महर्षि वेदव्यास जी के द्वारा लिखी गई महाभारत भारत का ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ माना जाता है. यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है इसमें लगभग 100000 से भी ज्यादा श्लोक हैं जो कि अन्य ग्रन्थ से कई गुना ज्यादा है. भगवत गीता भी महाभारत का एक छोटा सा हिस्सा है. महाभारत में वेदों और अन्य हिंदू धार्मिक ग्रंथों का सार निर्मित है. महाभारत का युद्ध इस विश्व के युद्ध का सबसे ऐतिहासिक और सबसे बड़ा युद्ध था.
कहा जाता है कि इस युद्ध के बाद भारत में पुरुषों की गिनती कई गुना कम हो गई थी और जिस जगह यह युद्ध हुआ था उस जगह की मिट्टी अभी भी मारे गए योद्धा के रक्त के कारण लाल है. अभी भी बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें यह नहीं मालूम कि महाभारत के इतने बड़े युद्ध की शुरुआत आखिर कैसे हुई थी तो चलिए आज अभी इसी के बारे में जानेंगे.
महाभारत से जुड़ी कुछ विशेष जानकारी
महान गणितज्ञ आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत का युद्ध 3067 ईसवी पूर्व हुआ था तब भगवान श्रीकृष्ण 83 वर्ष के थे. महाभारत युद्ध के 36 वर्ष बाद भगवान श्री कृष्ण ने देह त्याग दी थी. इसका मतलब इन्होंने 119 वर्ष की आयु में देव त्याग कर अपने परमधाम को चले गए थे. वेदव्यास जी के द्वारा रचित महाभारत को 3 चरणों में लिखा गया था पहले चरण में 8800 श्लोक थे, दूसरे चरण में 24000 तीसरे चरण में 100000 श्लोक लिखे गए थे.
कुछ विद्वानों का मानना है कि महाभारत में वर्णित सूर्य और चंद्र ग्रहण के अध्ययन से यह पता चलता है कि इसकी रचना 31 वी सदी ईस्वी पूर्व में हुई थी. महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में लड़ा गया था और कुरुक्षेत्र हरियाणा में स्थित है. कुरुक्षेत्र का चयन युद्ध के लिए भगवान श्री कृष्ण ने ही किया था. श्रीमद्भागवत गीता में कुरुक्षेत्र को धर्म क्षेत्र कहा गया है और इसी कुरुक्षेत्र में महाभारत युद्ध का आरंभ हुआ था. लेकिन इस युद्ध के पहले भी कौरवों और पांडवों के बीच एक ऐसी रणभूमि सजी थी जिस ने पांडवों को एक असल युद्ध की ओर मोड़ दिया था.
वह रणभूमि कोई ओर नहीं वह हस्तिनापुर का महल था जिसमें पांडवों को जुआ खेलने के लिए शकुनी द्वारा आमंत्रित किया गया था. इस महलरूपी रणभूमि में ही द्रोपदी का चीर हरण हुआ था. जिसके बाद पांडवों में कौरवों से बदला लेने की आग और भी अधिक बढ़ गई थी. कुरुक्षेत्र में कौरव और पांडवों के बीच कुरु साम्राज्य के सिंहासन की प्राप्ति के लिए युद्ध लड़ा गया था हालांकि युद्ध लड़ने के और भी कई कारण थे. कहा जाता है कि अगर कौरव पांडवों को श्री कृष्ण के कहने पर 5 गांव का साम्राज्य भी दे देते तो यह युद्ध नहीं होता.
महाभारत युद्ध होने के भी कई कारण हैं जिनमें से निम्न है धृतराष्ट्र के प्रति अपने पुत्र कौरवों का प्रेम और पांडवों के प्रति ईर्ष्या. हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र थे और उनके पुत्र दुर्योधन और दुशासन थे. पांडवों धृतराष्ट्र के भाई के बेटे थे. पांडव हमेशा धर्म के मार्ग पर चलते थे. पांडव और कौरव में मतभेद था कि हस्तिनापुर का राज्य सिंहासन धृतराष्ट्र के बाद कौन संभालेगा.
