पाताल लोक कैसा होता है पाताल लोक का वर्णन- विष्णु पुराण।

नमस्कार मित्रों जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हिंदू धर्म के अनुसार इस सृष्टि को 3 लोको में बांटा गया है जिसे हम लोग स्वर्ग लोग, पृथ्वीलोक और पाताल लोक के नाम से जानते हैं। स्वर्ग लोक में जहां देवता, गंधर्व, यक्ष, किन्नर एवं पुण्यात्मा लोग वास करते हैं और वही पृथ्वी लोक पर मनुष्य, पशु पक्षी एवं लाखों जीव जंतुओं के समूह निवास करते हैं। उसके बाद आता है पाताल लोक जिनमें बहुत ही कम लोग जानते हैं कि पाताल लोक कैसा होता है और वहां कौन-कौन रहते हैं आज के इस पोस्ट में हम पाताल लोक से जुड़ी कुछ रहस्यों के बारे में जानेंगे जिनका वर्णन विष्णु पुराण में किया गया है।(पाताल लोक कैसा होता है पाताल लोक का वर्णन )

पाताल लोक कैसा होता है पाताल लोक का वर्णन- विष्णु पुराण।

विष्णु पुराण के द्वितीय अंश के अध्याय 2 मैं बताया गया है कि पूरे भूमंडल का क्षेत्रफल 50 करोड़ योजन है और इसकी ऊंचाई 70 सहस्त्र योजन है और इनके नीचे 7 लोक है, जिनमें क्रमानुसार अतल, वितल, सुतल , तलातल , महातल, रसातल और पाताल लोक जो कि अंतिम में आता है। विष्णु पुराण में पाताल लोक को नाग लोक का मध्य भाग बताया गया है। यह जो सात प्रकार के पाताल लोक मे जो अंतिम पाताल लोक है वहां कि भूमि शुक्ल कृष्ण अरुण और पित्त वर्ण की शर्करामयी ( कंक्रीट ), शैली अर्थात पथरीली और स्वर्णमयी है। वहां असुर, दानव यक्ष एवं बड़े-बड़े नागों और मत्स्य कन्याओं की जातियां वास करती है। वहां अरुण नयन जो हिमालय पर्वत के समान एक ही पर्वत है। विष्णु पुराण के अनुसार इन सातों पाताल लोक के सात अलग-अलग राजा निवास करते हैं।

अतल पाताल लोक –

जिसमें अतल पाताल लोक के राजा मयदानव का पुत्र असुर बल है उसने 96 प्रकार की माया रची हुई है

वितल पाताल लोक-

जबकि वितल लोक मे भगवान हाटकेश्वर महादेव जी अपने भूत गण एवं पार्षदों के साथ रहते हैं और वे इस लोक पर राज करते हैं।वे प्रजापति की सृष्टि वृद्धि के लिए भवानी के साथ विहार करते रहते हैं। उन दोनों के प्रभाव से वहां हाट के नाम की सुंदर नदी बहती रहती है।

सुतल पाताल लोक –

उसके बाद वितल लोक के नीचे सुतल लोक के राजा बलि है जिसको भगवान विष्णु ने सतयुग मे वामन अवतार के समय 3 पग धरती मांग कर उसे सुतल लोक का राजा बना दिया।

तलातल पाताल लोक-

इसके बाद सुतल लोक के निचे तलातल पाताल लोक आता है इस लोक में त्रिपुरादीपति दानवराज मय का रहता है जो इस लोक मे शासन करता है।

महातल पाताल लोक –

इसके बाद इस लोक के निचे महातल मे कश्यप की पत्नी कद्रो से उत्पन्न हुए अनेक सिरों वाले सर्पों का क्रोधवश नामक एक समुदाय रहता है उनमें तक्षक, कालिया सुषेन और कहुक प्रधान नाग है।

रसातल पाताल लोक – 

उनके नीचे रसातल लोक आता है जिसमे पणि नाम के दैत्य और दानव रहते हैं। ये निवातकवच, कालेय और हिरण्यपुरवासी भी कहलाते हैं इनका देवताओं से सदा विरोध होता रहता है।

पाताल लोक- 

उसके बाद रसातल के नीचे पाताल लोक है जहाँ शंड्‍ड, कुलिक, महाशंड्ड, श्वेत, धनन्जय, धृतराष्ट्र, शंखचूड़, कम्बल, अक्षतर और देवदत्त जैसे बड़े क्रोधी और बड़े बड़े फनों वाले नाग रहते हैं। इनमें वासुकि नाग सबसे प्रधान है। इन सब मे किसी के पांच,किसी के सात, किसी के दस, किसी के सौ और किसी- किसी के हजार सिर हैं। उनके फनों के ऊपर की दमकती और चमकती हुई मणियां अपने प्रकाश से पाताललोक का सारा अंधकार को नष्टकर देती हैं।

पाताल लोक कैसा होता है – विष्णु पुराण।

विष्णु पुराण के एक कथा के अनुसार एक बार नारद जी को पाताल लोक देखने की इच्छा तो वे भगवान विष्णु की आज्ञा लेकर वह पाताल लोक भ्रमण के लिए निकल गए और कुछ समय बाद जब वह स्वर्गलोक लौटे तो वहां के देवताओं ने उनसे पूछा – कि देवर्षि पाताल लोक कैसा है हमें भी बताइए ? तब नारदजी ने पाताल लोक का वर्णन करते हुए कहा कि – पाताल लोक देखने में स्वर्ग से भी सुंदर है वहां निवास करने वाले शुभ्रामणियों से सुशोभित आभूषणों को धारण करते हैं। वहां की कन्याओं को देखने के बाद कोई ऐसा पुरुष ना होगा जिसे उससे प्रीत ना होगी।

जहां दिन में सूर्य की किरणें केवल प्रकाश ही करती है जिनमें गर्मी नहीं करती है तथा रात में चंद्रमा की किरणों से शीत नहीं होता केवल चांदनी ही फैलती है। जहां भक्ष्य भोज और महापाण आदि भोगों से आनंदित सर्पों एवं दानवों को समय जाता हुआ व्यतीत प्रतीत नहीं होता है। जहां सुंदर वन, नदियां, रमणीय सरोवर, और कमलों के वन है वहां नर कोकिलों की सु मधुर गूंज गूंजती है। पाताल निवासी असुर एवं दानव  और नाग गण द्वारा अति स्वच्छ आभूषण, सुगंध मय अनु लेपन, वीणा, वेणु एवं मृदंग आदि के स्वर तथा अनेक भोग भोगे जाते हैं।

इसके अलावा पाताल लोक में शेषनाग भी निवास करते हैं जिनका देवगण भी अनंत कहकर बखान करते हैं। वे अति निर्मल एवं स्वस्तिक चिन्ह से विभूषित तथा सहस्त्र सिर वाले हैं। जो अपने सर के सहस्त्र फणो की मणियों से सभी दिशाओं को प्रकाशित करते हुए एवं संसार के कल्याण के लिए समस्त असुरों को वीर्यहीन करते रहते हैं।

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