शिवलिंग की परिक्रमा क्यों नहीं की जाती है -पौराणिक कथा?

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दोस्तों भोलेनाथ के भक्त सच्ची श्रद्धा से उनकी भक्ति और शिवलिंग की परिक्रमा करते हैं, लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि शिव शंकर की शिवलिंग की आधी परिक्रमा ही क्यों की जाती है। बता दें कि शिवपुराण के साथ कई और शास्त्रों में शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने का ही विधान बताया गया है ऐसा करने के पीछे भी कारण है माना जाता है कि धार्मिक रूप से शिवलिंग को शिव और शक्ति दोनों की सम्मिलित ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है।शिवलिंग की परिक्रमा क्यों नहीं की जाती है -पौराणिक कथा?

शिवलिंग की परिक्रमा क्यों नहीं की जाती है -पौराणिक कथा?

यही कारण है कि इसमें लगातार जल चढ़ाया जाता है ताकि शिवलिंग की गर्म तासीर को सामान्य किया जा सके। इस जल को अत्यंत पवित्र माना जाता है और यह जल जिस मार्ग से निकलता है उसे निर्मलिया जलाधारी कहा जाता है। शिवलिंग की जलहरी को भूल कर भी लांघना नहीं चाहिए अन्यथा इससे घोर पाप लगता है। शिवलिंग की जलहरी को ऊर्जा और शक्ति का भंडार माना गया है। यदि परिक्रमा करते समय इसे लांघा जाए तो मनुष्य को शारीरिक परेशानियों के साथ ही शारीरिक ऊर्जा हानी का सामना करना पड़ सकता है।

शिवलिंग की पूर्ण परिक्रमा से शरीर पर से 5 तरह के विपरीत प्रभाव पड़ते हैं। इससे देवदत्त और धनंजय वायु के प्रवाह में रुकावट पैदा हो जाती है इसी वजह से शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरह का कष्ट उत्पन्न होता है। शिवलिंग की अर्ध चंद्रमा प्रदक्षिणा ही हमेशा करना चाहिए

शिवलिंग की परिक्रमा

शिवलिंग की परिक्रमा करने से कुछ नियम है किसी भी देवी-देवता की परिक्रमा दाएं और से की जाती है जबकि शिव जी की परिक्रमा बाई तरफ से की जाती है जिसके बाद जलाधारी के वापस दाएं और से लौटना होता है। शिवलिंग पर भूल कर भी मेहंदी या हल्दी नहीं चढ़ाने चाहिए दरअसल इन चीजों का इस्तेमाल देवी की पूजा के लिए किया जाता है साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि भगवान शिव की पूजा करते समय आपका मुंह दक्षिण की ओर होना चाहिए।

शिव लिंग की पूजा या परिक्रमा करने के बाद कभी भी उसके ऊपरी हिस्से को नहीं छूना चाहिए। इस बात का भी खास ख्याल रखें कि जलधारी के सामने खड़े होकर कभी भी शिवलिंग की पूजा ना करें शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग की परिक्रमा हमेशा बाई तरफ से की जाती है ऐसा करने से ही शिव पूजन का विशेष फल प्राप्त होता है। बाएं और से शुरू करके जलहरी तब जाकर वापस लौटकर दूसरी ओर से परिक्रमा करें।इसके साथ विपरीत दिशा में लौट दूसरे सिरे तक आकर परिक्रमा पूरी करें इसे शिवलिंग की आधी परिक्रमा भी कहा जाता है।

इस बात का ख्याल रखें की परिक्रमा दाएं तरफ से कभी भी शुरू नहीं करनी चाहिए। शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने के साथ ही दिशा का भी ध्यान रखना चाहिए साथ ही जलाधारी तक जाकर वापस लौटकर दूसरी ओर से परिक्रमा करनी चाहिए।  कहा जाता है कि कहीं कहीं पर शिवलिंग पर चढ़ाया हुआ जल सीधे भूमि में चला जाता है या कहीं कहीं जलाधारी ढकी हुई होती है ऐसी स्थिति में शिवलिंग की पूरी परिक्रमा की जा सकती है यानी ऐसे में जला धारी को लागने में दोष नहीं लगता।

शिवलिंग के महत्व

वही घर में शिवलिंग रखने से महिलाओं को नुकसान होता है माना जाता है कि शिवलिंग से निकलने वाली गर्म ऊर्जा सही नहीं होती। साथ ही शिवलिंग को घर में रखने पर बहुत ही विधि विधान का पालन करना होता है और गृहस्थ इसका पालन नहीं कर सकते यही कारण है कि घर में शिवलिंग रखने से सिरदर्द, स्त्री रोग, जोड़ों में दर्द और अशांत मन, गृह क्लेश, आर्थिक स्थितियां बढ़ती है।

दोस्तों शिवलिंग भगवान शंकर का एक अभिन्न अंग है और इसकी दासी बहुत ही गर्म मानी गई है यही कारण है कि शिवलिंग पर जल चढ़ाने की प्रथा है। मंदिरों में शिवलिंग के ऊपर एक घड़ा रखा होता है जिसमें से पानी की बूंद शिवलिंग पर गिरती रहती है ताकि शिवलिंग की गर्मी को कम किया जा सके और उसमें से सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित हो सके।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से शिवलिंग

वहीं अगर वैज्ञानिक कारणों के बारे में बात करें तो शिवलिंग ऊर्जा शक्ति का भंडार होती है और इसके आसपास के क्षेत्रों में रेडियो एक्टिव तत्वों के अंश भी पाए जाते हैं। काशी के भूजल में यूरेनियम के अंश भी मिले हैं अगर हम भारत की रेडियो एक्टिविटी मैप को देखें तो पता चलेगा कि शिवलिंग के आसपास के क्षेत्र में रेडिशन पाया जाता है।

यदि आपने एटॉमिक रिएक्टर सेंटर के आकार पर गौर किया हो तो शिवलिंग के आकार और एटॉमिक रिएक्टर सेंटर के आकार में आपको समानता नजर आएगी। ऐसे में शिवलिंग पर चढ़े जल में इतनी ज्यादा ऊर्जा होती है कि से लागने से व्यक्ति को बहुत नुकसान हो सकता है इसीलिए शिवलिंग की जलाधारी को लांगने की मना की गई है।

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