मांसाहारी भोजन करने से इंसानों पर क्या प्रभाव पड़ता है?

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मांसाहारी भोजन करने से इंसानों पर क्या प्रभाव पड़ता है?

मित्रो वर्तमान समय में मांसाहारी भोजन करने का प्रचलन काफी बढ़ता जा रहा है! लोग अपने जीव को स्वाद और शरीर को पोषण देने के नाम पर बिना सोचे समझे एक बेजुबान जीव की हत्या कर देते हैं,वे जरा सा भी तरस नहीं खाते, एक जिंदा जीव को मारने से पहले हिंदू धर्म के अनुसार ऐसे लोग पापी के श्रेणी में आते हैं और मृत्यु के बाद नर्क में इसका दंड भोगना पड़ता है. इसके अलावा प्राचीन धर्म ग्रंथ भी यह बताते हैं कि मांसाहारी भोजन का प्रभाव जीवित व्यक्ति के मन पर भी पड़ता है तभी तो हमारे यहां एक कहावत भी प्रचलित है कि जैसा खाओगे अन्न वैसा होगा मन. मांसाहारी भोजन करने से इंसानों पर क्या प्रभाव पड़ता है?

भगवत गीता के अनुसार भोजन तीन प्रकार के होते हैं

सात्विक, राजसि और तामसिक.

 सात्विक भोजन

वह भोजन होता है जिसमें दूध, हरी सब्जियां, फलआदि वस्तुओं का सेवन किया जाता है, गीता के अनुसार सात्विक भोजन करने वाले व्यक्ति चिरायु होते हैं.वह तमाम तरह के रोग एवं व्याधियों से दूर रहते हैं  साथ ही उसके मन में क्रोध, काम आदि के प्रभाव जल्दी उत्पन्न नहीं होते और वे शांत दयालु किस्म के होते हैं. भगवान कृष्ण ने सात्विक भोजन को श्रेष्ठतम भोजन बताया है.

राजसि भोजन

उस भोजन को कहा जाता है जो शाकाहारी तो है परन्तु वह अत्यधिक खट्टा, गर्म, नमक और ज्यादा मसालों के साथ पकाया जाता है यह भोजन खाने में तो स्वादिष्ट लगेगा परंतु मसालो के कारण पोषक तत्व खो देगा ऐसे भोजन को केवल वह व्यक्ति ही करते हैं जो अपनी भूख नहीं केवल तृष्णा को शांत करना चाहते हैं. ऐसा भोजन करने से व्यक्ति का स्वास्थ्य तो खराब होता ही है इसके साथ ही उसके मन में भी विकार उत्पन्न होने लगते हैं उसके अंदर लालच, वासना और मन को कुंठित करने वाले गुण अधिक मात्रा में पनपने लगते हैं.

तामसिक भोजन

उस भोजन को कहा जाता है जो कि अधिक पका है रस रहित है जिसके अंदर से दुर्गंध आती हो वह एकदम बासी है और इसके अलावा वह अपवित्र होता हैं ऐसे भोजन में मदिरा एवं मांस को शामिल किया गया है. तामसिक भोजन मानवीय पाचन तंत्र के हिसाब से अत्यधिक खतरनाक तो है ही साथ ही इसका सेवन करने वाले व्यक्ति के मन पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं. मांस खाने वाले व्यक्ति का मन अशांत रहता है और उसके अंदर क्रोध, काम, विलासिता आदि उत्पन्न होने लगती है. उसके मन में किसी के भी प्रति दया भाव और प्रेम नहीं बचता है वह अत्यधिक उत्तेजित और कुरूर बन जाता है.

मांसाहारी के संबंध में गरुड़ पुराण की एक कथा 

मांसाहारी के संबंध में गरुड़ पुराण में एक कथा का वर्णित किया गया है. ” एक भारी राज्य में अनाज का उत्पादन बहुत कम हुआ इसके कारण जनता में चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था परिस्थिति इतनी भयानक हो चुकी थी कि राजा भी सोच में पड़ गया कि अगर इस समस्या का जल्द ही कोई उपाय नहीं निकाला गया तो राज्य के सभी अन्य के भंडार खत्म हो जाएंगे और लोग भूखे मरने लगेंगे. समस्या से निपटने के लिए राजा ने तत्कालीन प्रभाव से सभा बुलाई. उस सभा में सभी मंत्री गण एवं दरबार के अन्य सदस्य पधारे बारी-बारी से सभी से पूछा गया कि राज्य को खाद्य संकट से किस प्रकार बचाया जा सकता है.

दरबार में उपस्थित सभी सदस्यों ने अपनी-अपनी सलाह दी तभी एक मंत्री जी की बारी आई और उन्होंने उपाय सुझाते हुए कहा कि है महाराज इतनी कम समय में अन्न का दोबारा उपजाया जाना तो संभव नहीं है परन्तु सारी प्रजा और मंत्रिगन मांस का सेवन करना शुरू कर दे तो इस संकट से निजात पाई जा सकती है और महाराज मांस तो हमें आसानी से और तात्कालिक रूप से भी प्राप्त हो जाता है. हालांकि लगभग सभी सदस्यों ने इस बात का समर्थन किया परंतु प्रधानमंत्री अभी भी चुप बैठे थे. यह देख राजा ने प्रधानमंत्री से पूछा कि बताइए प्रधानमंत्री आप इस सुझाव से संतुष्ट हैं या नहीं, प्रधानमंत्री जी ने इस सुझाव पर जवाब देते हुए कहा कि मैं मांसाहार के सुझाव से सहमत नहीं हूं, तो राजा ने इसका कारण जानना चाहा.

