भगवान राम और लक्ष्मण की मृत्यु कैसे हुई जानिए पौराणिक कथाओं के अनुसार

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दोस्तों आप सब ने रामायण तो जरूर देखी या पढ़ी होगी जिसमे भगवान विष्णु के 7 वे अवतार भगवान राम के जीवन चरित्र के बारे में बताया एवं दर्शाया गया है लेकिन क्या आपको पता है भगवान राम जी की मृत्यु कैसे हुई थी अगर आपको नहीं मालूम है तो चलिए आज हम जानेंगे पौराणिक कथाओं के अनुसार –

भगवान राम का जन्म इंसान के रूप में हो तो गया था लेकिन उनकी मृत्यु  होना असंभव हो रही थी। परंतु कालचक्र को बनाए रखने और चलाने के लिए जरूरी था कि प्रकृति का नियम नहीं बदले इसलिए भगवान राम ने अपनी मृत्यु का समय तय किया और अपनी  मृत्यु के लिए कुछ ऐसा किया जिन्हें जानकर आपको हैरानी होगी।

एक पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान राम ने त्रेता युग में सारे कार्य संपन्न कर लिए थे और उनकी सारी लीलाएं समाप्त हो चुकी थी और धरती पर जीवन अवधि भी समाप्त होने का समय आ चुका था। लेकिन समय समाप्त होने के बाद भी काल देवता यमराज भगवान राम के समीप उनके प्राण हरने नहीं आ पा रहे थे क्योंकि रामदूत हनुमान भगवान राम के प्राण रक्षक थे जो स्वयं महाकाल का एक रूप है और महाकाल से उनके आराध्य भगवान राम के प्राण छीनने क़ी हिम्मत ना तो किसी काल मे थी और ना ही किसी अन्य देवता मे। इसलिए काल चक्र और समय चक्र को आगे बढ़ाने के लिए भगवान राम क़ी मत्यु होना जरूरी भी थी। ऐसे में भगवान राम ने एक उपाय निकाला और अपनी एक अंगूठी महल के किसी छेद में गिरा कर हनुमान जी को उस अंगूठी को खोजने के लिए पाताल लोक मे भेज दिया गया।

 हनुमान जी को अयोध्या में ना देख कर यमराज ने अयोध्या में प्रवेश किया और वे एक संत का रूप धारण कर भगवान राम जी के महल में पहुंच गए तब संत के भेष में यमराज भगवान राम से मिले और भगवान राम से वचन लिया कि हम दोनों की बातों को गुप्त में रखा जाए और जो कोई भी हमारी बातों को सुनेगा उसे मृत्युदंड दिया जाए इस पर भगवान राम ने उन्हें वचन दिया और सभी द्वारपालों को बाहर भेजकर लक्ष्मण को द्वारपाल पर रहने का आदेश दिया।

उसके बाद उस संत ने अपना असली रूप दिखाया और भगवान राम को बोले ” हे प्रभु मैं आप ही का सेवक हूं और आपने ही मुझे यह कर्म दिया है कि इस संसार से  समस्त जीव जंतु एवं प्राणियों का प्राण हरना और यह मेरा धर्म भी है  और मैं भगवान शिव और ब्रह्मा की आज्ञा से आपसे यह कहने आया हूं कि आपने जो अपना समय इस पृथ्वी लोक पर निश्चित किया था वह समय पूर्ण हो चुका है और अब आपको अपने धाम लौट जाना चाहिए इससे सभी देवी-देवताओं आपको विष्णु स्वरूप में देख कर उनमें उत्साह की लहर आ जाएगी फिर यमराज बोले कि हे प्रभु आपको कुछ और समय इस पृथ्वी लोक पर बिताना है तो आप रह सकते हैं।

भगवान राम और यमराज के वार्तालाप चल ही रही थी कि इतने समय में भगवान राम के महल के पास दुर्वासा ऋषि आ पहुंचे और लक्ष्मण को बोलने लगे कि हमें भगवान राम से मिलना है अभी तुरंत। लक्ष्मण जी ने दुर्वासा ऋषि को बोला कि भगवान राम अभी किसी से नहीं मिल सकते, इस पर दुर्वासा ऋषि को क्रोध आ गया और श्राप देने लगे कि अगर हमें भगवान से नहीं मिलने दिया गया तो मै पूरी अयोध्या नगरी को अपने श्राप से जलाकर भस्म कर दूंगा।

इस पर लक्ष्मण जी उनके श्राप के भय से सोचने लगे कि अगर मैं इन्हे प्रभु राम जी के महल में जाने दे दूं तो सिर्फ मुझे ही मृत्युदंड मिलेगा लेकिन अयोध्या नगरी तो बच जाएगी, इस पर विचार करने पर लक्ष्मण जी ने दुर्वासा ऋषि को प्रभु श्री राम जी के महल में जाने दे दिया।

 उसके बाद भगवान राम और यमराज के बीच की वार्तालाप भंग होने के कारण भगवान राम ने लक्ष्मण का त्याग कर दिया तब लक्ष्मण ने अपने भ्राता श्री का वचन निभाने के लिए अयोध्या की सरयू नदी में समाधि लेकर शेषनाग का रूप ले और भगवान विष्णु के निवास स्थान क्षीरसागर में जाकर उत्पन्न हो गए। उसके बाद भगवान राम ने भी इसी तरह सरयू नदी जाकर में जल समाधि ले ली और अपने परमधाम को चले गए।

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