मित्रों भागवत गीता में यह साफ-साफ लिखा है कि जब जब इस पृथ्वी पर पाप बढ़ेगा तब तब भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर अवतरित होकर पापियों का नाश करेंगे. भगवान विष्णु के दस मुख्य अवतार है इसलिए इन्हे दशावतार भी कहते है लेकिन आज हम भगवान विष्णु के 10 अवतार नहीं बल्कि 24 अवतारो के बारे में विस्तृत से जानेंगे . भगवान विष्णु के 23 अवतार अब तक इस पृथ्वी पर अवतरित हो चुके हैं अंतिम अवतार कल्कि जी होंगे जो कि कलयुग के अंत में अवतरित होंगे. तो चलिए जानते है भगवान विष्णु के 24 अवतारों के संपूर्ण कथा?
भगवान विष्णु के 24 अवतारों के संपूर्ण कथा?
( 1) श्री सनकादी मुनि अवतार
धर्म ग्रंथों के अनुसार सृष्टि के आरंभ में लोग पितामह ब्रह्मा ने अनेक लोगों की रचना करने की इच्छा से घोर तपस्या की. उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने तप अर्थ वाले सन्नाम से युक्त होकर सनक, सनंदन, सनातन और सनत्कुमार नाम के चार मुनियो के रूप में अवतार लिया. यह चारों प्रचंड काल से ही मोक्ष मार्ग प्रायंन ध्यान में लिन नित्य सिध्द एवं नित्य विरक्त थे यह भगवान विष्णु के सर्वप्रथम अवतारो मैं माने जाते हैं
(2) वराह अवतार
हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने दूसरे अवतार वराह रूप मे जन्म लिया था. एक समय में असुरराज हिरण्याक्ष ने जब पृथ्वी को ले जाकर समुद्र मैं छिपा दिया था तब ब्रह्मा के नाक से भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए थे. भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर सभी देवताओं और ऋषि-मुनियों ने उनकी स्तुति की थी सब के आग्रह पर भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना प्रारंभ किया था.
अपने मुंह की सहायता से उन्होंने पृथ्वी का पता लगाया था और समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों में रखकर वह पृथ्वी को बाहर ले आए थे जब हिरण्याक धत्री ने यह देखा तो उसने भगवान विष्णु रूप के वराह रूप को युद्ध के लिए ललकारा दोनों में भीष्म युद्ध हुआ और अंत में भगवान वराह ने हिरण्याक्ष का वध कर दिया था.
(3) नारद अवतार
धर्म ग्रंथों के अनुसार देव ऋषि नारद भी भगवान विष्णु के ही अवतार हैं. शास्त्रों के अनुसार नारद मुनि ब्रह्मा के सात मानस पुत्र में से एक थे उन्होंने कठिन तपस्या से देव ऋषि पद प्राप्त किया था. वह भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक माने जाते हैं. देव ऋषि नारद धर्म के प्रचार तथा लोक कल्याण के लिए हमेशा प्रत्ययन शील रहते है . भगवत गीता के दशम अध्याय के 26 वें श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने इनकी महत्वता को स्वीकार करते हुए कहा है देव ऋषियों मैं नारद हूं.
(4) नर-नारायण अवतार
सृष्टि के आरंभ में भगवान विष्णु ने धर्म की स्थापना के लिए दो रूपों में अवतार लिया था. इस अवतार में वह अपने मस्तक पर जटा धारण किए हुए थे. उनके हाथों में हं, चरणों में चक्र एवं वक्षस्थल पर एक सुनहरी रेखा श्रीवत्स का चिह्न थे. उनका सम्पूर्ण वेष तपस्वीओ के समान था. धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने नर-नारायण के रूप में यह अवतार लिया था.
(5) कपिल मुनि अवतार
भगवान विष्णु ने पांचवा अवतार कपिल मुनि के रूप में लिया था इनके पिता का नाम महर्षि कर्दम एवं माता का नाम देवहोती था. भगवान कपिल के क्रोध से ही राजा सागर के 60000 पुत्र भस्म हो गए थे कपिल मुनि भागवत धर्म प्रमुख के 12 अचार्य में से एक है.
(6) दत्तात्रेय अवतार
धर्म ग्रंथों के अनुसार दत्तात्रय भी भगवान विष्णु के अवतार थे. भगवान दत्तात्रेय ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अवतार माने जाते हैं. भगवान शंकर का साक्षात रुप महाराज दत्तात्रेय में मिलता है और तीनों ईश्वरी शक्तियों से समाहित महाराज दत्तात्रेय की आराधना बहुत ही सफल और बहुत ही जल्दी फल देने जाने वाली मानी जाती है. महाराज दत्तात्रेय आजीवन ब्रह्मचारी अवधूत और दिगंबर रहे थे.
