मित्रों हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म के अनुसार सभी धर्मों की अपनी मान्यता रीति रिवाज व नियम है। अब क्योंकि हिंदू धर्म विभिन्न वर्गों और समूहों में बांटा है उसके मुताबिक सभी की पूजा कर्मकांड और यज्ञ आदि कार्य किए जाते हैं। लेकिन आपने हिंदू धर्म में देखा होगा कि बहुत से लोग सिर पर चोटी रखते हैं अब चोटी क्यों रखी जाती है या इसका क्या महत्व है आइए जानते हैं हिंदू धर्म के अनुसार सिर पर चोटी क्यों रखी जाती है – पौराणिक कथा?
हिंदू धर्म के अनुसार सिर पर चोटी क्यों रखी जाती है – पौराणिक कथा?
जब हम किसी व्यक्ति को चोटी रखे देखते हैं तो उसे पूरा कट्टर सोच वाला मान लेते हैं, लेकिन यह बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि चोटी रखने का सुश्रुत संहिता में कारण, महत्व एवं एक पूरा नियम है। यहां चोटी के कारण एवं महत्व और उसके वैज्ञानिक वजह भी बताई गई है। इस संहिता में यह भी उल्लेख है एक चोटी सिर पर कहां और कितनी रखनी चाहिए।
आपको बता दें कि सिर में सहस्रार चक्र की जगह पर चोटी रखी जाती है यानी सिर के सभी बालों को काटकर बीचो-बीच के स्थान के बाल को छोड़ दिया जाता है क्योंकि इस जगह के ठीक दो से 3 इंच नीचे आत्मा का वास होता है। भौतिक विज्ञान के अनुसार यह मस्तिष्क का केंद्र है विज्ञान के मुताबिक ये शरीर के अंगों बुद्धि और मन को नियंत्रित करने की जगह भी है।
सिर पर चोटी रखने के महत्व
प्राचीन काल में ऋषि मुनियों ने सोच-समझकर चोटी रखने की प्रथा को शुरू किया था सिर के बीचोबीच चोटी रखने से मस्तिष्क का संतुलन बना रहता है। चोटी रखने से इस सहस्रार चक्र को जागृत करने और शरीर व मन पर काबू रखने में मदद मिलती है। इतना ही नहीं शास्त्रों में बताया गया है कि चोटी की लंबाई और आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होनी आवश्यक मानी गई है, जबकि आज के दौर में इसका ध्यान नहीं रखा जाता।
प्राचीन काल में किसी भी चोटी काट देना मृत्युदंड के समान माना जाता है। वहीं मिशन विचार क्रांती शांतिकुंज के मुताबिक जिस जगह चोटी रखने की परंपरा है वहां पर सिर के बीचो-बीच सुषुम्ना नाड़ी की जगह होती है और विज्ञान भी यह सिद्ध कर चुका है कि सुषुम्ना नाड़ी मनुष्य के हर तरह के विकास में महत्वपूर्ण किरदार निभाती है। चोटी सुषुम्ना नाड़ी को नुकसान दायक प्रभाव से बचाती है और ब्रह्मांड से आने वाले सकारात्मक तथा आध्यात्मिक विचारों को ग्रहण भी करती है।
अब आपको बताते हैं चोटी रखने के ज्योतिषी लाभ।जिस किसी के भी कुंडली में राहु ख़राब असर दे रहा है तो उसे माथे पर तिलक और सिर पर चोटी रखने की सलाह दी जाती है, किन्तु ऐसा नहीं है चोटी रखना हानिकारक भी हो सकता है।
चोटी धारी और जटाधारी में अंतर क्या है
प्राचीन काल में जो कर्मकांड, संस्कार आदि को संपन्न कराता था उसे चोटी धारी कहते थे। उसके सिर पर केवल चोटी होती थी और जो धर्म शिक्षा और दीक्षा का कार्य करता था और जटाधारी होता था। परंतु कालांतर में समाज के बंटवारे बदल गए।
सिर पर चोटी रखने से जुड़े कुछ बातें।
वर्तमान दौर की बात करें तो आज फैशन के चलते भी कई पुरुष महिलाओं की तरह लंबी चोटी रखते हैं और यह बिल्कुल अनुचित है। शिखा बंधन और विधान को जाने या उनका पालन किए बगैर चोटी रखना सही ही नही है। हालांकि शोध के अनुसार दोनों के बीच बीच में चोटी कुछ विशेष परिस्थिति में रखना घातक सिद्ध हो सकता है, क्योंकि हमारे सिर और पैर की जय उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव का असर होता है, इसीलिए तो दक्षिण में पैर करके नहीं सोते।
क्योंकि जिस तरह से दक्षिण से उत्तर की तरफ उर्जा का प्रवाह जारी है उसी तरह हमारे सिर से पैर की तरह ऊर्जा प्रभावित होती है इस सिद्धि को समझ कर चोटी रखना चाहिए वरना यह कभी भी घातक सिद्ध हो सकता है।इसलिए कहा जाता है कि सिर पर चोटी रखने की सही जगह उचित लंबाई और कुछ समझ के रखे।
और हां चोटी में गठान बांधी जाती है और कब खोली जाती है यह भी पहले समझना महत्वपूर्ण है आपको बता दें कि स्नान दान जप हवन आदि करते समय शिखा बंद होनी चाहिए वही भोजन, लघु शंका, शंका, मेथुन वह मुड़ काटते समय चोटी खोल देनी चाहिए घने बालों में शिखा रखना चाहिए या नहीं यह भी किसी से पूछ कर रहे तो कहा जाता है कि चोटी रखने को फेशन न समझे। तो मित्रों आज आपने जाना कि हिन्दू धर्म में चोटी क्यों रखी जाती है एवं उनके महत्व के बारे में। आपको यह जानकारी कैसी लगी एवं चोटी रखने में बारे और कोई राय हो तो हमें कमेंट में जरूर बताये।
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