शिव मंदिर के अंदर क्यों नहीं बनाई जाती नंदी की मूर्ति?

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शिव मंदिर के अंदर क्यों नहीं बनाई जाती नंदी की मूर्ति?

मित्रों यदि आप कभी भगवान भोलेनाथ का नाम लेते हैं | तो आपके मन में उनके साथ ही नंदी का भी ख्याल आता होगा | आपने हमेशा भोलेनाथ के मंदिर में देखा होगा कि महादेव की वाहन नंदी की मूर्ति सदैव शिवलिंग के आगे विराजती है | लेकिन क्या कभी आपने ये सोचा कि ऐसा क्यों है | क्या आपने कभी सोचा है कि किस प्रकार एक वृषभ शंकर जी का वाहन बन गया और क्यों शिव की मूर्ति या शिवलिंग के सामने ही विराजते हैं | इस बात की जानकारी आज हमलोग जानंगे?शिव मंदिर के अंदर क्यों नहीं बनाई जाती नंदी की मूर्ति?

शिव मंदिर के अंदर क्यों नहीं बनाई जाती नंदी की मूर्ति?

हिन्दू धर्म में वर्णित पौराणिक कथा के अनुसार एक ऋषि थे जिनका नाम शीलाद था | उन्होंने ब्रह्मचर्य अपनाया था जिसके चलते उनको अपने वंश की पित्रो की चिंता सताने लगी। उन्होंने अपनी परेशानी ऋषि शिलाद से बताई लेकिन कोई भी लाभ नहीं हुआ क्योंकि ऋषि गृहस्थ जीवन नहीं अपनाना चाहते थे | इसलिए अपने पित्रो की परेशानी को दूर करने के लिए उन्होंने संतान की चाह से देवराज इंद्र की तपस्या की।

स्वर्ग नरेश इंद्रदेव भी उनकी तपस्या से प्रसन्न हो गए तथा उनके सामने प्रकट हुए जिसके बाद उनसे उसकी इच्छा पूछने लगे | अब यह बात सामने थी की उनके पित्रो को वंश की चिंता थी| जिस कारण उन्होंने हमेशा के लिए उनकी चिंता दूर करने के उद्देश्य से जन्म तथा मृत्यु से स्वतंत्र पुत्र की कामना की, किंतु देवराज इंद्र ऐसा वरदान नहीं दे सकते थे |इसलिए उन्होंने ऋषि से कहा कि ऋषिवर  आप भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करें क्योंकि वही है जो मृत्यु से परे हैं।

नंदी की जन्म की कथा 

इंद्रदेव की बात मान कर ऋषि शिलाद ने भगवान भोले नाथ की कठोर तपस्या शुरू कर दी। भगवान भी उनकी घोर तपस्या से प्रसन्न हुए और सिलाद को वरदान दिया कि वह स्वयं पुत्र के रूप में प्रकट होंगे और इसके बाद उन्होंने नंदी के रूप में अपने एक अंश को प्रकट किया | इसलिए नंदी का जन्म शंकर जी के वरदान के स्वरूप हुआ जो मृत्यु से मुक्त अजर तथा अमर था। नंदी भी अपने पिता की तरह ही धार्मिक प्रवृत्ति का था | और हमेशा भोलेनाथ की पूजा अर्चना में लीन रहता था |

उन्होंने भी अपने पिता की तरह भोलेनाथ की कृपा प्राप्त करने के लिए उनका कठोर तप किया | जिसके फलस्वरूप भगवान प्रसन्न हुए और शिव जी ने उन्हें अपने शानिन्द में ले लिया और उन्हें संपूर्ण गांव का प्रधान बना दिया | इसके साथ ही उन्होंने नंदी को वरदान दिया कि संसार में जहां कहीं भी उनका वास होगा | वहां नंदी का वास होगा। यही कारण है  कि शिव मंदिरों में शिवजी की प्रतिमा के आगे नंदी की प्रतिमा अवश्य रखी जाती है।

शिव मंदिर के अंदर क्यों नहीं बनाई जाती नंदी की मूर्ति?

चलिए अब आपको बताते है कि नंदी की दर्शन और महत्व का अर्थ बता दें कि नंदी के नेत्र हमेशा शिवजी मैं ही स्थिर रहते हैं | तथा इन्हीं नैनों से शिव जी की छवि मन में बस्ती है इसलिए कहा जाता है कि नंदी की छवि मन में बसाए बिना शिवजी की प्राप्ति नहीं हो पाती। इसके साथ ही यदि हम नंदी का वर्णन करें तो उनके दो सिंगे विवेक और ज्ञान को अपनाने का विचार प्रस्तुत करती है, यानी मनुष्य को अपनी बुद्धि का उपयोग विवेक से करना चाहिए |

शिवलिंग की आधी परिक्रमा 

सभी ने देखा होगा कि नंदी के कंठ में एक घंटी भी बंधी रहती है जिसकी मनमोहक ध्वनि भगवान भोलेनाथ को प्रति स्थापित करती है मित्रों किंतु क्या कभी आपने ये सोचा कि आखिर शिव शंकर की शिवलिंग के आधी परिक्रमा क्यों की जाती है | बता दे शिव पुराण के साथ कई और शास्त्रों में शिवलिंग की आधी परिक्रमा करने का ही विधान बताया गया है | ऐसा करने के पीछे भी कारण है | माना जाता है कि धार्मिक रूप से शिवलिंग को शिव और शक्ति दोनों की सम्मिलित ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है |

यही कारण है कि इसमें लगातार जल चढ़ाया जाता है | ताकि शिवलिंग की गर्मताशील को समान किया जा सके | इस जल को अत्यंत पवित्र माना जाता है | और यह जल जिस मार्ग से निकलता है | उसे निर्मली या जलाधारी कहा जाता है | शिवलिंग की जल हरि को भूलकर भी लांघना नहीं चाहिए | अन्यथा इससे घोर पाप लगता है | शिवलिंग की जलहरी को ऊर्जा और शक्ति का भंडार माना गया है | यदि परिक्रमा करते हुए इसे लांघा जाए तो मनुष्य को शारीरिक परेशानियों के साथ ही शारीरिक ऊर्जा की हानि का भी सामना करना पड़ सकता है|

शिवलिंग की पूर्ण परिक्रमा से शरीर पर 5 तरह के विपरीत प्रभाव पड़ते हैं | इससे देवदत्त और धनंजय वायु की प्रवाह में रुकावट पैदा हो जाती है | इसी वजह से शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरह का कष्ट उत्पन्न होता है | शिवलिंग की अर्थ चंद्राकार प्रदक्षना ही हमे करना चाहिए शिवलिंग की परिक्रमा करने की कुछ नियम भी है | किसी भी देवता की परिक्रमा दाएं ओर से की जाती है| जबकि शिव जी की परिक्रमा बाई तरफ से की जाती है | जिसके बाद जलाधारी से वापस जाएं और लौटना होता है |तो मित्रों आपने जाना शिव प्रतिमा के सामने क्यों विराजित होते हैं| नंदी और शिव शंकर की शिवलिंग की आधी परिक्रमा ही क्यों की जाती है |

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