मित्रों हम सब ने लोको के बारे में अवश्य सुना होगा पर लोक कितने होते हैं और उनकी विशेषता क्या है इसके बारे में कम ही सुनने को मिलता है,हमारे हिंदू धर्म ग्रंथों में इसका उल्लेख किया गया है. आज की इस पेज में हम आपको समस्त लोको की जानकारी प्रदान करेंगे. मित्रों लोक का एक अन्य नाम भूवन भी है. विष्णु पुराण में लोको के बारे में विस्तार पूर्वक बताया गया है जिसके अनुसार लोको की संख्या 14 है इनमें सात लोको को ऊर्ध्व लोक व 7 को अधो लोक कहा गयाहै. ब्रह्मांड में 14 लोकों का नाम एवं इनमें कौन-कौन निवास करते है?
14 लोकों का नाम एवं इनके निवासी
भूलोक
मित्रों सबसे पहले आता है जिसे हमलोग धरती लोक के नाम से जानते है. जिसे कर्म लोक भी कहते हैं, जहां पर 8400000 योनियों के जीव जंतु एवं मनुष्य समुदाय निवास करते हैं. भूलोक वह लोक जहां मनुष्य पैरों से या हवाई जहाज , वाहन आदि से जा सकता है. हमारी पूरी पृथ्वी भूलोक के अंतर्गत है यहां आपको कई तरह के विद्युत चालित वाहन देखने को मिलते हैं.
भुवर्लोक
पृथ्वी और सूर्य की बीच के स्थान को भूवर्लोक कहते हैं. इस लोक मैं अंतरिक्ष वासी देवता निवास करते हैं.
स्वर्लोक
हिंदू धर्म में संस्कृत शब्द में स्वर का निरु पर्वत ऊपर लोको हेतु प्रयुक्त होता है यह वह स्थान है जहां पुण्य करने वाला अपने पुण्य क्षीण होने तक अगले जन्म लेने से पहले तक रहता है. यह स्थान उन आत्माओं के लिए है जिन्होंने पुण्य तो किए हैं लेकिन उनमें अभी मोक्ष या मुक्ति नहीं मिली है. यहां सब प्रकार के आनंद है एवं पापों से परे रहते हैं इस क्षेत्र में इंद्र आदि स्वर्गवासी देवता निवास करते हैं. इन्ही 3 लोको को ही त्रिलोकी या त्रिभुवन कहा गया है इंद्र आदि देवताओं का अधिकार क्षेत्र इन्हीं लोको तक सीमित है.
महर लोक
मित्रों यह अपने आप में से सबसे विचित्र और बिरला लोक हैं. यह लोक ध्रुव से एक करोड़ योजन दूर है. यहाँ भृगु आदि सिद्धगण निवास करते हैं। यह स्थान जन शून्य अवस्था में रहता है जहां प्रलय काल में सामान्य या पापी आत्माएं स्थिर अवस्था में रहती है. यहीं पर महाप्रलय के दौरान सृष्टि भस्म के रूप में विद्यमान रहती है यह लोक कृतक त्रिलोक और अकृतक त्रिलोक के बीच स्थित है.
जनलोक
यह लोक महर लोक से दो करोड़ योजन ऊपर है. इस लोक मैं यहाँ सनकादिक आदि ऋषि निवास करते हैं एवम् कई प्रकार विद्वान व तपस्विनी ऋषि आदि निवास करते हैं.
तप लोक
यह लोक जनलोक से 8 करोड़ योजन दूर है यहां विराज नाम के देवता का निवास स्थल है.
सत्यलोक
यह लोक तप लोक से 12 करोड़ योजन ऊपर है यहां ब्रह्मा निवास करते हैं अर्थात इसे ब्रह्मलोक भी कहते हैं. सर्वोच्च श्रेणी के ऋषि मुनि यही निवास करते हैं इसीलिए इस लोक का एक अलग ही पुराणिक महत्व है जैसा कि विष्णु पुराण में कहा गया है कि नीचे के तीनों लोकों का स्वरूप उस तरह से चिरकालिक नहीं है जिस तरह से ऊपर के लोको का है और वे प्रलय काल में नष्ट हो जाते हैं. जबकि ऊपर के तीनो लोक इससे अप्रभावित रहते हैं अतः भूलोक भुवर्लोक और स्वर्लोक को कृतक लोक कहा गया है और जन लोक , तपलोक और सत्यलोक को अकृतक लोक महरलोक प्रलय काल के दौरान नष्ट नहीं होता पर रहने के आयोग हो जाता है अतः वहां के निवासी जनलोक चले जाते हैं जिस कारण महर लोक को कृतकाकृतक कहा गया है.
जिस तरह से ऊर्ध्व लोक है उसी तरह 7 अधो लोक भी हैं जिन्हें पाताल कहा गया है इन सात पाताल लोको के नाम इस तरह है –
पाताल लोक के नाम
अतल
यह हमारी पृथ्वी से 10000 योजन की गहराई पर है इसकी भूमि सुकल यानि सफेद है. जिसमें इस पाताल लोक के राजा मयदानव का पुत्र असुर बल है उसने 96 प्रकार की माया रची हुई है.
वितल
यह अतल से भी 10 हजार योजन नीचे है इसकी भूमि कृष्ण यानी काली है. इस लोक में भगवान हाटकेश्वर महादेव जी अपने भूत गण एवं पार्षदों के साथ रहते हैं और वे इस लोक पर राज करते हैं।वे प्रजापति की सृष्टि वृद्धि के लिए भवानी के साथ विहार करते रहते हैं। उन दोनों के प्रभाव से वहां हाट के नाम की सुंदर नदी बहती रहती है।
नितल
यह वितल से भी 10000 योजन नीचे है इसकी भूमि अरुण यानी प्रातः कालीन सूर्य के रंग की है.वितल लोक के नीचे नितल लोक के राजा बलि है जिसको भगवान विष्णु ने सतयुग मे वामन अवतार के समय 3 पग धरती मांग कर उसे सुतल लोक का राजा बना दिया।
गभस्तिमान
यह नितल से भी 10000 योजन नीचे है इसकी भूमि पीट यानि पीली है. इस लोक में त्रिपुरादीपति दानवराज मय का शासन काल है।
महातल
गभस्तिमान से यह भी10000 योजन नीचे है इसकी भूमि सक्रमाई यानी कंक्रिली है. इसमें कश्यप की पत्नी कद्रो से उत्पन्न हुए अनेक सिरों वाले सर्पों का क्रोधवश नामक एक समुदाय रहता है उनमें तक्षक, कालिया सुषेन और कहुक प्रधान नाग है।
सुतल
यह महातल से 10000 योजन नीचे है इसकी भूमि शैली अर्थात पथरीली बताई गई है.यहाँ पर पणि नाम के दैत्य और दानव रहते हैं। ये निवातकवच, कालेय और हिरण्यपुरवासी भी कहलाते हैं.
पाताल
यह सुतल से भी 10 हजार योजन नीचे है इसकी भूमि सुवर्णमयी यानी स्वर्ण निर्मित है.यहाँ पर शंड्ड, कुलिक, महाशंड्ड, श्वेत, धनन्जय, धृतराष्ट्र, शंखचूड़, कम्बल, अक्षतर और देवदत्त जैसे बड़े क्रोधी और बड़े बड़े फनों वाले नाग रहते हैं। इन सब के पांच, किसी के सात, किसी के दस, किसी के सौ और किसी- किसी के हजार सिर हैं। उनके फनों के ऊपर की दमकती और चमकती हुई मणियां अपने प्रकाश से पाताललोक का सारा अंधकार को नष्टकर देती हैं।