प्रधानमंत्री जी ने राजा को इसका कारण बताने के लिए कल तक का समय मांग लिया, परंतु प्रधानमंत्री उसी रात मांसाहार का प्रस्ताव रखने वाले मंत्री के घर पहुंचे. प्रधानमंत्री जी ने उस मंत्री से कहा कि संध्या काल से ही महाराज का तबीयत बहुत खराब हो गया है राजबेध ने उनकी इस बीमारी का इलाज बताते हुए कहा है कि यदि राजा के किसी करीबी और उसके शक्तिशाली देह से 2 तोला मांस मिल जाए तो महाराज तुरंत ठीक हो जाएंगे अन्यथा उनके प्राणों पर संकट छाया रहेगा. आप ही एकमात्र महाराज के सबसे चहेते व्यक्ति हैं और आप देह से भी अत्यधिक शक्तिशाली हैं इसके लिए आप जो मूल्य लेना चाहे ले सकते हैं इस काम के लिए आपको राजकोष से एक लाख स्वर्ण मुद्राएं भी दी जाएगी तथा इसके अलावा एक बड़ी जागीर भी आपके नाम की जा सकती हैं, आप राजी हो तो मैं कटार से आपके हृदय को चीर कर बस 2 तोला मांस निकाल लू.

यह सुनकर उस मंत्री के चेहरे का रंग फीका पड़ गया वह सोचने लगा कि जब जीवन ही नहीं रहेगा तो एक लाख स्वर्ण मुद्राओं का मैं क्या करूंगा और यह बड़ी जागीर भी किस काम आएगी वह अपने कक्ष की और अंदर गया और अपनी तिजोरी से 100000 स्वर्ण मुद्राएं निकालकर गिड़गिराते हुए बोला महाराज यह एक लाख मुद्राएं आप हम से ले लीजिए परंतु मेरे प्राण बख्श दीजिए और आप इस पैसे से किसी और के हृदय का मांस खरीद लीजिए. उसके बाद प्रधानमंत्री जी बोले चुकी मंत्री जी आप शरीर से मजबूत हैं और आपके कद काठी भी महाराज से मिलते जुलते हैं इसलिए राजवैद्य ने खासतौर पर आप ही का नाम लिया है.

खुद को फंसता हुआ देख मंत्री ने अंग वस्त्र और जूते पहन लिए और प्रधानमंत्री से यह याचना करने लगा कि वह इसके योग्य नहीं है, जब प्राण ही नहीं रहेगा तो वह इस धनसंपदा का क्या करेगा. प्रधानमंत्री जी आप चाहे तो मेरी सारी संपत्ति ले ले परंतु मुझे जाने दे, इतना कहकर वह अपने घोड़े की ओर भागा और उस पर छलांग लगा कर बैठ गया. प्रधानमंत्री ने घोड़े की रस्सी पकड़कर घोड़े को रोक लिया और मंत्री जी से कहा कि भागने की कोई जरूरत नहीं है मंत्री जी, आप आराम से घर पर ही रहे मैं किसी और से मांग लेता हूं जाकर यह कहकर प्रधानमंत्री जी वहां से चले गए.

इसके बाद प्रधानमंत्री मुद्राएं लेकर बारी-बारी से सभी मंत्रियों के घर पहुंचे परन्तु कोई भी राजी ना हुआ, सब ने अपने अपने बचाव के लिए प्रधानमंत्री को लाख-लाख मुद्राएं भी देदी. अगली सुबह जब दरबार लगा तो सभी मंत्री समय से पहले ही दरबार पहुंच गए. सभी यह जानने को बेचैन थे कि महाराज का स्वास्थ्य कैसा है, थोड़ी देर बाद सभा में महाराज का आगमन हुआ और सिंहासन पर आकर बैठ गए सभी मंत्रीगण महाराज को स्वस्थ देखकर आश्चर्यचकित रह गए कि प्रधानमंत्री ने उनसे इतना बड़ा झूठ बोला, तभी प्रधानमंत्रीने राजा के समक्ष एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएं लाकर रख दी और राजा से बोले कि महाराज दो तोले मांस के लिए इतनी धनराशि जुटाई है पर मांस नहीं मिला.

सभी मंत्रियों को बड़ी-बड़ी जागीरे नाम करने के लिए कहा परंतु किसी ने फिर भी 2 तोला मांस नहीं दिया, देख रहे हैं महाराज आसानी से नहीं मिलता है मांस.राजा को उसकी बात समझ में आ गई उन्होंने प्रजा को अत्यधिक परिश्रम करने का निबेदन किया और राजा के भंडार से अनाज निकालकर श्रमिकों को देना शुरू कर दिया.”यह कहानी हमें बताती है कि जिस प्रकार मनुष्य के जीवन अमूल्य है उसी प्रकार इस संसार में पाए जाने वाले सभी जीवो का जीवन भी अमूल्य है.अपनी जीभ के स्वाद के लिए किसी भी मासूम की हत्या कभी नहीं करनी चाहिए “

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