मित्रों हिंदू पुराणों और ग्रंथों के अनुसार सृष्टि के आरंभ काल से ही इस पृथ्वी लोक पर जीवन चक्र चला आ रहा है। इस पृथ्वी लोक पर जिसने भी जन्म लिया है उसे एक न एक दिन मरना ही पड़ता है। और ऐसा माना जाता है कि मृत्यु के बाद आत्मा को यमदूत अपने साथ यमलोक ले जाते है लेकिन पृथ्वी लोक से यमलोक की यात्रा जीवात्मा के लिए बड़ा ही कठिन माना जाता है जिसका वर्णन गरुड़ पुराण में किया गया है। गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद जीवात्मा को यमलोक के मार्ग में कई प्रकार के बाधाओं का सामना करना पड़ता है और इन्हीं बातों में से एक यमलोक के मार्ग में पड़ने वाले वाली – वैतरणी नदी। ऐसा माना जाता है कि पुण्य आत्मा तो इस नदी को बड़े ही आसानी से पार कर जाते हैं लेकिन पाप आत्मा को इस नदी में कई तरह की यातनाओं का सामना करना पड़ता है। आज की इस पोस्ट में हम जानेंगे कि वैतरणी नदी किस प्रकार है और पापी आत्माओं को यहाँ किस प्रकार की यात्राओं से होकर गुजरना पड़ता है।
वैतरणी नदी का वर्णन – गरुड़ पुराण
गरुड़ पुराण के धर्म-कांड के प्रेतकल्प अध्याय में वर्णित कथा के अनुसार एक दिन पक्षीराज गरुड़ श्रीहरि से पूछते हैं कि – हे प्रभु मृत्यु लोक और यमलोक के बीच जो वैतरणी नदी स्थित है उससे जीवात्मा का क्या संबंध है और उसे इस नदी में कैसी सजा भुगतनी पड़ती है और पापी आत्मा इसे कैसे पार करते हैं। भगवान श्री हरि ने कहा कि – हे गरुड़ यमलोक के मार्ग में स्थित वैतरणी नदी देखने में बड़ी ही भयानक है और जो भी पापी आत्मा मरने के बाद इस नदी से होकर गुजरती है उसे बड़ा ही भयभीत कराती है। यह महा भयानक नदी रक्त रूपी जल से परिपूर्ण है इतना ही नहीं यह नदी मांस,कीचड़ से भरी हुई है। यह नदी पापी जीवात्मा को देखकर कई तरह की भयानक स्वरूप को धारण कर लेती है, पापी आत्मा को नदी में प्रवेश करते ही इस नदी का रक्तरूपी जल पात्र में रखे घी की भांति तुरंत खोलने लगता है। इस नदी का रक्तरूपीजल कीटाणुओं एवं वज्र के समान सूंड वाले जीवो से व्याप्त है साथ ही इस नदी में घड़ियाल, मगरमछ तथा इनके ही जैसे अनेकों हिंसक और मांस भक्षण जलचरों से भरी हुई है। और नदी में जैसे ही पापी आत्मा का प्रवेश होती है वे 12 सूर्य के गर्मी के समतुल्य तपने लगती है उससे उस महा ताप में पापी चिल्लाते हुए करुण विलाप करने लगता है। ताप के कारण पापी आत्मा अपने को पुकारने लगता है और जब कोई उसके पास नहीं आता तो वे भयंकर गर्मी में इधर-उधर भागने लगता है। और जब ताप उससे बर्दाश्त नहीं होता तब वह दुरात्मा उस भयंकर रक्तरूपी जल में डुबकी लगाने लगता है।
फिर श्रीहरि कहते हैं कि – हे गरुड़ कुछ जीवात्मा ऐसी भी होती है जिन्हें मृत्यु के पश्चात इसी वैतरणी नदी में रहना होता है जैसे कि जो अपने जीवन काल में आचार्य, गुरु, माता पिता एवं अन्य वृद्धजनों का अपमान करते हैं उसे इसी महानदी में रहना पड़ता है। इसके अलावा जो जीवात्मा अपने जीवन काल में पवित्रता, सुशीला और धर्मपरायण पत्नी का परित्याग करते हैं उनको भी इस महानदी में वास होता है। साथ ही जो जीव आत्मा जीवित रहते हुए अपने स्वामी, मित्र, स्त्री, तपस्वी, बालक, एवं वृद्ध का वध करते वे इसी महानदी में गिरते है। इसके अलावा आग लगाने वाला, विष देने वाला, मध पीने वाला, यज्ञ का विध्वंस करने वाला, राजपत्नी के साथ गमन करने वाला, चुगल खोरी करने वाला, कथा में विघ्न करने वाला, स्वयं दान की वस्तु का अपहरण करने वाला, खेत की मेड, और सेतु को तोड़ने वाला, दूसरे की पत्नी को प्रदर्शित करने वाला, कन्या के साथ दुष्कर्म करने वाला, शूद्र तथा मांस भोजी ब्राह्मण, ये सब मरने के बाद वैतरणी नदी में वास करते हैं।
इन सबके अलावा अहंकारी,पापी अपनी झूठी प्रशंसा करने वाले, गर्भपात करने वाला, वैतरणी में निवास करता है परंतु इन पापी जीव आत्माओं में जिसने मकर और कर्क की संक्रांति, सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण, संक्रांति, अमावस्या अथवा अन्य पुण्यकाल के आने पर श्रेष्ठतम दान दिया हो उसे एक निश्चित समय के पश्चात यमदूतों के द्वारा इस नदी से निकाल लिया जाता है। इसलिए प्राणियों को चाहिए कि वे जीवित रहते दान-कर्म और धर्म का संग्रह करें। इसके अलावा जो जीवात्मा जीवित रहते हुए ब्राह्मणों को गौ दान करता है उसे इस नदी की यातानाओं से मुक्ति मिल जाती है इसलिए हिंदू धर्म में मृत्यु से पहले गौ दान कराया जाता है। ऐसा माना जाता है कि गौ दान करने से मनुष्य उसी गाय की पूंछ पकड़कर उस वैतरणी नदी को पार करता है और उसके सुकर्म के प्रभाव से पारलौकिक सुख की प्राप्ति होती है। इसलिए दोस्तों मनुष्य को चाहिए कि वह अपने जीवन काल में अधिक से अधिक धर्म का संग्रह करें जिससे कि उसे मृत्यु के बाद किसी तरह का कष्ट ना झेलना पड़े।
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