राजा दशरथ कौन थे
आप सब ने रामायण तो देखा होगा अगर आपने रामायण देखा है तो आप को मालूम ही होगा की राजा दशरथ कौन थे। फिर भी हम आपलोगों को बताएँगे पुराणों के अनुसार राजा दशरथ के जीवन के बारे मे कुछ रहस्यमय कथाएं तो चलिए जानते है।- राजा दशरथ की जन्म की कथा?
राजा दशरथ त्रेतायुग के अंत मे जन्मे अयोध्या नगरी के चक्रवर्ती राजा और भगवान विष्णु के अवतार प्रभु श्री राम के पिता थे। और महाराज दशरथ रामायण और पुराण में वर्णित इक्ष्वाकु वंश के महाराज अज के पुत्र और अयोध्या के नरेश थे। दशरथ की माता का नाम इन्दुमती था। इन्होंने देवताओं की ओर से कई बार दैत्य एवं राक्षस को देवासुर संग्राम मे परास्त किया था। वैवस्वत मनु के वंश में ऐसे कई परमवीर, पराक्रमी, प्रतिभाशाली एवं यशस्वी राजा हुये थे, जिसमे से राजा दशरथ भी एक थे।
सम्पूर्ण भारतवर्ष में पुरुषों के आदर्श और मर्यादापुरोत्तम श्रीरामचंद्र जी राजा दशरथ के ही ज्येष्ठ पुत्र थे। चक्रवर्ती महाराज दशरथ की 3 रानियाँ थीं- कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी। दशरथ की तीसरी रानी कैकेयी की हठधर्मिता के वज़ह से ही भगवान राम को पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण सहित वनवास का दुख भोगना पड़ा था। राजा दशरथ को अपने पुत्र भगवान राम चंद्र जी को वनवास नहीं भेजना चाहते थे लेकिन फिर भी अपने पिता का वचन झूठा न हो इसके लिये भगवान श्री राम वनवास का दुख भोगने के लिये तैयार हो गए और इधर भगवान राम वनवास को जाते ही उसके पिता पुत्र स्नेह वियोग मे अपने प्राण त्याग दिये। दशरथ के चरित्र में एक महान आदर्श महाराजा, पुत्र को प्रेम करने वाले पिता और अपने वचनों के प्रति पूर्ण समर्पित व्यक्ति को दर्शाया गया है।
दशरथ का जन्म
महाराज दशरथ का जन्म त्रेतायुग मे इक्ष्वाकु वंश के यशस्वी और पराकर्मी राजा अज के यहाँ रानी इन्दुमती के गर्भ से हुआ था। उस समय उस स्थान को कौशल प्रदेश के नाम से जाना जाता था जिसकी स्थापना वैवस्वत मनु ने की थी, और वो स्थान पवित्र सरयू नदी के तट पर स्थित था जिसे आज हम अयोध्या नगरी के नाम से जानते है। समृद्ध और सुन्दर अयोध्या नगरी इस प्रदेश की राजधानी थी। महाराज दशरथ वेदों के ज्ञाता, दयालु, धर्म के लिये अपने प्राण तक न्योछावर कर देने वाले, रण कुशल और प्रजा पालक थे। इनके राज्य में प्रजा कष्टरहित, सत्यनिष्ठ, धर्मनिष्ठ और ईश्वर भक्तिय थे। इनके राज्य में किसी भी प्रजा के भी मन में किसी के प्रति गलत भावना एवं गलत विचार एवं द्वेषभाव का सर्वथा अभाव था।
दशरथ की पूर्व जन्म की कथा
प्राचीन काल में एक समय की बात है मनु और शतरूपा ने वृद्धावस्था मे दोनों एक पैर पर खड़े रहकर भगवान विष्णु की घोर तपस्या की। इन दोनों की तपस्या को देखते हुए भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न होकर इन्हें दर्शन दिए और वरदान माँगने को कहा। इनदोनों ने कहा- हे “प्रभु! आपने दर्शन देकर हमारा जीवन धन्य कर दिया है अब हमें कुछ नहीं चाहिए।” इन शब्दों को कहते समय इनदोनों की आँखों से प्रेमधारा निकलने लगी।
भगवान विष्णु बोले- “मै तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूँ वत्स! इस समस्त सृष्टि में ऐसा कुछ नहीं, जो मैं तुम्हें न दे सकूँ।” भगवान विष्णु ने कहा- “तुम निस्संकोच होकर अपने मन की बात कहो।” भगवान विष्णु के ऐसा कहने पर महाराज मनु ने बड़े संकोच से अपने मन की बात कही- “प्रभु! हम दोनों की इच्छा है कि आप किसी जन्म में हमारे पुत्र रूप में जन्म लें।”
तब भगवान विष्णु ने कहा ‘ऐसा ही होगा वत्स!’ भगवान ने उन्हें ये वरदान दिया और कहा- “त्रेतायुग में तुम अयोध्यानरेश दशरथ के रूप में जन्म लोगे और तुम्हारी पत्नी शतरूपा तुम्हारी पटरानी कौशल्या होगी। तब उस समय मैं दुरा चारी रावण का संहार करने के लिए माता कौशल्या के गर्भ से जन्म लूँगा।” मनु और शतरूपा ने प्रभु की वन्दना की। भगवान विष्णु उन्हें वरदान देकर अंतर्धान हो गए।
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