मनुष्य को किस उम्र तक उनके पापों की सजा नहीं मिलती है?

मित्रों जैसा कि हम सभी जानते हैं कि इस दुनिया में कोई भी ऐसा इंसान नहीं है जो कभी भी अपने जीवन काल में एक छोटी सी गलती ना किया हो। मगर क्या आपको पता है हमारे जीवन में कुछ ऐसी भी गलतियां या पापों की सजा हमें नहीं भुगतनी पड़ती है। हमारे जीवन काल में कुछ ऐसे पल आते हैं जिस समय में हम यदि कोई गलती है पाप करते हैं जाने-अनजाने में तो हमें उसकी सजा नहीं मिलती है। तो चलिए जानते हैं हमारे जीवन में ऐसी कौन का ऐसा समय आता है जो उस समय किए हुए पाप या गलतियों की सजा हमें नहीं भुगतनी पड़ती है?(मनुष्य को किस उम्र तक उनके पापों की सजा नहीं मिलती है?)

मनुष्य को किस उम्र तक उनके पापों की सजा नहीं मिलती है?

 पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय में पृथ्वी पर एक मांडव नाम के ऋषि हुए।वह बहुत बड़े तपस्वी और धर्मात्मा थे। एक दिन उनके आश्रम की ओर कुछ लोग भागते हुए उनकी ओर आ रहे थे और वे लोग ऋषि से शरण मांगने लगे। वे लोग एक चोर थे जो किसी राज्य मे चोरी करके भाग रहे थे और उनके पीछे राज्य के सैनिक उसका पीछा कर रहे थे। तो वैसे भी चोर महर्षि  मांडव के आश्रम में छुपने के लिए उस से विनती करने लग गए। महर्षि को मालूम नहीं था कि यह लोग चोरी करके आ रहे हैं और यह सभी चोर है, महर्षि ने उनकी विनती सुन कर उसे छुपने के लिए उसे अपने आश्रम दे दिया।

 उसके बाद उस राज्य के सैनिक भी उस ऋषि के आश्रम तक आ पहुंची औऱ महर्षि के आश्रम को तलाशने लगे। लेकिन सभी चोर अपना लुटे हुए धन उसी आश्रम में छुपा कर भाग चुके थे और जब सैनिकों को वह लुटे हुए धन ऋषि का आश्रम से मिला तुझ से निकलो उस ऋषि को चोर का साथी मानकर राजा के दरबार में ले गया। तब सैनिकों ने राजा को सारी घटना बताया उसके बाद राजा ने महर्षि को भी चोर मानकर सूली पर चढ़ाने की सजा सुनाई। जब महर्षि को सूली पर चढ़ाई गई तो उसकी मृत्यु नहीं हुई मगर उसे दर्द और पीड़ा सहनी पड़ी। यह सब दृश्य देखकर उस राज्य के राजा को एहसास हो गया यह कोई चोर या आम ऋषि नहीं है। तब उनसे राजा क्षमा मांगने लगा कि-  हे ऋषि श्रेष्ठ हमें माफ कर दो हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई।

 कब हमें पापों की सजा हमें नहीं भुगतनी पड़ती है 

 तब महर्षि ने कहा – हे राजा हम तुम्हें तो माफ कर देंगे मगर उस धर्मराज को नहीं। इतना कहते ही वह महर्षि  अपने तपोबल से यमलोक को प्रस्थान कर गए और वहां पहुंच कर उन्होंने यमराज से पूछा कि – हे धर्मराज हम अपने जीवन में कोई भी पाप नहीं किया हम सदा परमात्मा के भक्ति धर्म आचरण करते जीवन व्यतीत किए हैं फिर हमें जीवन में ऐसा कष्टदायक फल क्यों भोगना पड़ा । तब धर्मराज ने ऋषि मांडव को कहा कि – हे महर्षि आप अपने बचपन में कीट-पतंगों को पकड़कर उनके पंखों में सुई चुभा दिया करते थे यह उसी पाप का परिणाम था।

 यह सुनकर मांडव ऋषि ने धर्मराज से कहा कि –धर्म  शास्त्रों के अनुसार जन्म से लेकर 12 वर्ष की आयु तक बालक जो भी कर्म करता है वह पाप नहीं माना जाता है क्योंकि जन्म से लेकर इस आयु तक वह अज्ञान होता है अतः आपसे बहुत बड़ी गलती हुई इसका परिणाम आपको भी भुगतना होगा। तब महर्षि मांडव ने धर्मराज को श्राप दे देते हैं कि तुम भी पृथ्वी लोक पर जाकर मानव रूप में जाने अनजाने में गलतियां करोगे और जब तुम विद्वान होगे तुम्हारी नीति कोई नहीं मानेगा। इसी श्राप के कारण धर्मराज द्वापर युग में विदुर के रूप में जन्म लिया था।

 तो दोस्तों यही वजह है कि भगवान भी बाल्यापन मे जाने अनजाने में किए हुए गलतियों को माफ कर देते हैं। तो दोस्तों इस कथा से अब हमें तो यह तो समझ में आ कि जन्म से लेकर 12 वर्ष की आयु तक इंसान को किए हुए कर्मों का फल नहीं भोगना पड़ता है क्योंकि वह अबोध होने के कारण उसके सारे कर्म माफ हो जाते है और फिर जब धीरे-धीरे उसके अंदर ज्ञान का प्रभाव होने लगता है तो फिर वह धर्म- अधर्म कर्मों से परिचित होने लगता है।

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