(7) यज्ञ अवतार
भगवान विष्णु के सातवें अवतार का नाम यज्ञ है. धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान यज्ञ का जन्म स्वायम्भुव मन्वन्तर में हुआ था. भगवान यज्ञ के उनकी पत्नी धर्मपत्नी दक्षिणा से अत्यंत तेजस्वी 12 पुत्र उत्पन्न हुए थे और स्वायम्भुव मन्वन्तर में याम नामक देवता कहलाये.
(8) भगवान ऋषभदेव
भगवान विष्णु ने ऋषभदेव के रूप में आठवां अवतार लिया था. धर्म ग्रंथों के अनुसार महाराज नाभि की कोई संतान नहीं थी इस कारण उन्होंने अपने धर्म पत्नी मेरु देवी के साथ पुत्र की कामना से यज्ञ किया. यज्ञ से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हुए और उन्होंने महराज नाभि को वरदान दिया कि मैं तुम्हारे यहां पुत्र रूप मैं जन्म लूंगा. वरदान स्वरुप कुछ समय बाद भगवान विष्णु महराज नाभि के यहां पुत्र रूप में जन्मे. पुत्र के अत्यंत सुंदर और शोकठित शरीर को देखकर महाराज नाभि ने उसका नाम ऋषभ यानी श्रेष्ठ रखा.
(9) आदिराज पृथु
भगवान विष्णु के एक अवतार का नाम आदिराज पृथु था. धर्म ग्रंथों के अनुसार स्वायम्भुव मन्वन्तर के अंत में अंग नामक प्रजापति का विवाह मृत्यु की मानसिक पुत्री सुनीता के साथ हुआ था. उनके यहां वेद नामक पुत्र हुआ उसने भगवान को मानने से इनकार कर दिया और स्वयं की पूजा करने के लिए कहा तब महा ऋषियों ने मंत्र कुशो से उसका वध कर दिया. तब महा ऋषि ने पुत्र हिन राजा वेन की भुजाओं को मंथन किया जिससे पृथु नामक पुत्र उत्पन्न हुआ पृथु के दाहिने हाथ में चक्र और चरणों में कमल का चिन्ह देखकर ऋषियों ने बताया कि पृथ्वी के वेश में स्वयं श्रीहरि का अंश अवतरित हुआ है.
(10) मत्स्य अवतार
पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने इस सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए मत्स्य अवतार लिया था. इस अवतार में भगवान विष्णु ने इस संसार को भयानक जल-प्रलय से बचाया था साथ ही उन्होंने हयग्रीव नामक दैत्य का वध किया था जिसने वेदों को चुरालिया था.
(11) कूर्म अवतार
धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने कुर्म यानी की कछुए का अवतार लेकर समुद्र मंथन में सहायता की थी. भगवान विष्णु के कूर्म अवतार को कश्यप अवतार भी कहा जाता है. समुद्र मंथन करने के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी और नाग राज बासुकी को रस्सी बनाया गया था,
किंतु मंदराचल के नीचे कोई आधार नहीं होने के कारण वह समुद्र में डूबने लगा. यह देखकर भगवान विष्णु विशाल कुर्म यानि की कछुए का रूप धारण कर समुद्र मैं मंदराचल के आधार बन गए. भगवान कुर्म की विशाल पीठ पर मंदराजचल तेजी से घूमने लगा इस प्रकार समुद्र मंथन संपन्न हुआ.
भगवान विष्णु के 24 अवतारों के नाम एवं सम्पूर्ण कथाएं
(12) धनवंतरी अवतार
धर्म ग्रंथों के अनुसार जब देवताओं और दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो उससे सबसे पहले भयानक विष निकला इसे भगवान शिव ने पी लिया. इसके बाद समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी, एरावत हाथी, कल्पवृक्षा, अप्सराएं और भी बहुत सारे रत्न निकले और सबसे अंत में भगवान धनवंतरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए. यह धनवंतरी भगवान विष्णु का अवतार माने गए हैं इन्हें औषधियों का स्वामी माना जाता है.
(13) मोहिनी अवतार
पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान सबसे अंत में धनवंतरी अमृत कलश लेकर निकले जैसे ही अमृत मिला अनुशासन भंग हो गया. देवताओं ने कहा कि हम ले ले और देत्यो ने कहा कि हम ले ले, इसी खिचा तानी में इंद्र का पुत्र जयंत अमृत कुंभ लेकर भाग गया. सारे देत्य और देवता भी उसके पीछे भागे, असुरो और देवताओ मैं भयंकर मारकाट मच गई देवता परेशान होकर भगवान विष्णु के पास गए. तब विष्णु ने मोहिनी अवतार लिया भगवान ने मोहिनी रूप में सबको मोहित कर लिया.
