दोस्तों आप तो जानते ही होंगे कि सूर्य पुत्र शनि देव का क्रोध व्यक्ति का राजा से रंक बना सकता है और इसी क्रोध से बचने एवं जीवन में सुख समृद्धि बनाए रखने के लिए ज्यादातर लोग प्रत्येक शनिवार को शनिदेव को सरसों का तेल चढ़ाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शनिदेव को सरसों का तेल कब से चढ़ाया जाने लगा।शनिदेव भगवान को सरसों का तेल क्यों चढ़ाया जाता है?
शनिदेव भगवान को सरसों का तेल क्यों चढ़ाया जाता है?
दरअसल इसके पीछे एक पौराणिक कथा छिपी है जिसके अनुसार कहा जाता है कि एक बार लंकापति रावण ने अपने महल में सभी ग्रहों को बंदी बनाकर लाया था उनमें से शनिदेव भी शामिल थे। उस समय रावण अपने अहंकार में इतना डूबा था कि उसने शनिदेव को उल्टा लटका रखा था। इसी समय जब माता सीता की खोज करते हुए हनुमान जी लंका पहुंचे और रावण ने उसकी पूछ में आग लगाई तो इससे क्रोधित होकर हनुमान जी ने लंका को आग के हवाले कर दिया।
दोस्तों जब लंका जलकर राख हो गए थे तो सारे ग्रह रावण के कैदी से मुक्त हो गए लेकिन शनि देव उल्टे लटके होने की वजह से मुक्त नहीं हो पाए और काफी समय से उल्टे लटके रहने के कारण उन्हें और असहनी पीड़ा हो रही थी। उनका शरीर पीड़ा और दर्द तड़प रहा था। शनि देव की दयनीय हालत देखकर हनुमान जी को उन पर दया आ गई और तभी शनिदेव के शरीर पर सरसों का तेल मालिश कर दी जिसके बाद शनिदेव को दर्द से राहत मिल गई।
इसी छन हनुमान जी पर अत्यधिक प्रसन्न होकर शनिदेव ने कहा था कि जो भी भक्त शनिदेव की पूजा करते समय उन्हें सरसों का तेल चढ़ आएगा तो उन्हें जीवन की सारी समस्याएं दूर हो जाएंगे। दोस्तों मान्यताओं के अनुसार तभी से शनिदेव को सरसों का तेल चढ़ाने की शुरुआत मानी गई है।
शनिदेव को तेल क्यों और कब से चढ़ाया जाने लगा
इसके अलावा सनातन धर्म में दूसरी कथा भी विख्यात है जिसमें बताया गया है कि शनिदेव को तेल क्यों और कब से चढ़ाया जाने लगा। एक बार शाम के समय हनुमान जी राम के साथ बैठे प्रभु श्रीराम के भक्ति में विलीन थे तभी शनिदेव आकाश से समुद्र तट के किनारे पहुंचे उस समय शनिदेव को अपनी शक्ति और पराक्रम पर बहुत अहंकार था वह सोचते थे कि उससे अधिक शक्तिशाली संपूर्ण धरती पर कोई नहीं है।
फिर शनिदेव की नजर जैसे ही श्री राम भक्त हनुमान पर पड़ी और उसके समीप पहुंचे और कठोर आवाज में बोले ए वानर क्या तुम जानते हो कि मैं कौन हूं, मैं महाशक्तिशाली सूर्य पुत्र शनि हूं।
ऐसी कड़वी बोली सुनकर राम भक्त अपने नेत्र खोलते हुए बड़े नम्रता से बोले महाराज आप कौन हैं और यहाँ किस उद्देश्य से आए हैं। वह फिर क्रोध में बोले मैं परम सूर्य का पुत्र पराक्रमी शनि हूं। संपूर्ण ब्रह्मांड मेरा नाम सुनकर कांपने लगता है सावधान में तुम्हारी राशि पर आ रहा हूं। उस पर हनुमान जी ने बहुत ही शालीनता से कहा महाराज मैं काफी थका हुआ हूं और अपने प्रभु के ध्यान में मगन हो कृपया करके इस में बाधा ना डालें।
