बच्चों की आत्माओं को नरक क्यों नहीं भेजा जाता?

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बच्चों की आत्माओं को नरक क्यों नहीं भेजा जाता?

क्या हिंदू धर्म में बच्चों की आत्माओं को भी मिलती है नर्क की सजा. मित्रों वैसे तो हम सभी जानते हैं कि मनुष्य को मृत्यु के बाद उसके कर्मों के अनुसार ही स्वर्ग और नरक मिलता है ,लेकिन परमात्मा का रूप माने जाने वाले उन बच्चों का क्या जिनके बारे में यह सोचा जाता है कि क्या उनकी भी आत्माओं को भी नरक की सजा मिलती है .आइए जानते हैं इस पोस्ट में इस प्रश्न का उत्तर .बच्चों की आत्माओं को नरक क्यों नहीं भेजा जाता?

बच्चों की आत्माओं को नरक क्यों नहीं भेजा जाता?

ऐसा माना जाता है कि भगवान उनकी सारी गलतियां माफ कर देते हैं लेकिन क्या अल्पायु में मरने वाले बच्चों के साथ भी ये होता है या फिर उनके कर्मों के अनुसार ही नर्क और स्वर्ग प्राप्त होता है. पुराणों की माने तो जिन बच्चों की मृत्यु 15 या उससे कम उम्र में हो जाती है उन्हें नर्क की आग में नहीं चलना पड़ता है .स्वर्ग में खुद भगवान नारायण उन बच्चों का स्वागत करते हैं आमतौर पर मनुष्य को स्वर्ग और नर्क उनके कर्मों के अनुसार मिलता है. लेकिन इस उम्र में बच्चों को स्वर्ग नर्क और कर्मों का ज्ञान नहीं होता. अपने भोलेपन और मासूमियत मैं बच्चे कई ऐसे गलतियां कर देते हैं जिन्हें उनके मां-बाप तो क्या भगवान भी मुस्कुरा कर माफ कर देते हैं .

बच्चों की आत्माओं को स्वर्ग ही क्यों मिलता है

अब सोचने वाली बात है कि बच्चों की आत्माओं को स्वर्ग ही क्यों मिलता है पुराणों में लिखी एक कथा के अनुसार एक  दिन मृत्यु के बाद कुछ बच्चों की आत्मा स्वर्ग के दरवाजे पर पहुंचे .उन बच्चों की आत्मा को देख कर वहां के द्वारपालों ने स्वर्ग के दरवाजे खोल दिए. लेकिन द्वार खुलने के बाद भी वो आत्माएँ अंदर नहीं आई चेहरे में मासूमियत लिए उनकी आंखें बस अपने माता पिता को ही ढूंढ रही थी. ऐसा लग रहा था मानो जैसे उनके माता-पिता के बिना स्वर्ग भी उनके लिए बेकार है.

जब भगवान विष्णु ने ये देखा तब उन्होंने बड़े ही प्यार से कहा बालकों तुम सब वहां द्वार पर क्यों खड़े हो अंदर आओ स्वर्ग के द्वार तुम लोगों के लिए ही खोले गए हैं यहां सभी तुम्हारा ही इंतजार कर रहे हैं. प्रभु की इतनी कहने पर उन सभी भोली आत्माओं के आंखों में आंसू भर आए उन्होंने कहा प्रभु हम अंदर तो आ जाएं पर आप पहले ये बताएं कि हमारे माता-पिता कहां है उनके बिना हम स्वर्ग के अंदर कैसे आ सकते हैं.

बच्चों की आत्मा की ये बात सुनकर विष्णु जी ने उन्हें प्यार से समझाते हुए कहा बच्चों तुम्हारे माता-पिता अभी जीवित है इसीलिए वह धरती पर ही है जब उनकी मृत्यु हो जाएगी उसके बाद ही वो यहां आ पाएंगे. बच्चों ने मुस्कुरा कर कहा ठीक है प्रभु हम सभी अपने माता-पिता का इंतजार यही द्वार पर ही करेंगे और वह जब आ जाएंगे तब उनके साथ ही अंदर आएंगे. आत्माओं की यह बात सुनकर नारायण परेशान हो गए वो यह सोचने लगे कि अब बच्चों के आत्माओं को यह कैसे समझाया जाए कि उन सभी के माता-पिता स्वर्ग नहीं आ सकते.

बच्चों की आत्मा और स्वर्गलोक की कथा 

कुछ देर सोचने के बाद परमात्मा फिर बच्चों से मिलने फिर आए उन्होंने कहा बच्चों यह जरूरी नहीं कि तुम सबकी माता पिता स्वर्ग ही आए उन्हें स्वर्ग और नर्क उनके कर्मों के अनुसार ही मिलेगा. अगर उन्होंने अच्छे कर्म किए होंगे तो उन्हें स्वर्ग मिलेगा और अगर बुरे कर्म किए होंगे तो उन्हें नर्क मिलेगा. धर्म-कर्म की बातों से अनजान उन बच्चों की आत्मा प्रभु से कई तरह के सवाल करती रही लेकिन स्वर्ग के अंदर नहीं गई .

समय बीतता गया उन बच्चों की आत्माओं के माता पिता को उनके कर्मों के अनुसार स्वर्ग और नर्क मिलता रहा. जिन  माता पिता को स्वर्ग मिला उन सभी के बच्चे उनके साथ स्वर्ग के अंदर चले गए लेकिन कुछ बच्चे अभी भी अपने माता-पिता का इंतजार उसी दरवाजे पर ही कर रहे थे. ये देखकर भगवान विष्णु को चिंता होने लगी वो एक बार फिर उनके पास गए और बोले बच्चों तुम्हारे माता-पिता ने अच्छे कर्म नहीं किए हैं इसीलिए वो स्वर्ग में नहीं आ सकते अब तुम लोग भी अपनी जिद्द छोड़ो और अंदर आ जाओ.

अपने माता-पिता के बारे में ऐसी बातें सुनकर वो आत्माएं भगवान से भी बहस करने लगी और उनसे बोले प्रभु जब आप हमारी गलतियों को माफ कर सकते हैं तो हमारे माता-पिता की क्यों नहीं, इतना ही नहीं उन लोगों ने यह भी कहा कि अगर आपके लिए ऐसा करना मुश्किल है तो आप हमें ही उनके पास यानी नर्क में भेज दीजिए.

यह सुनकर नारायण चौक गए उन्होंने उन मासूम आत्माओं को बार-बार समझाया लेकिन बच्चों की आत्मा कुछ भी मानने को तैयार ही नहीं हुई.आखिर में उनके जिद के आगे हार मानकर नारायण ने उनके माता पिता के गलत कर्मों को ना सिर्फ साफ किया बल्कि उन्हें स्वर्ग में भी जगह दिया. इसके बाद सभी बच्चों ने अपने माता-पिता के साथ स्वर्ग मे खुशी-खुशी प्रवेश किया.

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