दोस्तों पुराणों में वर्णित है कि सुदर्शन चक्र एक ऐसा अचूक अस्त्र था, जिसे छोड़ने के बाद वो अपने लक्ष्य का पीछा करता था और उसे खत्म करने के बाद वापस अपने छोड़े गए स्थान पर आ जाता था। वहीं इसके अनुसार सुदर्शन चक्र का निर्माण भगवान भोलेनाथ ने किया था और इसे बाद में भगवान श्री हरि को सौंप दिया। फिर इसके बाद जरूरत पड़ने पर विष्णु जी ने इस चक्र को देवी पार्वती को प्रदान किया। माता पार्वती से ये चक्र कई देवी देवताओं से रौंदा हुआ परशुराम जी के पास पहुंच गया और भगवान परशुराम से ये चक्र भगवान श्री कृष्ण के पास आ गया।भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र शिवजी से कैसे मिला ?
भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र शिवजी से कैसे मिला ?
शिव महापुराण के अनुसार पृथ्वी पर जब दैत्यों का अत्याचार बहुत बढ़ गया तब दानव जब स्वर्ग लोक तक पहुंच गए। तब सभी देवता गण डरकर भगवान विष्णु के पास गए। दानवों को परास्त करने के लिए एक दिव्य अस्त्र की जरूरत थी समस्या का समाधान ढुंढ़ने के लिए भगवान विष्णु ने कैलाश पर्वत पर शिव जी की आराधना की, उन्होंने शिवजी के हजार नामों से उनकी स्तुति की और हर नाम पर शिव जी को कमल का फूल चढ़ाया।
तब शंकर जी ने भगवान विष्णु की परीक्षा लेने के लिए उन हजार कमल के पुष्पो में से एक पुष्प को छिपा दिया। जब भगवान विष्णु उसे ढूंढने लगे और फूल नहीं मिला। क्योंकि भगवान विष्णु की आंखों को कमल के समान सुंदर कहा गया है तभी तो भगवान विष्णु को कमलनयन भी कहते हैं। इसीलिए उन्होंने यह संकल्प लिया विष्णु जी जैसे ही अपने आंख भगवान को चढ़ाने के लिए तत्पर हुए वैसे ही वहां शिव प्रकट हुए।
श्री हरि की भक्ति देख कर भोलेनाथ प्रसन्न हो गए और बोले कि इस पूरे संसार में तुम्हारे सामान मेरा कोई दूसरा भक्त नहीं। शिव जी ने उनसे वरदान मांगने को कहा जिसके बाद भगवान ने वरदान के रूप में देत्यो को समाप्त करने वाला अजय शस्त्र मागा। तब भगवान शिव शंभू ने श्री हरि को सुदर्शन चक्र सौंपकर कहा की तीनो लोको में इसकी बराबरी वाला कोई अस्त्र नहीं होगा, यह अकेला चक्र राक्षसों का विनाश करने में सक्षम होगा।
ऋग्वेद के अनुसार सुदर्शन चक्र की महिमा
इसके अलावा ऋग्वेद में सुदर्शन चक्र का एक अलग ही वर्णन मिलता है इसमें बताया गया है कि सुदर्शन चक्र एक समय का चक्र है जो अपने अंदर समय को बांधकर रख सकता है। इसके साथ ही ये जानकारी भी दी गई है कि इसी शक्ति से भगवान श्री कृष्ण ने समय को रोककर महाभारत युद्ध भूमि में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। ऋग्वेद के अनुसार सुदर्शन चक्र कोई भौतिक अस्त्र नहीं है ये एक विष्णु जी का विशेष गुण है जो भगवान या उनके अवतारों के पास ही होता है।
जिसे यह समय को रोककर शत्रु की शक्तियों को कमजोर और प्रहार हीन बना देते थे. ये तो आपने जाना कि भगवान विष्णु को कैसे मिला श्री कृष्ण के पास ये चक्र कहां से आया था. चक्र. लेकिन क्या आपको ये पता है कि भगवान श्री कृष्ण के पास ये चक्र कहां से आया था.
श्री कृष्ण के पास सुदर्शन चक्र कहां से आया था.
भगवान श्री कृष्ण श्री हरि के 8 वें अवतार माने जाते हैं .बताया जाता है कि जब श्री कृष्ण अवतार हुआ तब यह चक्र श्री कृष्ण को परशुराम जी से प्राप्त हुआ था ,क्योंकि रामावतार में परशुराम जी को भगवान राम ने चक्र सौंप दिया था. ऐसा बताया जाता है कि ये चक्र किसी भी चीज को खोज पाने में सक्षम है. इससे वासुदेव कृष्ण ने दुर्जनो का संघार किया था.
दोस्तों ऐसा माना जाता है कि श्री कृष्ण ने जरासंध को इस शक्तिशाली चक्र से पराजित किया था सिर्फ यही नहीं शिशु पाल का वध भी इसी चक्र से किया गया था. आपको ये भी बता देते हैं कि अभी ये दिव्य सुदर्शन चक्र कहां है .
सुदर्शन चक्र अभी कहां है
दोस्तों भविष्य पुराण के मुताबिक भगवान कृष्ण के मृत्यु के बाद सुदर्शन चक्र पृथ्वी के गर्भ गृह में समा गया. वहीं जब कलयुग के अंत में भगवान विष्णु का दसवां अवतार कल्कि अवतार होगा तब धरती के गर्भ गृह से एक बार फिर से परशुराम जी कल्कि अवतार को सुदर्शन चक्र निकालकर धारण करेंगे. ताकि कलयुग के सबसे शक्तिशाली राक्षस कलि पुरुष का विनाश किया जा सके.
अब आपको इस चक्र की खासियत बताते हैं इस आयुद्ध की खासियत थी कि इसे तेजी से हाथ से घुमाने पर ये हवा के प्रवाह से मिलकर प्रचंड वेग से अग्नि प्रज्वलित कर दुश्मन को खत्म कर देता था. ये अत्यंत सुंदर तिव्रगामी तुरंत संचालित होने वाला एक भयानक अस्त्र था. इसकी जानकारी देवताओं को छोड़ दूसरों को ना लग जाए वरना गैर जिम्मेदार लोगों द्वारा इसका दुरुपयोग कर सकते थे. इसीलिए इसकी जानकारी गोपनीय रखी गई थी. इसका निर्माण चांदी की सलाकाओ से हुआ था इसके ऊपरी और निचली सतहो पर लोहसू लगे हुए हैं. इसके साथ ही इसमें अलग-अलग विषैले किस्म के विष थे जिससे द्विमुखी स्पेनी छुरियों से रखा जाता था. स्पेनी छोरियों का भी उपयोग किया जाता था इसके नाम से ही विपक्षी सेना में मौत का भय छा जाता था.
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