मोहिनी ने देवता और असुरों की बात सुनी और कहा कि यह अमृत कलश मुझे दे दीजिए, मैं बारी-बारी से देवता और असुरों को अमृत पान करा दूंगी. दोनों ही मान गए देवता एक तरफ तथा असुरों दूसरी तरफ बैठ गए फिर मोहिनी रूप धरे भगवान विष्णु ने मधुर गान गाते हुए नृत्य करते हुए देवता और असुरों को अमृत पान करवाना प्रारंभ किया. वास्तविकता में मोहिनी अमृत पान तो सिर्फ देवताओं को ही करा रही थी जबकि असुर समझ रहे थे कि वह भी अमृत पान कर रहे हैं इस प्रकार भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार लेकर देवताओं का भला किया.
(14) भगवान नरसिंह अवतार
सतयुग के अंत में भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार ले कर देत्यो के राजा हिरण कश्यप का वध किया था. धर्म ग्रंथों के अनुसार राक्षसराज हिरण कश्यप को भगवान से भी अधिक बलवान मानता था. उसके राज्य में जो भी भगवान विष्णु की पूजा करता वह उसको दंडित कर देता था. उसके पुत्र का नाम प्रहलाद था प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था. यह बात जब हिरण कश्यप को पता चली तो वह बहुत ही क्रोधित हुआ और प्रहलाद को समझाने का प्रयास किया लेकिन फिर भी जब प्रहलाद नहीं माने तो हिरण्यकश्यप ने उसे मृत्युदंड देने का निर्णय लिया.
लेकिन हर बार भगवान विष्णु के चमत्कार से वह बच गया. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका थी जिसे अग्नि से ना जलने का वरदान प्राप्त था वह प्रहलाद को लेकर धधकती हुई अग्नि में बैठ गई तब भी भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद बच गए और होलिका जल गई. जब हिरण कश्यप ने स्वंय प्रहलाद को मारने ही वाला था तब भगवान विष्णु नरसिंह अवतार लेकर खंभे से प्रकट हुए और उन्होंने अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का वध कर दिया.
(15) वामन अवतार
सतयुग में प्रहलाद के पौत्र दैत्य राज बलि ने स्वर्ग लोक पर अधिकार कर लिया सभी देवता इस विपत्ति से बचने के लिए भगवान विष्णु के पास गए. तब भगवान विष्णु ने उनको मुक्त करने का आश्वासन दिया कुछ समय पश्चात भगवान विष्णु ने वामन अवतार में जन्म लिया. एक बार जब बलि महायज्ञ कर रहा था तब भगवान वामन बलि की यज्ञशाला में गए और बलि से तीन पग धरती दान में मांगी.
गुरुशुक्राचार्य भगवान की लीला को समझ गए और उन्होंने बलि को दान देने से मना कर दिया. लेकिन बलि ने फिर भी भगवान वामन को तीन पग धरती देने का संकल्प ले लिया. भगवान वामन ने विशाल रूप धारण कर एक पग में धरती और दूसरा पग में स्वर्ग लोक और अन्य सभी ग्रह एवं नक्षत्र मंडल नाप लिए थे.
तीसरा पग के लिए जब कोई स्थान नहीं बचा था तब बलि ने भगवान वामन को अपना सिर पर पग रखने के लिए कहा. बलि के सिर पर पग रखने से वह सूत्तल लोक पहुंच गया बलि की दानवीरता देखकर भगवान ने उसे सुतल लोक का स्वामी बना दिया. इस तरह भगवान वामन ने देवताओं की सहायता कर उन्हें स्वर्ग पुनः लौटाया.
(16) हयग्रीव अवतार
धर्म ग्रंथों के अनुसार एक बार मधु और कैटव नाम के दो शक्तिशाली राक्षस ब्रह्मा जी से वेदों का हरण कर पाताल में पहुंच गए. वेदों का हरण हो जाने से ब्रह्मा जी बहुत ही दुखी हुए और भगवान विष्णु के पास पहुंचे तब भगवान ने हयग्रीव अवतार लिया. इस अवतार में भगवान विष्णु के मुख और गर्दन घोड़े के समान था तब भगवान हयग्रीन वर्षा तल मे पहुंचे और मधु कैटव का वध कर वेद पुनः भगवान ब्रह्मा को दे दीए.
(17) श्री हरि अवतार
धर्म ग्रंथों के अनुसार प्राचीन समय में त्रिकूट नामक पर्वत के त्राहि में एक शक्तिशाली गजेंद्र अपने हाथियों के साथ रहता था. एक बार वह अपनी हथिनीयो के साथ तालाब में स्नान करने गया वहां एक एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया और पानी के अंदर खींचने लगा
इससे वह अपने अंत नजदीक समझने लगा इसलिए उन्होंने भगवान विष्णु का ध्यान किया.गजेंद्र की स्तुति सुनकर भगवान श्रीहरि प्रकट हुए और उन्होंने अपने चक्र से मगरमच्छ का वध कर दिया भगवान श्री हरि ने गजेंद्र का उद्धार कर उसे अपना पार्षद बना लिया.
