पीछे मुड़कर ना देखना आत्मा के लिए एक प्रकार का सन्देश होता है कि अब तुम्हारा जीवित लोगों एवं परिजनों से कोई सम्बन्ध नहीं रहा अब तुम दूसरे लोक को प्रस्थान करो। मोह के बंधन से मुक्ति के लिए आगे बढ़ो।
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