मृत्यु के बाद कौन कहां तक साथ देता है – पौराणिक कथाएं?

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मित्रों मनुष्य का शरीर नश्वर है जिसका नष्ट होना निश्चित होता है। आपने सुना होगा कि मनुष्य ना कुछ लेकर आया है और ना ही कुछ लेकर जाएगा। इसके साथ ही यह भी कहा जाता है कि कोई मरने के बाद साथ नहीं देता है फिर चाहे वह परिजन हो या फिर दोस्त, लेकिन आज हम आपको इस पोस्ट के माध्यम से जानकारी देंगे की मृत्यु के बाद कौन कहां तक साथ देते है।मृत्यु के बाद कौन कहां तक साथ देता है – पौराणिक कथाएं? 

मृत्यु के बाद कौन कहां तक साथ देता है – पौराणिक कथाएं?

मित्रों आपने कई बार यह सोचा होगा कि आपका किसी अपने के इस दुनिया से चले जाने के बाद उसका साथ छूट जाएगा लेकिन हम आपको बता दे कि कुछ पल ऐसे भी होते हैं जहाँ तक कि उस मृत व्यक्ति का साथ जुड़ा हुआ होता है। मान ले कि अगर किसी की पति की मौत होती है तो उसका मृत शरीर शमशान ले जाया जाता है तब पत्नी को समाज दरवाजे पर ही रोक देता है उसको बाहर निकलने की इजाजत नहीं होती है अर्थात पति की मौत के बाद पत्नी के साथ सिर्फ दरवाजे तक की होता है।

वही आगे उसके पुत्र का साथ शमशान तक ही रहता है। पिता की मृत्यु के बाद पुत्र उसकी चिता को आग लगाते हैं उसका भी साथ खत्म हो जाता है। आगे मृतक के दोस्त, साथियों एवं पड़ोसियों का साथ सिर्फ अंतिम यात्रा तक ही होता है। जिसके बाद सिर्फ दिलों में यादें रह जाती है बाकी हर प्रकार के साथ यही छूट जाते हैं। इसके अलावा जिन लोगों को अपने पैसे पर घमंड रहता है मरने से पहले इसका साथ भी अस्पताल तक ही रहता है।

 मृत्यु के बाद क्या साथ जाता है

हम मेहनत करके जितना भी पैसा क्यों न कमा ले लेकिन इन पैसों से अपनी आखिरी सांसे नहीं खरीद सकते है अगर ऐसा होता तो अमीर लोगों की कभी मौत ना होती। उसके बाद हमारे शरीर की बारी आती है जो जीवन भर साथ देने वाले इस शरीर का साथ भी मौत के बाद सिर्फ चिता तक ही रहता है। जो चिता में आग लगने के बाद एक मोमबत्ती की भाती जल के राख हो जाती है।

इंसान की मृत्यु के बाद अगर कुछ साथ जाता है तो वह है उनके कर्म। मनुष्य अपने पूरे जीवन कल्पनाओं में बिता देता है लेकिन वह इस बात को भूल जाता है कि इस संसार से जब हम जाएंगे तो हमें खाली हाथ जाना ही जाना पड़ेगा। इसलिए इंसान को अपने जीवन में कुछ ना कुछ अच्छे कर्म भी अवश्य करनी चाहिए ताकि उसका प्रारब्ध अच्छा हो सके। इसीलिए कहा जाता है कि जीवन में अच्छे एवं सत्कर्म कर्म करने के लिए समय अवश्य निकालना चाहिए ताकि सत्कर्म का पलड़ा भारी भरे और मनुष्य को सद्गति प्राप्त हो।

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