बद्रीनाथ मंदिर के बारे में पौराणिक कथा जाने क्यों है?
कहा जाता है कि जो मनुष्य एक बार बद्रीनाथ धाम की जो दर्शन कर लेता है फिर उसका मनुष्य जीवन सफल हो जाता है। वही हमारे शास्त्रों में भी उल्लेखित है कि व्यक्ति को अपने जीवन में दो बार कम से कम बद्रीनाथ धाम के दर्शन अवश्य करना चाहिए। तो दोस्तों क्या है आखिर बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास, तो आज हम लोग बद्रीनाथ मंदिर के बारे में जानेंगे।बद्रीनाथ मंदिर के बारे में पौराणिक कथा जाने क्यों है?
बद्रीनाथ मंदिर के बारे में पौराणिक कथा जाने क्यों है?
बद्रीनाथ पुराणों के अनुसार इसे आठवां बैकुंठधाम भी कहा जाता है। यह मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है। तो चलिए जानते हैं सबसे पहले इसके प्राचीन इतिहास के बारे में। हिंदू धर्म एवं पुराणों में मिलने वाली कथाओं के अनुसार एक बार भगवान विष्णु ने नीलकंठ पर्वत के पास बाल रूप में अवतार लिया। कहा जाता है कि बद्रीनाथ पहले भगवान शिव और माता पार्वती के निवास स्थान था जिसे एक युक्ति के जरिए भगवान विष्णु ने भोलेनाथ से यह स्थान मांग लिया था।
एक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु अपने ध्यान एवं शयन के लिए एक उपयुक्त स्थान ढूंढ रहे थे तभी उनकी दृष्टि अलकनंदा नदी के समीप इस स्थान पर पड़ी। भगवान विष्णु जानते थे कि बद्रीनाथ भगवान शिव और माता पार्वती के निवास स्थान है इस स्थान को पाने के लिए भगवान विष्णु ने ऐसे में उन्होंने एक उपाय सोची, जब एक बार माता पार्वती और भगवान शिव भ्रमण के लिए बाहर आए तो उन्होंने अपने द्वार पर एक नन्हे शिशु को रोते हुए देखा यह शिशु कोई और नहीं भगवान विष्णु ही थे।
बद्रीनाथ मंदिर –
शिशु को रोते हुए देख कर माता पार्वती की ममता जाग गई और उन्होंने उस शिशु को अपनी गोद में उठा लिया। उसके बाद माता पार्वती ने उस शिशु को अपने साथ अपने निवास स्थान पर ले कर चली गई। उसके बारे में माता पार्वती ने उस शिशु की देखभाल करने लगी। एक दिन वह शिशु सो रहा था तब माता पार्वती उस शिशु को सोए हुए छोड़कर स्नान करने के लिए बाहर चली गई।
उसके बाद जब भगवान शिव और माता पार्वती अपने निवास स्थान की ओर आ रहे थे उन्होंने देखा कि निवास स्थान का दरवाजा बाहर से बंद है। तब माता पार्वती ने शिवजी से कहा कि अब हम क्या करें हमारा बालक अंदर में है, इस पर शिवजी ने कहा कि यह तुम्हारा बालक है इसलिए मैं कुछ नहीं कर सकता और ना ही मैं बलपूर्वक यह दरवाजा खोल सकता हूँ।
इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती उस स्थान को छोड़कर केदारनाथ चले गए। मित्रों मैं आपको यह बता दो कि यह बालक कोई और नहीं भगवान विष्णु थे जो इस स्थान को पाने के लिए उन्होंने यह लीला रची थी इस प्रकार बद्रीनाथ को भगवान विष्णु ने अपना विश्राम स्थल बना लिया।
बद्रीनाथधाम का नाम कैसे पड़ा।
तो दोस्तों आगे हम जानेंगे भगवान विष्णु को इस स्थान का नाम बद्रीनाथ धाम कैसे पड़ा तो चलिए जानते हैं। यह कथा इस प्रकार है कि एक बार भगवान विष्णु अपने ध्यान योग में इस स्थान पर विश्राम कर रहे थे तभी वह बहुत ही ज्यादा हिमपात यानि कि बर्फ पड़ने लगी। तब फिर भगवान विष्णु और उनका निवास स्थान पूरी तरह से बर्फ से ढक गया यह देखकर माता लक्ष्मी व्याकुल हो गई फिर माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु के समीप होकर पेड़ का रूप ले लिया ताकि भगवान विष्णु के ऊपर गिर रही बर्फ उनके ऊपर ना गिर सके।
यह सिलसिला सालों तक चलता है और भगवान विष्णु अपनी तपस्या में लीन थे। और जब भगवान विष्णु की तपस्या पूरी तो जब उसकी आंख खुली तो उन्होंने देखा देवी लक्ष्मी पेड़ का रूप लेकर उनके समीप खड़ी हुई है और पूरा पेड़ बर्फ से ढका हुआ है। भगवान विष्णु ने कहा कि हे देवी तुमने भी मेरे बराबर तप किया है तो आज से इस स्थान पर तुम्हें भी मेरे बराबर पूजा जाएगा। और जो तुमने मेरी रक्षा बद्रीपेड़ के रूप में की है तो आज से मुझे बद्री पेड़ के नाम से पूजा जाएगा।
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