श्री कृष्ण के अनुसार भोजन करने के नियम एवं किस दिशा में बैठकर भोजन करना चाहिए?

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भोजन करने के नियम

नमस्कार आपका स्वागत है भगवान श्री कृष्ण ने मनुष्य को भोजन करते समय कौन सी बातों का ध्यान रखना चाहिए इस विषय में बहुत ही महत्वपूर्ण ज्ञान दिया है। किस प्रकार का भोजन मनुष्य के जीवन को कष्टकारक होता है एवं किस समय एवं किस दिशा में भोजन करने से मनुष्य की आयु कम होती है एवं किस दिशा में भोजन करने से मनुष्य को सुख शांति, धन-वैभव आदि की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही वास्तुशास्त्र में भी भोजन करने के नियमों के बारे में बताया गया जिनके बारे में आज हम इस पोस्ट के माध्यम से विस्तार से जानेंगे,तो चलिए जानते हैं?

 वास्तु शास्त्र में भी भोजन करने के कुछ नियम के बारे में बताया गया है जिनका पालन करना अति आवश्यक होता हैं जिससे घर में धन ऐश्वर्य, सुख समृद्धि आदि बनी रहती हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार मनुष्य को भोजन करते समय अपना मुख उचित दिशा की ओर करना चाहिए गलत दिशा की ओर मुख करके भोजन करने से मनुष्य के ऊपर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके साथ ही भोजन शुरू करने से पहले मनुष्य को कुछ मंत्र अवश्य बोलने चाहिए ताकि भोजन करने समय सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव हो ताकि इसका हमारे शरीर के ऊपर अच्छा प्रभाव पड़े।

 दूसरे व्यक्ति का भोजन ग्रहण न करें 

 भगवान श्री कृष्ण कहते कभी भी किसी दूसरे व्यक्ति का भोजन स्वयं ग्रहण नहीं करना चाहिए। जिस प्रकार सुदामा ने अपने मित्र का भोजन स्वयं ही खा लिया था इससे उसको दरिद्रता का सामना करना पड़ा था। ठीक उसी प्रकार मनुष्य को भी किसी दूसरे व्यक्ति या प्राणी का भोजन स्वयं को ग्रहण नहीं करना चाहिए, या दूसरों को भूखा रखकर भी भोजन कभी नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से घर में दुख, अशांति, क्लेश, दरिद्रता हमेशा बनी रहती है और उस घर में मां लक्ष्मी का वास नहीं होता हैं।

 किस दिशा की ओर मुख करके भोजन करना चाहिए

पूर्व दिशा की ओर भोजन 

 वास्तु शास्त्र के अनुसार पूर्व दिशा में बैठकर भोजन करने से व्यक्ति मानसिक तनाव एवं रोगों से मुक्त हो जाता है। घर में बीमार आदि बुजुर्गों को पूर्व दिशा की ओर मुख करके भोजन अवश्य करना चाहिए इससे स्वास्थ्य में सुधार होने की संभावना बहुत अधिक होती है क्योंकि पूर्व दिशा उगते हुए सूर्य की दिशा होती है। पूर्व दिशा में भोजन करने से व्यक्ति सूर्य के समान ही तेजस्वी होते हैं जिससे वह व्यक्ति रोग, निर्बलता आदि विकारों से दूर रहते हैं।

 उत्तर दिशा की ओर भोजन 

 अगर कोई व्यक्ति व्यवसाय में तरक्की करना चाहता हैं या फिर नौकरी की तलाश में है तो उस व्यक्ति को उत्तर दिशा की ओर मुख करके भोजन करना चाहिए। उत्तर दिशा मां सरस्वती की दिशा मानी जाती है इससे उन्हें कार्यों में सफलता मिलती हैं।

 दक्षिण दिशा की ओर भोजन ना करें 

 दक्षिण दिशा की ओर मुख करके भोजन कभी ना करें। शास्त्रों में इस दिशा की ओर मुख करके भोजन करना वर्जित माना गया है शास्त्रों में इसे मृत्यु की दिशा माना गया है। इस दिशा की ओर मुख करके भोजन करने से व्यक्ति के कम आयु में ही मृत्यु की संभावना बनी रहती है। इस दिशा की ओर मुख करके भोजन करना सिर्फ व्यक्ति के मृत्यु के बाद श्राद्ध तेरहवीं आदि कार्यों में ही मान्यता दी गई है। इसलिए इस दिशा की ओर मुख करके भोजन कभी ना करें

