भगवान शिव को बेलपत्र क्यों चढ़ाया जाता है?

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भगवान शिव को बेलपत्र क्यों चढ़ाया जाता है?

नमस्कार दोस्तों आज हम लोग जानेंगे भगवान शिव से जुड़ी पूजा के बारे में कुछ अनोखी बातें. यह आप तो सभी जानते होंगे कि भगवान शिव को बेलपत्र बहुत ही प्रिय है. कहा जाता है कि अगर अब भगवान शिव को कुछ नहीं दे सकते तो कम से कम एक बेलपत्र चढ़ा देने से भगवान शिव आप पर प्रसन्न हो सकते हैं. तो आज हम लोग इसी के बारे में जानेंगे कि भगवान शिव को बेलपत्र क्यों प्रिय है.भगवान शिव को बेलपत्र क्यों चढ़ाया जाता है?

भगवान शिव को बेलपत्र क्यों चढ़ाया जाता है?

आप में से कई भगवान शिव के भक्त होंगे और अक्सर शिवलिंग पर जल, पुष्प, दूध, फूल इत्यादि चढ़ाते होंगे मगर क्या आपने कभी सोचा है कि बेलपत्र के बिना भगवान शिव की पूजा को पूर्णता नहीं माना जाता है. तो चलिए इसका कारण जानते हैं?

ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के शिवलिंग को बेलपत्र वृक्ष के नीचे स्थापित करके हर दिन सुबह सुबह जल चढ़ाने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. कहा जाता है कि शिव मंदिर के पास बेलपत्र के दर्शन या स्पर्श मात्र से ही मनुष्य का उद्धार हो जाता है. बेलपत्र के विषय में लोगों की यह मान्यता है कि जो मनुष्य पवित्र मन से भगवान शिव को 2 या उससे अधिक बेलपत्र प्रतिदिन अर्पित करता है वह भवसागर से मुक्त हो जाता है.

ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव को अखंडित बेलपत्र चढ़ाने वाला मनुष्य मृत्यु के पश्चात भगवान शिव के परमधाम को प्राप्त होता है और वह जन्म-मृत्यु  के चक्र से मुक्त हो जाता है. शिव पुराण के अनुसार बिना खंडित बेलपत्र सिर्फ भगवान शिव को ही अर्पित किया जाता है.

कहा जाता है कि श्रावण मास में 1 महीने तक 108 बेलपत्र भगवान शिव के शिवलिंग पर चढ़ाने से घर में सुख समृद्धि की वृद्धि होती. बेलपत्र में 2 से 11 दल होते हैं बेलपत्र में जितने ज्यादा दल हो वह भगवान शिव की पूजा के लिए उतने ही श्रेष्ठ माना जाता है.

 बेलपत्र से जुड़ी भगवान शिव की कथा

प्राचीन काल में देवता और दानव ने दोनों मिलकर समुद्र मंथन किया था. सागर मंथन के दौरान समुद्र से कई  बहुमूल्य वस्तुएं प्राप्त हुई उसके बाद फिर समुद्र मंथन से हलाहल नाम का एक विष निकला. जो कि इस विष का प्रभाव इतना ज्यादा था कि संपूर्ण सृष्टि का विनाश हो सकता था.

इस विष से संसार की रक्षा के लिए भगवान शिव ने इस विष कों पी गया और यह विष भगवान शिव के गले में ही रह गया जिसके कारण उसका कंठ नीला पड़ गया इसलिए भगवान शिव को नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है.

इस विष के प्रभाव से भगवान शिव के मस्तिक गर्म होने लगा तब देवताओं ने भगवान शिव के ऊपर जल चढ़ाने लग गया. जल के प्रभाव से भगवान शिव के सिर की जलन तो दूर हो गई लेकिन कंठ की जलन बनी रहे इसके बाद देवताओं ने उन्हें बेलपत्र खिलाना शुरू किया क्योंकि बेलपत्र में विष के प्रभाव को खत्म होने का गुण होता है तभी से भगवान शिव की पूजा में बेलपत्र चढ़ाने की परंपरा बनी है.

बेलपत्र स्तोत्र

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधम्। त्रिजन्मपाप संहारं एक बिल्वं शिवार्पणम्॥

अखण्ड बिल्व पात्रेण पूजिते नन्दिकेश्र्वरे शुद्ध्यन्ति सर्वपापेभ्यो एक बिल्वं शिवार्पणम्॥

शालिग्राम शिलामेकां विप्राणां जातु चार्पयेत् सोमयज्ञ महापुण्यं एक बिल्वं शिवार्पणम्॥

दन्तिकोटि सहस्राणि वाजपेय शतानि च। कोटि कन्या महादानं एक बिल्वं शिवार्पणम्॥

बेलपत्र से जुड़ी और मान्यताएं

 एक कथा के अनुसार एक भील नाम का शिकारी था। यह शिकारी अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए जंगल में शिकार करता था। एक बार जब सावन का महीना चल रहा था, तब भील नामक यह शिकारी शिकार करने के उद्देश्य से जंगल में गया। इसके बाद वह एक वृक्ष पर चढ़कर बैठ गया, देखते ही देखते पूरा एक दिन और पूरी रात बीत जाने पर भी उसे कोई शिकार नहीं मिला। जिस पेड़ पर वह शिकारी चढ़कर छिपा था, वह बेल का पेड़ था।
जब रात-दिन पूरा बीत जाने के कारण वह परेशान हो गया और बेल के पत्ते तोड़कर नीचे फेंकने लगा। उसी पेड़ के नीचे एक शिवलिंग भी स्थापित था। शिकारी जो पत्ते तोड़कर नीचे फेंक रहा था, वह  शि‍वलिंग पर गिर रहा था और इस बात से शिकारी पूरी तरह से अनजान था। शिकारी द्वारा लगातार फेंके जा रहे बेल के पत्ते शिवलिंग पर गिरने से भगवान शिव प्रसन्न हुए और अचानक शिकारी के सामने प्रकट हो गए। भगवान शि‍व ने उस शिकारी से वरदान मांगने के लिए कहा, और शिकारी का उद्धार किया, बस उसी दिन से भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने का महत्व और अधिक बढ़ने लगा.

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