महाभारत युद्ध में बलराम और श्री कृष्ण की एक अनोखी कथा?

महाभारत को पंचम वेद भी कहा जाता है यह ग्रंथ हमारे देश के मन प्राण में बसा हुआ है. यह भारत के राष्ट्रीक गाथा है अपने आदर्श स्त्री पुरुष के चरित्र से हमारे देश के जनजीवन को यह प्रभावित करता रहा है. इसमें सैकड़ों पात्रों स्थानों घटनाऔ तथा विचित्राओ और विडंबनाओं का वर्णन बेहद खूबसूरत तरीके से किया गया है. महाभारत युद्ध से क्यों दूर रहे बलराम?

यह युद्ध जब तय हुआ था तब पांडव और कौरव दोनों ही अपनी सेना को बढ़ाने में लग गए थे. महाभारत युद्ध में देश-विदेशों की सेना ने भाग लिया था. माना जाता है कि कौरवों के साथ श्री कृष्ण की नारायणी सेना और बहुत से देशों की सेना भी शामिल थे लेकिन पांडवों के साथ सिर्फ श्रीकृष्ण और उनके मित्र राजाओ की सेना थी.

 बलराम ने महाभारत के युद्ध में क्यों भाग नहीं लिया?

महाभारत के युद्ध के समय सारे भारतवर्ष में दो ही ऐसे राजा थे जो युद्ध में शामिल नहीं हुए थे जिसमें से एक बलराम और दूसरे भोजकट के राजा रुकमणी के भाई रुकमी थे. लेकिन ऐसा क्यों था कि बलराम जैसे योद्धा जो गदा युद्ध में निपुण थे वह इस निर्णायक युद्ध से दूर रहे जबकि बलराम दाऊ में इतनी शक्ति थी कि वह जिस भी पक्ष में शामिल होते तो उस पक्ष का पल्ला भारी हो जाता तो चलिए मिलकर इस रहस्य को जानते हैं.

भगवान श्री कृष्ण के बडे़ भाई बलराम ने श्री कृष्ण को कई बार समझाया था कि हमें युद्ध में शामिल नहीं होना चाहिए क्योंकि दुर्योधन और अर्जुन दोनों ही हमारे मित्र हैं ऐसे धर्म संकट के समय दोनों का ही पक्ष ना लेना उचित होगा. कहते हैं कि कभी-कभी प्रत्येक मनुष्य को धर्मसंकट जैसे स्थितियों का सामना करना पड़ता है ऐसे अवसर पर लोग दुविधा में फंस जाते हैं लेकिन श्रीकृष्ण को किसी भी प्रकार की कोई दुविधा नहीं थी.

उन्होंने इस समस्या का हल भी निकाल लिया था उन्होंने दुर्योधन से यह कह दिया था कि तुम मुझे और मेरी सेना दोनों में से किसी एक का चयन करो. दुर्योधन ने श्री कृष्ण की सेना का चयन किया था ओर श्री कृष्ण पांडवों से जा मिले थे. महाभारत में वर्णित है कि जिस समय युद्ध की तैयारियां हो रही थी उधर एक दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम पांडवों की छावनी में अचानक पहुंचते हैं.

महाभारत युद्ध में बलराम और श्री कृष्ण की एक कथा?

बलराम को आता देख श्रीकृष्ण युधिष्ठिर आदि बड़े प्रसन्न हुए सभी ने उनका आदर सम्मान किया सभी को अभिवादन कर बलराम धर्मराज की पास बैठ गए. फिर उन्होंने बड़े ही व्यतीत मन से कहा की कितनी बार मैंने श्री कृष्ण को कहा है कि हमारे लिए तो पांडव और कौरव दोनों ही एक समान है दोनों को ही मूर्खता करने की सुझी है इसमें हमें बीच में पड़ने की आवश्यकता नहीं है पर कृष्ण मेरी एक ना मानी.

कृष्ण का अर्जुन के प्रति स्नेह इतना ज्यादा है कि वह कौरव के विपक्ष में है अब जिस तरफ कृष्ण हो उसके विपक्ष में मैं कैसे जाऊं, भीम और दुर्योधन दोनों नहीं मुझसे गदा सीखी है दोनों ही मेरे शिष्य ही है दोनों पर मेरा एक जैसा स्नेह है इन दोनों कुरुवंश को आपस में लड़ते हुए देखकर अच्छा नहीं लगेगा इसलिए मैं तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूं.

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार श्री कृष्ण को विष्णु तो बलराम को शेषनाग का अवतार माना जाता है कहते हैं कि जब कंस ने देवकी वासुदेव के 6 पुत्रौ को मार दिया था तब देवकी के गर्भ से भगवान बलराम पधारे थे योग माया ने उन्हें आकर्षित करके नंद बाबा के यहां निवास कर रही श्री रोहिणी जी के घर में पहुंचा दिया था इसीलिए उनका एक नाम सकर्षन भी पड़ा था.

बलराम जी का विवाह रेवती से हुआ था बलवानो में श्रेष्ठ होने के कारण उन्हें बलभद्र भी कहा जाता है इनके नाम से मथुरा में दाऊजी का प्रसिद्ध मंदिर है. यह गदा धारण करते हैं यदुवंशी के संघार  के बाद बलराम ने समुद्र तट पर आसन लगाकर देह त्याग दी थी.

महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र की भूमि में ही क्यों हुआ?

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