मित्रों एक तरफ जहां हमारा हिंदू धर्म ग्रंथ ज्ञान के भंडार से भरा पड़ा है तो वहीं दूसरी ओर इसमें कई ऐसी रहस्यमई और चमत्कारी कथाएं जुड़ी भी है जिन्हें सुनकर लोग अचंभित रह जाते हैं उन्हीं में से एक हैं खाटू श्याम जी की कथा। इससे जुड़े रहस्य आज भी एक पहेली है तो चलिए जानते हैं इस रोचक कथा के बारे में।बाबा खाटू श्याम जी की कथा?
बाबा खाटू श्याम जी की कथा?
खाटू श्याम जी की कहानी महाभारत काल से संबंधित है। महाभारत महाकाव्य का एक प्रमुख पात्र था जिसका नाम बर्बरीक था। जो भीम का पोता अर्थात घटोत्कच का पुत्र था। बर्बरीक बचपन से ही बहुत वीर योद्धा था उसने कई सारी युद्ध कलाएं अपनी माता से सीखी थी। बर्बरीक भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था और उसकी इस भक्ति से प्रसन्न होकर महादेव ने उसे तीन अचूक वाण दिए थे जिसके आगे बड़ी से बड़ी शक्ति क्षीण हो जाती थी और इसी वजह से बर्बरीक तीन वाण धारी के नाम से भी विख्यात था।
इतना ही नहीं मित्रों अग्निदेव ने भी बर्बरीक को एक दिव्य तीर दिया था जिससे वो तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर सकता था। जब बर्बरीक को यह ज्ञात हो गया कि पांडवों और कौरव के बीच युद्ध अटल है तो उसके अंदर यह इच्छा उत्पन्न हुई कि वह महाभारत का पूरा युद्ध देखें और उसने अपनी मां को वचन दिया कि वो युद्ध में सहभागी होना चाहता है तथा वो उस पक्ष की ओर से युद्ध लड़ेगा जो हार के करीब होगी। इसके बाद बर्बरीक नील घोड़े पर सवार होकर अपने तीन वाण लेकर युद्ध के लिए रवाना हो गया।
दूसरी ओर श्री कृष्ण भगवान जिनकी लीला अपरंपार है उनको ये पता चल गया और उन्होंने ब्राह्मण का वेश धारण कर बर्बरीक को रास्ते में रोका ताकि वो उसकी शक्ति का मूल्यांकन कर सके। उन्होंने बर्बरीक को उकसाते हुए कहा कि बर्बरीक ये बताओ तो सिर्फ तीन बाण के दम पर युद्ध कैसे लड़ोगे बर्बरीक ने उत्तर देते हुए कहा कि उसका एक बाण ही दुश्मन की सेना के लिए पर्याप्त है और वो वापस अपने नरकस मे लौट आएगा।
आगे अपनी बात को रखते हुए बर्बरीक ने श्रीकृष्ण को बताया कि उसके पहले तीर से वो निशान बनायेगा जिसको उसे समाप्त करना है और उसके बाद तीसरा तीर छोड़ने पर उसके निशान वाले सभी चीजे नष्ट हो जाएगी उसके बाद वह तीर वापस नरकस मे लौट आयेगा। अगर वो दूसरे तीर का प्रयोग करेगा तो पहले तीर से जो भी निशान लगाए गए थे वो सभी चीजें सुरक्षित हो जाएंगी कुल मिलाकर उसने यह बताया कि वह एक तीर से तबाही और एक तीर से सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम है।
बर्बरीक कैसे बने खाटू श्याम जी
जब श्रीकृष्ण को बर्बरीक की इस दिव्य और अदभुत शक्ति के बारे में पता चला तो उन्होंने बर्बरीक की शक्ति का नमूना देखना चाहा और कहा की अगर वो जिस पीपल के पेड़ के नीचे खड़ा है उसके सभी पत्तों को आपस में भेद देगा तो उनको बर्बरीक की शक्ति पर विश्वास हो जाएगा। बर्बरीक जो कि एक महान योद्धा था उसने श्रीकृष्ण की यह चुनौती सहज स्वीकार कर ली तथा तीर छोड़ने से पहले ध्यान लगाने के लिए आंखें बंद कर ली तब श्री कृष्ण ने माया रचते हुए बर्बरीक को पता लगे बिना पीपल की एक पत्ते को तोड़कर अपने पैरों के नीचे छुपा लिया।
जब बर्बरीक ने पहला तीर छोड़ा तो सभी पत्तियों पर निशान हो गए और अंत में तीर श्री कृष्ण के पैरों के आस पास घूमने लगे। अब श्री कृष्ण ने बर्बरीक से पूछा की तीर भी मेरे पैरों के चारों ओर क्यों घूम रहा है। इस पर बर्बरीक ने जवाब दिया कि शायद आपके पैरों के नीचे एक पत्ती रह गई है और ये तीर उसी छुपी हुई पत्ती को निशाना बनाने के लिए पैरों के चारों ओर घूम रहा है। बर्बरीक ने श्री कृष्ण से कहा ब्राह्मण राज आप अपना पैर यहां से हटा लीजिए वरना यह तीर आपका पैर भेद देगा। ओर जैसे ही श्री कृष्ण ने अपना पैर वहां से हटाया उस छुपी हुई पत्ती पर भी निशान हो गया।
उसके बाद बर्बरीक के तीसरे तीर से सारी पत्तियां इकट्ठी हो गई और आपस में बंध गए तब श्री कृष्ण यह जान गए कि बर्बरीक के तीर अचूक हैं। लेकिन अपने निशाने के बारे में खुद बर्बरीक को भी पता नहीं रहता है इस घटना से श्री कृष्ण ने ये निष्कर्ष निकाला की असली रणभूमि में श्री कृष्ण अगर पांडव भाइयों को अलग कर दें और उन्हें कहीं छिपा देंगे ताकि वो बर्बरीक का शिकार होने से बच जाए तब भी बर्बरीक के तीरों से कोई नहीं बच पाएगा।
