तो मित्रों नमस्कार स्वागत है आप सभी का जैसा कि आप सभी जानते हैं गरुड़ पुराण में मनुष्य के कर्मों का लेखा जोखा मिलता है जिसमें यह भी बताया गया है कि मृत्यु के बाद आत्मा के साथ क्या-क्या होता है और किस तरह से एक जीवात्मा को स्वर्ग या फिर नर्क की प्राप्ति होती है. इसके अलावा इस धर्म पुराण में इसका भी जिक्र है कि मृत्यु होने पर परिजनों को क्या क्या करना चाहिए, तो चलिए जानते है?मृत्यु भोज खाना सही है या गलत
मृत्यु भोज खाना सही है या गलत
गरुड़ पुराण के अनुसार जब कोई मृत्यु को प्राप्त होता है तो उसके परिजनों को आत्मा की शांति और यमलोक की यात्रा तय करने के लिए दर्पण और पूजा करने चाहिए. ताकि मृत जीवात्मा को इस कठिन यात्रा पर चलने की शक्ति मिल सके दरअसल जब जीवात्मा शरीर का त्याग करती है तो वह निर्बल हो जाती है ऐसे में उसकी परिजन 12 दिनों तक जो पिंडदान करते हैं उसे खाने से जीवात्मा को चलने की शक्ति मिलती है. मृत्यु के बाद जो 10 दिनों तक पिंड दान किए जाते हैं उससे मृत आत्मा के विभिन्न अंगों का निर्माण होता है 11 वे और 12 वे दिन के पिंडदान से शरीर पर मांस और त्वचा का निर्माण होता है फिर 13 वे दिन जब 13 वी की जाती है तब मृतक के नाम से जो पिंड दान किया जाता है उससे ही वह यमलोक तक की यात्रा तय करती है.
मान्यता है कि आत्मा 12 दिन तक पैदल चलकर कई कष्टों को झेल कर अपने गंतव्य अर्थात प्रभु धाम तक पहुंचती है इसीलिए हिंदू धर्म में 13 वी करने का विधान है. परंतु कहीं कहीं समय के अभाव हो या फिर अन्य कारणों से भी तेरहवीं या फिर 12वीं की जाती है इस दिन मृतक के पसंदीदा खाद्य पदार्थ बनाए जाते हैं और फिर ब्रह्मभोज आयोजित कर ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देकर मृतक की आत्मा की शांति की प्रार्थना की जाती है. यहां पर आपकी जानकारी के लिए बता दें की ब्रह्मभोज को भी आजकल मृत्यु भोज कहा जा रहा है जो उचित नहीं है क्योंकि ब्रह्म भोज से ब्राह्मणों को ही कराया जाता है ना कि रिश्तेदारों
मृत्यु भोज कराना उचित है?
को यह गांव वाले को गरुड़ पुराण के 11 वे दिन महा ब्राह्मणों को भोज और 13 के दिन एक 13 या फिर अपने सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को भोज कराना चाहिए साथ ही ब्राह्मणों को सफेद साफी जनेऊ एकमात्र दान दिया जाना चाहिए इससे आत्मा को शांति मिलती है. अब मित्रों आपके मन में यह प्रश्न उठ रहा होगा कि अगर मृत्यु भोज का प्रावधान नहीं है तब फिर इसकी शुरुआत कैसे हुई दरअसल गरुड़ पुराण मैं पगड़ी रस्म का भी उल्लेख मिलता है यह रस्म तब की जाती है जब परिवार के मुखिया का मृत्यु होती है इसके बाद घर का नया मुखिया चुना जाता है और घर के सबसे अधिक उम्र के जीवित पुरुष रश्मिक तरीके से पगड़ी बांधे जाते हैं.
दरअसल पगड़ी संस्कार या तो अंतिम संस्कार के चौथे दिन या फिर 13 वे के दिन आयोजित किया जाता है यही नहीं कि घर का नया मुखिया चुने जाने पर रिश्तेदार और गांव वाले को भोज के लिए आमंत्रित किया जाता है जिसे आजकल मृत्यु भोज से जोड़कर देखा जा रहा है. अब आते हैं अंतिम सवाल पर अगर कोई मृत्यु भोज का आयोजन करा रहा है तो क्या वह गलत है और जो भोज खा रहे है क्या वह कोई पाप कर रहे हैं. तो मित्रों इसका उत्तर वैसे सीधे तौर पर तो हमारे धर्म शास्त्रों में नहीं मिलता लेकिन अगर आप महाभारत के अनुशासन पर्व के एक प्रसंग पर गौर करेंगे तो आपको इस प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा.
ब्रह्म या मृत्यु भोज खाना सही है या गलत
दरअसल यह बात महाभारत की युद्ध से पहले की है श्री कृष्ण ने दुर्योधन के घर जाकर संधि करने को कहा भगवान श्री कृष्ण ने दुर्योधन को हर तरह से युद्ध नहीं करने की सलाह दी लेकिन जब दुर्योधन नहीं माना तो श्री कृष्ण वहां से लौटने लगे. ऐसे में दुर्योधन ने उन्हें भोजन करने के लिए कहा तब श्री कृष्ण ने कहा हे दुर्योधन जब खिलाने वाले और खाने वाले का मन प्रसन्न हो तभी भोजन करना चाहिए लेकिन जब दोनों के दिल में दर्द और पीड़ा हो ऐसी स्थिति में कभी भी भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा भोजन व्यक्ति की उर्जा का नाश कर देता है.
और मित्रों जब किसी सगे संबंधी की मृत्यु होती है तब तेरहवीं पर आने वालों और जिनके घर में मौत हुई है दोनों के मन में विरह का दर्द होता है ऐसे में भोजन करवाने वाला और करने वाला दोनों ही दुखी होते हैं अतः मृत्यु भोज या 13 वी पर भोजन नहीं करना चाहिए मित्रों अंतिम में बस इतना ही कहूंगा कि दिखावे से भरी इस दुनिया में मृत्यु भोज एक तरह का दिखावा है जिस पर लोग लाखों रुपए खर्च करते हैं इसलिए हमें ना मृत्यु भोज करना चाहिए और ना ही इसमें शामिल होना चाहिए?
श्री कृष्ण के अनुसार मनुष्य बार-बार जन्म क्यों लेता हैं?