(18) परशुराम अवतार
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार परशुराम भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक थे. परशुराम भार्गव वंश मे जन्मे विष्णु के छठे अवतार हैं और उनका जन्म त्रेता युग में हुआ था. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उनका जन्म भ्रुगू श्रेष्ठ महा ॠषि जमदग्नि द्वारा यज्ञ से प्रसन्न होकर देवराज इंद्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका की गर्व से हुआ था.
उन्हें भगवान विष्णु का अंश अवतार भी कहा जाता है क्योंकि भारतीय पौराणिकता में परशुराम क्रोध से पर्याप्त रहे हैं अपने पिता की हत्या के प्रतिशोध स्वरूप उन्होंने इस पृथ्वी लोक से धर्म के मार्ग से भटके हुए क्षत्रियों को 21 बार इस पृथ्वी लोक से विहीन किया है.परशुराम जी का उल्लेख रामायण और महाभारत दोनों ही महाकाव्यो में मिलता है.भगवान परशुराम कर्ण, भीष्म पितामह जैसे कई बड़े-बड़े योद्धाओं के गुरु भी हैं.
(19) महर्षि वेदव्यास
पुराणों में महर्षि वेदव्यास को भी भगवान विष्णु का अवतार कहा गया है भगवान व्यास नारायण के कला अवतार थे. वह महा ज्ञानी महा ऋषि परास्त के पुत्र के रूप में प्रकट हुए थे उन्होंने ही मनुष्य की आयु और शक्ति को देखते हुए वेदों के विभाग किए थे इसीलिए उन्हें वेदव्यास भी कहा जाता है इन्होंने ही महाभारत ग्रंथ की रचना भी की थी.
(20) हंस अवतार
एक बार भगवान ब्रह्मा अपनी सभा में बैठे थे तभी वहां उनके मानस पुत्र सनकादी मुनि पहुंचे. भगवान ब्रह्मा से मनुष्य के मोक्ष से संबंध में चर्चा करने लगे तभी वहाँ भगवान विष्णु वहां हंस के रूप में प्रकट हुए और उन्होंने सनकादी मुनियों की संदेह का निवारण किया. इसके बाद सभी ने भगवान हंस की पूजा की इसके बाद वहां हंस स्वरूप धारी श्री भगवान अदृश्य होकर अपने पवित्र धाम चले गए.
(21) श्री राम अवतार
त्रेता युग में राक्षस राजा रावण का बहुत ही आतंक था उससे देवता भी डरते थे उसके वध के लिए भगवान विष्णु ने राजा दशरथ के यहां माता कौशल्या के गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लिया था. इस अवतार में भगवान विष्णु ने अनेक राक्षसों का वध किया था और मर्यादा का पालन करते हुए अपना जीवन यापन किया था.
(22) श्री कृष्ण अवतार
द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण अवतार लेकर अधर्मियों का नाश किया था. भगवान श्री कृष्ण का जन्म कारागार में हुआ था इनके पिता का नाम वासुदेव और माता का नाम देवकी था. भगवान श्री कृष्ण ने इस अवतार में अनेक चमत्कार किए और दुष्टों का सर्वनाश किया कंस का वध भी भगवान श्री कृष्ण ही किया था. महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथी बने और दुनिया को गीता का ज्ञान दिया. धर्मराज युधिष्ठिर को राजा बनाकर धर्म की स्थापना की भगवान विष्णु का यह अवतार सभी अवतारों में से श्रेष्ठ माना जाता है.
(23) बुद्ध अवतार
धर्म ग्रंथों के अनुसार बौद्ध प्रवक्ता गौतम बुद्ध भी भगवान विष्णु के ही अवतार थे परंतु पुराणों में वर्णित भगवान बुद्ध देव का जन्म गया के निकट में बताया गया है और उनके पिता का नाम अजन बताया गया है.
(24) कल्कि अवतार
कल्कि भगवान विष्णु के अंतिम अवतार कहलाएंगे धर्म ग्रंथों के अनुसार कलयुग में भगवान विष्णु कल्कि के रूप में अवतार लेंगे. कल्कि अवतार कलयुग और सतयुग के संधि काल में होगा यह अवतार 64 कलाओं से युक्त होगा कल्की देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर संसार से पापियों का विनाश करेंगे और धर्म की पुनः स्थापना करेंगे. तो मित्रों यह थे भगवान विष्णु के 24 अवतार, अगर यह आर्टिकल अच्छी लगी तो शेयर जरूर करें.
पाताल लोक कैसा होता है पाताल लोक का वर्णन- विष्णु पुराण।