इस प्रकार श्री कृष्ण को बर्बरीक की शक्ति का पता चल गया कि उनकी अचूक तीरों से कोई नहीं बच सकता तब श्री कृष्ण ने युद्ध में उनकी तरफ से लड़ने का प्रस्ताव दिया। बर्बरीक ने अपनी गुप्त बात उनको बताई कि उसने अपनी माता को बचन दिया है कि वो केवल हार रही सेना के तरफ से लड़ेंगे। वही कौरव को बर्बरीक के इस वचन के बारे में पता था इसलिए उन्होंने युद्ध के पहले दिन अपनी ग्यारह अश्वनी सेना को नहीं उतारा था ताकि जब कौरवों की सेना पहले दिन पांडवों से हार जाए तो बर्बरीक कौरवों का सहयोग कर पांडवों का विनाश कर देगा।
बर्बरीक की शीश दान की कथा
इस प्रकार जब वो कौरवो की तरफ से लड़ेगा तो पांडवों की लड़ रही सेना कमजोर हो जाएगी उसके बाद वो पांडवों की सेना में चला जाएगा इस तरह वो दोनों सेनाओं में घूमता रहेगा। श्री कृष्ण को अब ये बात समझ आने लगी थी कि अगर बर्बरीक इस महायुद्ध में शामिल हुआ तो कोई भी सेना विजय नहीं हो पाएगी और अंत में कौरव पांडव दोनों का विनाश हो जाएगा और केवल बर्बरीक शेष रह जाएगा।
तब श्री कृष्ण ने विचार किया कि बर्बरीक को रोकने के लिए उनको बर्बरीक से उनकी जान मांगनी होगी तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक से दान की मांग की, तब बर्बरीक ने कहा प्रभु आपकी जो इच्छा हो मैं आपको देने को तैयार हूं आप मांग लीजिए जो मांगना चाहते हैं इस पर श्री कृष्ण ने दान में बर्बरीक का शीश मांग लिया। बर्बरीक भगवान श्री कृष्ण की इस बिरली और विचित्र मांग को सुनकर चकित रह गया और इस अनोखी मांग पर उसने ब्राह्मण को अपनी असली पहचान बताने को कहा।
बर्बरीक के ऐसा कहने पर श्री कृष्ण ने बर्बरीक को अपने विराट रूप के दर्शन कराए और बर्बरीक उसे देखकर धन्य हो गया। श्री कृष्ण ने तब बर्बरीक को समझाया कि रणभूमि में युद्ध से पहले सबसे वीर क्षत्रिय को बलि देनी पड़ती है इसलिए मैं तुमसे तुम्हारा सिर दान मांग रहा हूं और मैं तुमको इस धरती का सबसे वीर क्षत्रिय होने का गौरव देता हूं। अपने वादे को निभाते हुए श्री कृष्ण के आदेश पर बर्बरीक ने अपना सिर दान में दे दिया। ये घटना फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष के 12 वें दिन हुई थी।
बाबा खाटू श्याम जी की पौराणिक कहानी ?
अपनी जान देने से पहले बर्बरीक ने श्री कृष्ण से अपनी एक इच्छा जाहिर की कि वो महाभारत की युद्ध को अपनी आंखों से देखना चाहता है श्री कृष्ण ने उसकी यह इच्छा मान ली और उसका सिर अलग करने के बाद उसके सिर को एक बहुत ऊंची पहाड़ी पर रख दिया जहां से रणभूमि साफ नजर आती थी उसी जगह से बर्बरीक के सिर ने पूरे महाभारत का युद्ध देखा था।
युद्ध खत्म होने के पश्चात विजय हुई पांडव भाइयों ने एक दूसरे से बहस करना प्रारंभ कर दिया की युद्ध की जीत का जिम्मेदार कौन है तो श्री कृष्ण ने बर्बरीक के सिर को इस निर्णय लेने को कहा कि किसकी वजह से पांडव युद्ध जीते। तब बर्बरीक के सिर ने सुझाव दिया कि श्री कृष्ण अकेले ऐसे है जिनकी वजह से महाभारत युद्ध मैं पांडवों की जीत हुई क्योंकि उनकी रणनीति की रणभूमि में अहम भूमिका थी और इस धर्म युद्ध में धर्म की जीत हुई।
महाभारत युद्ध के बाद बर्बरीक के सिर को श्री कृष्ण ने रुपवती नदी में बहा दिया कई सालों बाद कलयुग की शुरुआत मैं उनका सिर जमीन मैं दफ्न वर्तमान राजस्थान के खाटू गांव में मिला। कलयुग की शुरुआत में इस जगह को छुपाए हुए रखा गया 1 दिन उस जगह पर गाय के स्तन से अचानक दूध गिरने लगा इस चमत्कारी घटना को देखते हुए स्थानीय गांव वालों ने उस जगह को खोदा और वो सिर बाहर निकाला।
उस सिर को एक ब्राह्मण को सौंप दिया गया जिसने कई दिनों तक उसकी पूजा की जब तक की कोई चमत्कार ना हो जाए। खाटू के राजा रूप सिंह चौहान को एक सपना आया कि उनको एक मंदिर बनवाना है जिसमें इस सिर को स्थापित करना है तब मंदिर का निर्माण शुरू किया गया और फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष कि 11 वें दिन उनकी प्रतिमा को स्थापित किया गया।