फिर अहंकार में शनिदेव ने कहा मैं कहीं जाकर लौटता नहीं हूं जहां जाता हूं वहां अपने प्रभाव दिखाकर ही वापस लौटता हूं। यहां हनुमानजी के बार-बार आग्रह करने के बाद भी शनिदेव ने उनकी एक ना सुनी और अहंकार में बोले जो भी इस पृथ्वी पर रहता है उसके ऊपर मेरी साढ़ेसाती की दशा प्रभावित होती है और यह आप पर भी प्रभावित होने वाली है। अब मैं आपके शरीर पर आ रहा हूं इसे कोई टाल नहीं सकता।
हनुमान जी और शनिदेव की कथा
उन्होंने फिर वैसे ही जवाब दिया ठीक है आपको आना है तो आइए लेकिन यह तो बताइए आप रहेंगे कहां। फिर उत्तर देते हुए शनिदेव बोले मैं अपने साढ़ेसाती मैं शुरुआत के ढाई वर्ष मनुष्य सिर पर बैठकर उनके बुद्धि विचलित करता हूं, अगले ढाई वर्ष मनुष्य के अंदर में बैठकर उसके शरीर को अस्वस्थ बनाता हूं और अंतिम ढाई वर्षो में मनुष्य के पैरों में रहकर उसके पद से भटका आता हूं। यह कहने के बाद अहंकारी देवता हनुमान जी के सिर पर जा बैठे जिसके बाद उन्हें मस्तक में खुजली होने लगी और हनुमान जी ने अपनी गधा उठाकर जय श्री राम का नारा लगाते हुए तेजी से उस स्थान पर एक गदा मारा।
जैसे ही गदा शनिदेव को लगी वैसे ही वह बोले यह तुम क्या कर रहे हो। हनुमान जी बड़ी चतुराई से बोले मेरे मस्तक में खुजली हो रही है मैं अपनी खुजली इसी तरह मिटाता हूं और इतना कहते हुए उन्होंने फिर से एक गदा अपने सिर पर मारी जिसके बाद स्नेह दे उसके पीठ पर आ गए इसी तरह वह उनके पेट से पैरों में भी गए जिसके बाद हनुमान जी नारा लगाते एक बार फिर गदा पैरों पर मारते हैं और इसके तुरंत बाद शनि देव राम भक्तों के चरणों में गिर पड़े और बोले – हे करुणा मैं हे महावीर मुझ पर दया कीजिए मैं अपने अहंकार का दंड पा चुका हूं, मुझे क्षमा कीजिए मैं आपकी शरण में हूं।
शनि महाराज को तेल चढ़ाने की कथा
करुणामयी हनुमान जी बोले- हे शनिदेव में आपको मरना नहीं चाहता था परंतु मेरे शरीर में केवल मेरे प्रभु श्री राम ही रहते है यहाँ किसी दूसरे के लिए स्थान नहीं है। दोनों देवताओं के बीच संवाद चलता रहा और जब शनिदेव ने डर से भागते हुए कहा मेरे इस असहनीय पीड़ा को दूर करें मुझ पर दया करें। तब हनुमान जी बोले तुम मेरे भक्तों की राशि पर कभी नहीं आने का वचन दो तभी तुम्हें पीड़ा मुक्त कर सकता हूं।
दोस्तों उसके बाद शनि देव ने महावीर हनुमान की बात मान ली जिसके परिणाम स्वरूप शनि देव को हनुमान जी से पीड़ा निवारण के लिए तेल प्राप्त हुआ और मान्यताओं के अनुसार तभी से शनिदेव को तेल चढ़ाया जाने लगा है। साथ ही यह भी माना जाने लगा कि जो लोग हनुमान जी की उपासना करते हैं उन्हें शनि देव कभी परेशान नहीं करते। दोस्तों अगर आपको यह कथा अच्छी लगी हो तो कमेंट करके जरूर बताइए धन्यवाद।
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