भगवान शिव के गले में शेषनाग लिपटा क्यों होता है?

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गले में सर्प, तन पर भस्म, माथे पर चंद्रमा, जटाओं में गंगा देवों के देव महादेव सभी देवताओं से निराले हैं. इनके अस्त्र-शस्त्र से लेकर इनके वस्त्र और आभूषण भी सभी देवी देवताओं से अलग है. शरीर पर वस्त्रों की जगह बाघ की खाल धारण किए हुए महादेव गले में आभूषणों की बजाय नाग का श्रृंगार करते हैं. निराले भोलेनाथ के रहस्य भी निराले हैं तो क्या कभी किसी ने सोचा है कि इनके गले में नाग क्यों है? तो आज हमलोग इसी के बारे में जानेंगे भगवान शिव के गले में शेषनाग लिपटा क्यों होता है?

भगवान शिव के गले में शेषनाग लिपटा क्यों होता है?

शेषनाग की जन्म

हम सबके प्रिय भगवान शिव के गले में जो नाग है वह कोई साधारण नाग नहीं है वह नागों की राजा वासुकी है. जो हर समय भोलेनाथ के गले में लिपटे रहते हैं. धार्मिक संहिता में वर्णित कथा के अनुसार वासुकी भगवान शिव के परम भक्त थे और ऐसा माना जाता है कि नाग जाति के लोगों ने ही सबसे पहले शिवलिंग की पूजा कर इस प्रथा का प्रचलन शुरू किया था. अपने भक्तों के भक्ति भाव से प्रसन्न होने वाले भगवान श्री वासुकी नाथ के भक्ति से भी प्रसन्न हुए और भगवान शिव ने उनसे वरदान मांगने के लिए कहा.

तब नागराज ने शिव के बाकी गणों की तरह उन्हें भी अपने गनों में शामिल करके उनकी सेवा करने का वरदान मांगा. तब से भगवान शंकर ने उन्हें अपने गले में धारण कर लिया ऐसा भी कहा जाता है कि जब वासुदेव कान्हा को कंस की जेल से चुपचाप बचा कर गोकुल ला रहे थे तब तेज बारिश और यमुना के तूफान से वासुकी नाग ही उसकी रक्षा करते हैं. यह ही नहीं समुद्र मंथन के दौरान वासुकी नाग को ही रस्सी के रूप में मेरु पर्वत के चारों ओर लपेटकर मंथन किया गया था जिसके चलते उनका संपूर्ण शरीर लहूलुहान हो गया था.

इसके बाद जब नीलकंठ भगवान को विष पीना पड़ा तब वासुकी नाग सहित अन्य नाग ने भी भगवान शिव की सहायता की और विष ग्रहण किया था. पुराणों के अनुसार वासुकी के सिर पर ही नागमणि है और तो और सभी तरह के मणियों पर सरफराज वासुकी का ही अधिकार है इस कारण शिव और शिवलिंग नाग के बिना अधूरा माना जाता है.

अगर आप वासुकी नाथ और भगवान शिव के साथ के संबंध को समझ गए हैं तो यह जानना भी अवश्यक है कि नागराज वासुकी की उत्पत्ति कैसे हुई.

 शेषनाग की उत्पत्ति कैसे हुई

पुराणों के अनुसार सभी नागो की उत्पत्ति ऋषि कश्यप की पत्नी कद्दू की कोख से हुई थी. कद्दू ने हजारों पुत्रों को जन्म दिया था जिसमें सबसे प्रमुख नाग थे अनंतनाग, वासुकि नाग, तक्षक नाग, पद्म नाग, महापद्मा, शंख पिंगला और कुलकी अनंत जिन्हें हम शेषनाग भी कहते हैं और वासुकी, तक्षक, काक्रोटेक और पिंगला यह 5 नागो के कुल के लोगों का ही भारत में वर्चस्व था.

यह सभी कश्यप वंश के ही थे इन्हीं से ही नागवंश चला था. शेषनाग को अनंतनाग के नाम से भी जाना जाता है इसी तरह आगे चलकर शेष के बाद वासुकी हुए फिर तक्षक और फिर पिंगला. वासुकी ने भगवान शिव की सेवा में नियुक्त होना स्वीकार किया वासुकी का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य था और मान्यता है की तक्षक ने ही तक्षशिला बसा कर अपने नाम से तक्षक कुल चलाया था.

यह तीनों नागों की कथाएं पुराणों में पाई जाती है शेषनाग जिन्हें हम अनंतनाग भी कहते हैं उन्हें भगवान विष्णु की सेवा का अवसर मिला था. कश्मीर का अनंतनाग इलाका इनका गढ़ माना जाता है कांगड़ा कुल्लू व कश्मीर सहित अन्य पहाड़ियां इलाके नाग ब्राह्मणों की एक जाति आज भी मौजूद है.

महाभारत काल में पूरे भारतवर्ष में नागा जातियो का समूह फैले हुए थे विशेष तौर पर कैलाश पर्वत से सटे हुए इलाकों से असम मणिपुर नागालैंड तक इनका प्रभुत्व था यह लोग सर्प पूजा होने के कारण नागवंशी कहलाते थे.

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