 टूटे-फूटे बर्तनों में भोजन ना करें 

 वास्तु शास्त्र के अनुसार कभी भी टूटे-फूटे बर्तनों में भोजन नहीं करना चाहिए। टूटे-फूटे बर्तनों में भोजन करने पर अशुभ माना गया है दुर्भाग्य को निमंत्रण देता है। कहा जाता है कि टूटे-फूटे बर्तन में कलयुग का वास होता है इसलिए इसमें भोजन करने से मना किया जाता है क्योंकि इसमें भोजन करने से हमेशा घर में दरिद्रता और संकट का सामना करना पड़ता है इसलिए जब भी भोजन करें साफ थाली में करना चाहिए। गंदी थाली में भोजन करने से व्यक्ति के जीवन में दुख-दरिद्रता आदि आती रहती है।

 एकादशी के दिन तामसिक आहार का सेवन ना करें 

 एकादशी के दिन तामसिक आहार का सेवन कभी नहीं करना चाहिए। तामसिक आहार यानी कि मांस, मछली, अंडे इत्यादि मांसाहारी पदार्थों का सेवन वर्जित किया गया हैं क्योंकि इस दिन सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु का विशेष दिन माना जाता है यह दिन व्रत एवं उपवास करने के लिए होता है इसलिए इस दिन तामसिक आहार का सेवन वर्जित किया गया है। अगर कोई व्यक्ति इस दिन तामसिक आहार का सेवन करता हैं तो उसके जीवन में अनेक तरह की परेशानियां एवं बाधाएं, कर्ज उत्पन्न होने लगती है।

 भोजन करने से पहले इस मंत्र का जाप करना चाहिए

ॐ सह नाववतु।
सह नौ भुनक्तु।
सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु।
मा विद्‌विषावहै॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

 इस मंत्र के जाप से सभी देवी देवता संतुष्ट हो जाते हैं उन सभी की आज्ञा लेकर ही मनुष्य को भोजन करना चाहिए और उनसे प्रार्थना करनी चाहिए कि समस्त संसार के भूखे जीवो को अन्न की प्राप्ति हो। इस प्रकार के भोजन की शुरुआत करने से परमात्मा अत्यंत संतुष्ट होते हैं और व्यक्ति को दीर्घायु का आशीर्वाद प्रदान करते हैं

 अन्न अथवा भोजन बर्बाद ना करें 

 थाली में लिया हुआ भोजन को बर्बाद करना एवं खराब करना शास्त्रों में अनुचित माना गया है ऐसा करना अनर्थ का कारण बन सकता है इसलिए अपनी थाली में जितना आवश्यक हो उतना ही भोजन लेना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति साथ में भोजन कर रहा हो तो उसका भोजन समाप्त होने तक उठना नहीं चाहिए ऐसा न करने से पितृ दुखी हो जाते हैं और पितृदोष लगता है।

 भोजन करने के पश्चात थाली में हाथ ना धोए 

भोजन करने के पश्चात थाली में हाथ धोना अनुचित माना गया है थाली में हाथ धोने से अन्न का अपमान होता है यह नीच श्रेणी मनुष्यों के लक्षण है अतः ऐसा भूल से भी ना करें।

 बिस्तर पर बैठकर भोजन ना करें 

यह भी बात ध्यान में रखना चाहिए कि बिस्तर पर बैठ कर कभी भोजन नहीं करना चाहिए ऐसा करने से व्यक्ति को कई प्रकार के रोग लग सकते हैं भोजन केवल जमीन पर या फिर आसन पर बैठकर ही करना चाहिए। भोजन करते समय दूसरों को टोकना या फिर बातचीत नहीं करना चाहिए ऐसा करने से व्यक्ति के जीवन में दुर्भाग्य आ सकता और आपस में दोनों के बीच में आने वाले समय में टकराव भी बन सकता है इसलिए ऐसा ना करें।

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