स्कंद पुराण :- भुत-प्रेत क्या खाते हैं और कहा करते है ये वास?
हिंदू धर्म ग्रंथों में जीवन के साथ-साथ मनुष्य के मृत्यु के बाद मिलने वाली अवस्थाओं यानि की योनियों का भी वर्णन मिलता है ऐसा माना जाता है कि मनुष्य की मृत्यु के पश्चात उनके कर्म के हिसाब से ही स्वर्ग लोक या नरक लोक की प्राप्ति होती है। कुछ धर्म ग्रंथों में यह भी वर्णन मिला है कि जो मनुष्य अपने जीवन काल में बहुत अधिक पाप करते हैं उन्हें स्वर्ग लोक नरक लोक नहीं मिलता बल्कि उनके कर्मों के हिसाब से एक निश्चित समय के लिए उन्हें प्रेत योनि में भेज दिया जाता है। जब इंसान जीवित रहता है तो पृथ्वी पर खाने की चीजे खाकर जीवित रहता है लेकिन क्या आप जानते हैं जब पाप आत्मा को प्रेत योनि में डाला जाता है तो क्या खाकर अपना समय व्यतीत करता है अगर नहीं जानते हैं तो आज की इस पोस्ट में जानेंगे प्रेत के आहार से जुड़ी एक पौराणिक कथा के बारे में जिसका वर्णन स्कंद पुराण में किया गया है।
स्कंद पुराण – भूत-प्रेत की कथा
स्कंद पुराण के कथा के अनुसार पूर्व काल में एक विदुरत नाम से प्रसिद्ध एक हैहयवंशी राजा हुआ करता था जो बड़े-बड़े यज्ञ कराने वाले दम्पत्य तथा प्रत्येक कार्य में दक्ष थे। एक समय राजा विदुरत अपनी सेना के साथ हिंसक पशुओं से भरे हुए वन में शिकार खेलने के लिए गए। वहां उस वन में राजा ने कई हिंसक पशुओं को मार गिराए तब फिर उन वन जंतुओं में एक पशु उनके बाण से घायल होने के बाद भी जमीन पर नहीं गिरा और बाण लगे-लगे तेजी से भागा। राजा ने भी उस पशु का पीछा करने के लिए अपने रथ को दौड़ाया और वन के दूसरे छोर में पहुंच गए और उसकी सेना पीछे रह गई। वन का यह हिस्सा बहुत ही भयानक और भय उत्पन्न करने वाला था। उसमें कांटेदार वृक्ष और झाड़ियां भरी हुई थी।इस तरफ की सारी जंगल पथरीली, रूखी, सुखी तथा जल विहीन थी। इन दुर्गम वन का अंत ढूंढते हुए राजा विदुरत अपने घोड़े को कोड़े से पिट-पिट कर हाकने लगे, घोड़ा हवा से बातें करने लगा और उसने राजा को सब जंतुओं से दूर एक दुर्गम जगह पर पहुंचा दिया और अंत में घोड़ा भी गिर गया।
तब फिर भूख प्यास से व्याकुल राजा उस वन के अंदर पैदल ही चलने लगे और एक जगह लड़खड़ा कर गिर पड़े। इतने में ही उसने आकाश में 3 भयंकर दिखने वाले जीव देखें उन्हें देखकर राजा डर से थररा उठे। और उन तीनों जीवो ने भी राजा को देख लिया था, तो फिर राजा अपना अंत समझकर विदुरत ने उनसे बोला कि तुमलोग कौन हो, मै भूख-प्यास से पीड़ित राजा विदुरत हूँ शिकार के पीछे-पीछे मै यहाँ आ पहुंचा। तो उन तीनों प्रेतों में से जो सबसे जेष्ठ था उन्होंने विनय पूर्वक कहा – महाराजा हम तीनों प्रेत हैं और इस वन में रहते हैं हम लोग अपने कर्म जनित दोष से इस प्रेत योनि का दुख उठा रहे है। तब फिर उन्होंने कहा कि मेरा नाम मांसाद , और यह मेरा दूसरा साथी विदेवत, और तीसरा साथी कृतघ्न है जो हम सबसे बढ़कर पाप आत्मा है।
