हनुमान जी को अष्ट सिद्धियां और नौ निधियों का दाता क्यों कहा जाता है?

जानिए हनुमान जी को अष्ट सिद्धियां और नौ निधियों का दाता क्यों कहा जाता है?

हेलो दोस्तों स्वागत है आप लोगों का मैं बता दो कि पूरे संसार में मूल्यवान वस्तु नौ निधियां है जिसे पा लेने से किसी भी प्रकार की संपत्ति या कीमती वस्तुओं की जरूरत नहीं होती. बात करें सिद्धियांकी करें तो हनुमान जी के पास आठ सिद्धियां थी जिनके प्रभाव से वह कैसा भी रूप धारण कर सकते थे. जहां चाहे वहां जा सकते थे,पल भर में भारी से भारी वस्तुओं को एक जगह से उठाकर के दूसरी जगह रख सकते थे. तो आज हम लोग इसी के बारे में जानेंगे कि हनुमान जी को अष्ट सिद्धि और नौ निधियां का दाता क्यों कहा जाता है,तो चलिए जानते है?

हनुमान जी को अष्ट सिद्धियां और नौ निधियों का दाता क्यों कहा जाता है?

इससे जुड़ी एक हनुमान चालीसा की एक चौपाई के बारे में आप लोगों ने तो सुनी ही होगी अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता अस बर दीन जानकी माता जिसका मतलब है कि हनुमान जी के भक्ति से प्रसन्न होकर माता सीता ने उन्हें अजर अमर होने का वरदान दिया था और अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता होने का भी वरदान दिया.

हनुमान चालीसा के अलावा मार्कंडेय पुराण और ब्रह्म विवर्त पुराण में अष्ट सिद्धियां का उल्लेख किया गया है जिसमें सबसे पहले सिद्धि के वल पर हनुमान जी कभी भी सबसे सूक्ष्म रूप धारण कर सकते थे.इस सिद्धि का उन्होंने उपयोग तब किया था जब समुद्र पार करके लंका पहुंचे और माता सीता से मिले.

वही दूसरी सिद्धि के बल पर हनुमान जी ने कई बार विशाल रूप धारण किया, दरअसल जब हनुमान जी लंका जा रहे थे तब एक भयंकर राक्षसी ने उनका रास्ता रोका और इस दौरान उसकी पराजित करने के लिए बजरंगबली ने खुद को 100 योजन बड़ा कर लिया था. फिर तीसरी सिद्धि के मदद से वह अपना भार किसी विशाल पर्वत की तरह कर लेते थे इसका उपयोग उन्होंने महा भारतकाल मैं भीम के घमंड को समाप्त करने के लिए किया था.

वही चौथी सिद्धि की वजह से हनुमान जी अपना भार बिल्कुल हल्का करके कहीं भी आ जा सकते थे. उसके बाद पांचवें सिद्धि की सहायता व किसी भी वस्तु को तुरंत प्राप्त कर लेते थे कहा जाता है कि इस सिद्धि के सहायता से उन्होंने माता सीता की खोज करते समय कई पशु पक्षियों से बात भी की थी और अंत में माता सीता को खोज लिया था. इतना ही नहीं छठी सिद्धि के बल से भी पृथ्वी के गहराइयों में पाताल तक जा सकते थे साथ ही जब तक चाहे तब तक पानी में जीवित रह सकते थे.

सातवें सिद्धि की वजह से उन्हें  शक्तियां प्राप्त हुई थी जिसके कारण युद्ध में घायल हुए सैनिकों को पल भर में ठीक कर देते थे. अंतिम और आठवीं सिद्धि के वजह से हनुमान जी अपने मन को वश में रखते हुए किसी से भी जीत जाया करते थे तो.अब मैं आपको बताता हूं बजरंगबली के नौ निधियों के बारे में जो हर मनुष्य के जीवन में कार्य करती है.

नौ निधियों का महत्व

पहले पद्मनीधि जिस मनुष्य में पद्म निधि लक्षण होते हैं वह सात्विक होता है साथी वह सोने चांदी को इकट्ठा करके उन्हें गरीबों में बांट देता है.

दूसरा है महापद्म निधि इस लक्षण से भरा व्यक्ति अपने धन संपत्ति का दान ब्राह्मण या धार्मिक कार्य कर रहे पुरुषों को करता है.

तीसरा है नील निधि इस निधि से संपन्न व्यक्ति सदा अच्छे गुनो से सुशोभित होता है और उसकी संपत्ति तीन पीढ़ी तक चलती रहती है.

चौथा है मुकुंद निधि ऐसे लक्षण वाले व्यक्ति में रजोगुण संपन्न होते हैं और वह हमेशा राजा की तरह रहने की कोशिश करते हैं.

पांचवा नंद निधि नंद निधि से युक्त व्यक्ति रजोगुण और तमोगुण दोनों से ही संपन्न होता है और यही व्यक्ति अपने कल का मुखिया होता है.

छठा है मकर निधि इस निधि से युक्त व्यक्ति तरह-तरह के अस्तरों को जमा करने वाला होता है. सातवा है कच्छप निधि, इस निधि से युक्त व्यक्ति सिर्फ तमोगुण वाला होता है वह सारी संपत्ति को सिर्फ खुद पर ही उड़ाता है.

आठवां है शंख निधि बताया जाता है कि यह निधि सिर्फ एक पीढ़ी के लिए ही होती है इससे जुड़ा व्यक्ति सिर्फ खुद का चिंता करता है वह कमाता तो बहुत है Album फिर भी उसका परिवार गरीबी में जीता है.

नौवा और अंतिम निधि है खर्व निधि, संयुक्त व्यक्ति में सभाव मे इन सभी आठ निधियां के मिश्रित फल नजर आते हैं. तो इस प्रकार से हनुमान जी अष्ट सिद्धियों और नौ निधियां के देवता माने जाते हैं

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