मित्रो पृथ्वी पर जिसने भी जन्म लिया है उसकी मृत्यु तय ही होती है यह एक ऐसा सत्य है जिसे बदलना नामुमकिन है। फर्क इतना है कि हर मनुष्य की मृत्यु अलग अलग तरीके से होती है, ऐसे में क्या आप ये जानते हैं कि गीता के अनुसार अकाल मृत्यु क्यों होती है?गीता के अनुसार मनुष्य असमय में ही क्यों मर जाता है?
गीता के अनुसार मनुष्य असमय में ही क्यों मर जाता है?
बता दें कि धरती में प्राणियों की संख्या इतनी है कि प्रत्येक दिन किसी न किसी की मृत्यु होती रहती है वही हर मनुष्य को मोक्ष भी प्राप्त नहीं होता। उनमें से कुछ ऐसी भी आत्माएं होती है जो सदियों तक धरती में ही रह जाती है। आपने कई बार देखा होगा कि आए दिन लोग दुर्घटना या फिर किसी प्राकृतिक आपदा का शिकार हो जाते हैं जिसके चलते उनकी मृत्यु हो जाती है, इस तरह की मौतों को धर्म शास्त्रों में अकाल मृत्यु कहा गया है।
आकाल मृत्यु क्यों होती है
अकाल मृत्यु वह स्थिति है जब मनुष्य का शरीर नष्ट हो जाता है किंतु आत्मा संसार में ही रह जाती है। लेकिन सवाल ये उठता है की अकाल मृत्यु के पीछे क्या कारण होता है और उसके बात चीत की आत्मा का क्या होता है। उससे पहले आपको बता दें कि अकाल मृत्यु क्यो होती है? गरुड़ पुराण के 7 अध्याय में उल्लेख मिलता है कि यदि कोई प्राणी भूख से तड़प तड़प कर मर जाता है या फिर जहरीला पदार्थ सेवन करने से या फिर पानी में डूबने से अगर किसी इंसान की मौत हो जाती है तो ऐसे मनुष्य को आकाल मृत्यु की श्रेणी में रखा जाता है।
आकाल मृत्यु किस वज़ह से होती है
बता दें कि अकाल मृत्यु किसी भी वजह से हो सकती है फिर चाहे वह किसी रोग के कारण ही क्यों ना हो। ऐसे में मनुष्य यही सोचता है कि काश ये उनके साथ नहीं हुआ होता तो यह इंसान बच गया होता। गरुड़ पुराण में भी श्रीहरि के वाहन पक्षीराज गरुड़ भगवान से पूछते हैं कि जब वेदों में मनुष्य की उम्र 100 साल निश्चित की गई है तो उनके अकाल मृत्यु क्यों हो जाती है?
तब विष्णु जी उत्तर में कहते हैं कि यह सच है वेदों में मनुष्य की उम्र 100 साल निर्धारित की गई है परंतु इसमें दुष्कर्म को नहीं मिलाया गया है, यानी हर व्यक्ति की मृत्यु तभी होती है जब उसके पास धर्म कार्यों के लिए शक्ति नहीं होती है या फिर उसका शरीर उसे धर्म कार्य करने की अनुमति नहीं देता।
इसके साथ ही जब कोई व्यक्ति अपनी इच्छा से धर्म कार्यों को त्याग देता है तो धरती पर उसके जीवन अवधि कम होती जाती है। मनुष्य की उम्र भले ही 100 साल हो लेकिन अपने कर्मों के माध्यम से वह अपनी उम्र को खुद ही नष्ट करता चला जाता है। धर्म व वेदों का ज्ञान ना होने के कारण व्यक्ति जान ही नहीं पाता कि वह कब कुकर्म करता चला जा रहा है। अब बात आती है कि अकाल मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है?
अकाल मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है?
गरुड़ पुराण में विष्णु जी आगे यह भी कहते हैं कि मनुष्य के जीवन के 7 चक्र निश्चित है ऐसे में अकाल मृत्यु को प्राप्त होने वाले जो मनुष्य इस चक्र को पूरा नहीं कर पाते उसे मृत्यु के बाद भी बहुत से कष्ट भोगने पड़ते हैं। दरअसल अचानक ही मृत्यु होने के चलते व्यक्ति की इच्छा कामना और तृष्णा बनी रहती है जो कभी पूरी नहीं हो पाती ऐसे में मनुष्य का शरीर नष्ट हो जाता है लेकिन आत्मा का मोह नहीं छुटता। इस स्थिति में अकाल मृत्यु वाली आत्माएं अपने घर वालों को कष्ट पहुंचाती है और अपनी इच्छाऐ को पूरी करने की कोशिश करती है।
बता दें कि गरुड़ पुराण में बताया गया है कि प्राकृतिक रूप से मरने वाले व्यक्तियों को 3,10 13 या 40 दिन मैं दूसरा शरीर प्राप्त हो जाता है लेकिन अकाल मृत्यु के बाद आत्मा पहले भूत, प्रेत ,पिशाच ,कुष्मांडा, ब्रह्मराक्षस ,बेताल और छत्रपाल योनि में भटकती रहती है उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलती है। बता दें कि इस पुराण में आत्महत्या को सबसे निंदनीय और घृणित अकाल मृत्यु बताया गया है। इसके संबंध में श्री हरि ने आत्महत्या को परमात्मा के अपमान करने के सामान अपराध बताया है।
आकाल मृत्यु का रहस्य – गरुड़ पुराण
ऐसी जीव आत्मा को ना तो स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है और ना ही नरक लोक की, जीवात्मा की इस अवस्था को अगति कहा जाता है। और तो और इस पुराण में ये भी उल्लेख है कि आत्महत्या करने वाली आत्मा अकाल मृत्यु को प्राप्त होने वाली सभी आत्माओं में सबसे कष्टदायी अवस्था में पहुंच जाती है। ये भी बता दें कि अगर कोई नवयुवकिय स्त्री के अकाल मृत्यु होती है तो वह चुड़ैल बन जाती है वहीं जब किसी कुंवारी कन्या की अकाल मृत्यु होती है तो वह देवी योनि में भटकती रहती है।
इन सबके अलावा इस पुराण में अकाल मृत्यु के चलते वृद्ध आत्मा के शांति प्रदान के लिए कई तरह के उपाय बताए गए हैं। जिसमें ये जिक्र है कि इस तरह की मृत्यु को प्राप्त करने वाली आत्मा द्वारा उनके परिवार नदी या तालाब में तर्पण करना चाहिए और साथ ही वृद्ध आत्मा की इच्छा की पूर्ति के लिए पिंडदान दान, पुण्य या गीता का पाठ करवाना चाहिए। यह सभी कार्य कम से कम 3 वर्षों तक करते रहना चाहिए इसी के साथ ही वर्षीय आने पर भुखे ब्राह्मणों ,अनाथ बालको को भोजन भी कराना चाहिए ताकि मृत आत्मा को जल्द से जल्द मुक्ति मिल सके। तो मित्रों गरुड़ पुराण से जुड़ी यह जानकारी आपको अच्छी लगी हो तो शेयर जरूर करें।
अकाल मृत्यु होने पर आत्मा को क्या कष्ट भोगना पड़ता है – गरुड़ पुराण?