प्रेत क्या होता है और प्रेत योनि कैसे प्राप्त करते हैं
यह सुनकर राजा विदुरत अचरज में पड़ गए और फिर उन्होंने मांसाद से पूछा की प्रेत क्या होता है। तब फिर मांसाद ने बोला – हे राजन जो मनुष्य चुगली करने वाला, दूसरों को कष्ट देने वाला, तथा गुरु की सैया पर सोने वाला और जो वेदों तथा ब्राह्मणों की निंदा करता है, ब्राह्मण कुल में पैदा होकर मांस खाता है, और जो सदा दूसरे प्राणियों के साथ हिंसा करता है वह प्रेत होता है। जो पराई स्त्री से अशक्त, जो दूसरे के धन को हड़पने वाला, जो पराई निंदा से संतुष्ट होने वाला, जो धन की इच्छा से नीच अथवा दुष्ट व्यक्ति से अपनी कन्या का विवाह कर देता है राजन वह भी प्रेत है। जो मनुष्य उत्तम कुल में उत्पन्न दोषरहित और विनयशील पत्नी का त्याग करता है, जो देवता, स्त्री और गुरु का कर्ज लेकर लौटा नहीं देता है तथा जो ब्राह्मणों के लिए धन का दान होते देख उस में विघ्न डालता है वें सभी प्रेत योनि को प्राप्त होते हैं।
तब फिर राजा ने उनसे पूछा कि तुम प्रेत कैसे बने। तो फिर मांसाद ने इसका जवाब दिया कि हे राजन हम सभी अपने अलग-अलग कुकर्मों के कारण एक साथ प्रेत योनि मिली है। हे राजन हम तीनों एक ब्राह्मण के यहां एक साथ पैदा हुए थे हमने नास्तिक होकर धर्म मर्यादा का उल्लंघन किया और हम लोग सदा पराई स्त्रियों के मोह में फंसे रहे। मैंने जीभ कि लूलभता के कारण सदा मास का ही भोजन किया अतः मुझे अपने कर्म के अनुसार ही मांसाद नाम प्राप्त हुआ। महाराज यह दूसरा जो आपके साथ सामने खड़ा है इन्होंने हमेशा देवता का पूजन किए बिना अन्न ग्रहण किया है इनके कर्म फल से इन्हें भी प्रेत योनि में आना पड़ा है और देवताओं के विपरीत चलने के कारण का नाम विदेवत हुआ है। जिस पापी ने सदा दूसरों के साथ विश्वासघात और छल किया है वही अपने कर्म के अनुसार कृतघ्न कहलाता है।
भुत-प्रेत क्या खाते हैं और कहा रहते है।
इन सब के प्रेत बनने की कहानी सुनने के बाद राजा की उत्सुकता और बड़ी और उन्होंने पूछा कि इस मनुष्य लोक में इंसान आहार लेकर जीवित रहते हैं लेकिन तुम प्रेतों को कौन सा आहार प्राप्त होता है। तब फिर मांसाद ने बोला कि – हे राजन जिस घर में भोजन के समय स्त्रियों में युद्ध होता है, जहां भोजन से पहले भगवान का नाम ना लिया जाता हो, जहां पर भोजन कर रहे है वो स्थान अपवित्र हो, जिस घर में कभी झाड़ू ना लगता हो तथा मांगलिक कार्य और जहाँ अतिथियों का सत्कार न किया जाता हो, जिस घर में वेद मंत्रों की ध्वनि नहीं होता, जिस घर में फूटे बर्तनों का त्याग ना किया जाता हो हम वहां वास और भोजन करते हैं । जो श्राद्ध दक्षिणा से हीन तथा शास्त्र विधि से नहीं किया जाता हो वें श्राद्ध एवं भोजन हमारे अधिकारों में आ जाता है। इस तरह मांसाद ने राजा विदुरत को प्रेत के आहार और अपने वास स्थल के बारे में बताया।
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