मित्रों यह तो सभी जानते हैं कि भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में भगवत गीता का अध्ययन कर लोगों ने अपने जीवन को बदला है. व्यक्तिगत जीवन को बदलने वाले श्रीमद् भगवत गीता को उपदेश भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र के उसी मैदान में दिया था जहां हजारों लाखों योद्धाओं का बलिदान भी हुआ था.महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र की भूमि में ही क्यों हुआ?
यह युद्ध तो समाप्त हो गया लेकिन इससे जुड़े ऐसे भी रहस्य है जिनके बारे में आज भी बहुत कम लोगों को पता है इन्हीं रहस्य में से एक रहस्य ऐसा भी है कि क्यों महाभारत का युद्ध आखिर कुरुक्षेत्र में ही हुआ था और भगवान श्री कृष्ण ने युद्ध के लिए केवल कुरुक्षेत्र को ही क्यों चुना था-
महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र की भूमि में ही क्यों हुआ?
महाभारत का युद्ध कौरवो और पांडवों के बीच हुआ था जिसमें दोनों तरफ से करोड़ों योद्धा मारे गए थे यह संसार का सबसे भीषण युद्ध भी माना जाता है. उससे पहले ना तो कभी ऐसा युद्ध हुआ था और ना ही भविष्य में कभी ऐसा युद्ध होने की संभावना है. कुरुक्षेत्र के धरती को महाभारत के युद्ध के लिए भगवान श्री कृष्ण ने ही चुना था लेकिन उन्होंने कुरुक्षेत्र को ही महाभारत के लिए क्यों चुना इसके पीछे एक गहरा रहस्य छुपा हुआ है.
शास्त्रों और धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक महाभारत का युद्ध जब तय हो गया था तो उसके लिए जमीन की तलाश की जाने लगी. भगवान श्री कृष्ण इसी युद्ध के जरिए धरती पर बढ़ते हुए पाप को मिटाना चाहते थे और धर्म की पुनर्स्थापना करना चाहते थे. कहते हैं कि भगवान श्री कृष्ण को यह डर था कि भाई भाइयों के गुरु शिष्यओ के और सगे संबंधियों के इस युद्ध में एक दूसरे को मरता देखकर कहीं कौरव और पांडव संधि ना कर ले इसलिए उन्होंने ऐसी भूमि चुनने का निर्णय लिया जहां क्रोध और ईर्ष्या प्राप्त मात्रा में हो.
इसके लिए श्रीकृष्ण ने अपने दूतों को सभी दिशाओं में भेजा और उन्हें वहां के घटनाओं का जायजा लेने को कहा. सभी दूतों ने सभी दिशाओं में घटना का जायजा लिया और भगवान श्रीकृष्ण को एक-एक करके उसके बारे में बताया उनमें से एक दूत ने एक घटना के बारे में बताया कि कुरुक्षेत्र में एक बड़े भाई ने अपने छोटे भाई को खेत में पेड़ टूटने पर बहते हुए दर्श्या के पानी को रोकने के लिए कहा लेकिन उसने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया इसपर बड़ा भाई गुस्से में आकर आग बबूला हो गया और उसने छोटे भाई को छूरे से गोंत कर मार डाला और उसकी लाश को घसीटता हुआ उस पेड़ के पास ले गया जहां से पानी निकल रहा था और वहां उसकी लाश को पानी रोकने के लिए लगा दिया.
महाभारत में कुरुक्षेत्र का रहस्य
दूत द्वारा सुनाई गई इस सच्ची घटना को सुन कर भगवान श्री कृष्ण ने तय किया कि यही भूमि भाई-भाई गुरु-शिष्य और सगे-संबंधियों के युद्ध के लिए बिल्कुल उपयुक्त है. श्री कृष्ण अब बिल्कुल निश्चिंत हो गए थे कि इस भूमि के संस्कार यहां पर भाइयों के युद्ध में एक दूसरे के प्रति प्रेम उत्पन्न नहीं होने देंगे इसके बाद उन्होंने महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र मैं करवाने का ऐलान कर दिया.
लेकिन जब यह युद्ध शुरू हुआ तो एक तरफ पांडव खड़े थे तो दूसरी ओर कौरव इसी बीच सभी योद्धा युद्ध के लिए बिलकुल तैयार थे लेकिन केवल अर्जुन के मन में अपने सगे संबंधियों को सामने देखकर करुणा का भाव आ गया उन्होंने युद्ध लड़ने को मना कर दिया और श्रीकृष्ण को कहा हे केशव मैं यह युद्ध नहीं लड़ सकता.
सामने खड़े योद्धा मेरे कोई शत्रु नहीं है बल्कि मेरे ही सगे संबंधी हैं इन पर मैं अपने अस्त्रों से वार कैसे करूंगा. तब श्री कृष्ण ने युद्ध के मैदान में ही अर्जुन को अपने दिव्य शरीर का दर्शन करवाते हुए वह दिव्य ज्ञान दिया जिसे भागवत गीता कहा जाता है और ज्ञान प्राप्त कर अर्जुन अपने कर्तव्य का पालन दृढ़ निश्चय से करने लगा.
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