महाभारत युद्ध की शुरुआत कैसे हुई?
हालांकि युद्ध लड़े जाने के और भी कई कारण थे कहते हैं कि यदि कौरव पांडवो को 5 गांव दे देते तो युद्ध नहीं होता. दूसरा कारण यह था कि यदि कौरव और पांडव जुआ नहीं खेलते तो यह युद्ध नहीं होता, तो चलो यदि जुआ खेल भी लिया तो द्रोपति को दांव पर नहीं लगाते तो यह भी युद्ध टाला जा सकता था. तीसरा कारण यह था कि यदि द्रोपती दुर्योधन को अंधे का पुत्र अंधा नहीं कहती तो उसका चीरहरण नहीं होता और ना ही युद्ध होता.
महाभारत युद्ध होने का मूल कारण था कि उस समय संसार में अधर्म के मार्ग पर चलने वाले लोग अधिक हो गए थे लोग अपने धर्म पथ से भटक गए थे और भगवान श्री कृष्ण को पुनः इस संसार में धर्म की स्थापना करने के लिए इस महाभारत का युद्ध रोकने में हस्तक्षेप नहीं किये.
दोनों ओर की सेनाएं अपने-अपने अस्त्र और शस्त्र दोनों ही अलग-अलग प्रकार के घातक हथियारों के साथ आमने-सामने खड़ी थी. अस्त्र उसे कहा जाता है जो किसी मंत्र या किसी यंत्र द्वारा संचालित होते हैं और शस्त्र उसे कहते हैं जो हाथों से चलाए जाते हैं. महाभारत युद्ध से पूर्व पांडवों ने अपनी सेना का पड़ाव कुरुक्षेत्र के पश्चिमी क्षेत्र में सरस्वती नदी के दक्षिणी तट पर डाला था. कौरबो ने कुरुक्षेत्र के पूर्वी भाग में वहां से कुछ योजन की दूरी पर एक समतल मैदान में अपना क्षेत्र डाला था.
महाभारत युद्ध से जुड़े नियम
दोनों ओर के शिविरों में सैनिको के भोजन और घायलों की इलाज इसकी उत्तम व्यवस्था थी. इन दोनों शिविरों के मध्य 40 किलोमीटर का एक घेरा छोड़ा गया था जहां कि युद्ध लड़ा जाना था. पितामह भीष्म की सलाह पर दोनों दलों ने एकत्र होकर युद्ध के कुछ नियम बनाए थे उनके बनाए हुए नियमों के अनुसार प्रतिदिन युद्ध सूर्य उदय से लेकर सूर्यास्त तक ही रहेगा, सूर्यास्त के बाद युद्ध नहीं लड़ा जाएगा युद्ध समाप्ति के पश्चात छल कपट छोड़कर सभी लोग प्रेम का व्यवहार करेंगे.
महाभारत युद्ध का एक अहम नियम यह भी था कि रथी रथी से ही, हाथी वाला हाथी वाले से ही,पैदल सैनिक पैदल सैनिक से ही और घुड़सवार घुड़सवार से ही युद्ध करेगा. एक वीर एक वीर के साथ ही युद्ध करेगा और यदि एक योद्धा के साथ एक से अधिक योद्धा लड़ते हैं तो यह युद्ध नियमों के खिलाफ होगा. डरकर भागते हुए या शरण में आए हुए लोगों पर अस्त्र-शस्त्र से प्रहार नहीं किया जाएगा जो भी निहत्था हो जाएगा उस पर कोई अस्त्र नहीं उठाया जाएगा.
युद्ध में सेवक का काम करने वाले पर कोई अस्त्र नहीं उठाएगा. महाभारत के अनुसार इस युद्ध में भारत के प्राय सभी जनपदों सहित कुछ विदेशी राज्यों ने भी भाग लिया था. माना जाता है कि महाभारत युद्ध में एकमात्र जीवित बचा कौरव युयुत्सु ही था और 24165 कौरव सैनिक लापता हो गए थे जबकि महाभारत के युद्ध के पश्चात कोरबो की तरफ से तीन और पांडवों के तरफ से 15,यानी कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे.
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