हिंदू धर्म में भंडारे की शुरुआत कब और कैसे हुई?

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मित्रों आमतौर पर लोग पूजा पाठ के शुभ अवसर जागरण के बाद भोज या भंडारे का आयोजन करते हैं, ऐसा करने से उसे धार्मिक कथा का पुण्य मिल जाता है। समय-समय पर अलग-अलग स्थानों पर भंडारों का प्रबंध किया जाता है और भारत में बहुत से ऐसे मंदिर भी हैं जहां प्रतिदिन इस तरह के भंडारों का आयोजन किया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह भंडारा क्यों करवाया जाता है।हिंदू धर्म में भंडारे की शुरुआत कब और कैसे हुई?

लोग धार्मिक कार्यक्रम के बाद भंडारा करते हैं ताकि उन्हें पुण्य की प्राप्ति हो और मरने के बाद स्वर्ग मिले। वैसे भी धर्म कोई भी हो दान को सबसे ऊपर माना गया है। माना जाता है कि दान परोपकार भी होता है और इससे आपके कुंडली के ग्रह भी शांत रहते हैं। भंडारे की खासियत है कि यहां पर लोग जात-पात, अमीर-गरीब, ऊंच-नीच से ऊपर उठकर एक साथ भोजन करते हैं।

हिंदू धर्म में भंडारे की शुरुआत कब और कैसे हुई?

भंडारे में कोई भेदभाव नहीं होता है लेकिन कई बार हमारे मन में यह सवाल उठता है कि भंडारा कब शुरू हुआ होगा और इसके पीछे की कहानी क्या है। तो दोस्तों आपको बता दें कि पौराणिक कथाओं के अनुसार पद्मश्री पुराण के सृष्टि खंड अध्याय के कथाओं में एक कथा में बताया गया है कि जब विदर्भ के राजा श्री अपने कठोर तप के कारण ब्रह्मलोक में गए तो वहां भोजन का एक कण भी नहीं मिल पाया था। जिसके बाद विदर्भ के राजा ब्रह्मा जी से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि तुमने जीवन में कभी भी अन्य दान नहीं किया इसीलिए तुम्हें ब्रह्मलोक में अन्न नहीं मिला।

एक और प्रचलित कथा के अनुसार भगवान शिव भिक्षुक के रूप में धरती पर भ्रमण कर रहे थे तभी भोलेनाथ ने एक महिला से दान मांगा और उन्होंने महिला से कहा माई मैं बहुत भूखा हूं कुछ खाने को दे दीजिए। महिला ने चीढ़ते हुए भगवान शिव से कहा वह अभी दान नहीं कर सकते क्योंकि वह उपले बना रही है।

जब भगवान शिव ने उस महिला से दान के लिए बार-बार जिद की तो महिला ने क्रोध में आकर भगवान शिव को दान में गोबर के उपले दे दिए, फिर कुछ दिन के बाद उस महिला की मौत हो जाती है।मृत्यु के पश्चात जब महिला परलोक में पहुंची तो वहां उसे भोजन के जगह गोबर के उपले खाने को मिले भगवान शिव को अन्न दान ना करने से महिला को मृत्यु के बाद ऐसा भोगने को मिला।

हिंदू धर्म में भंडारे क्यों कराया जाता है 

मित्रों वैदिक धर्म मैं ब्राह्मण और गरीबों को दान देना विधान माना गया है दान के कई रूप होते हैं जैसे अन्न दान, वस्त्र दान, विद्या दान,  अभय दान या धन दान। इसमें से किसी भी प्रदान करने से आपको पुण्य की प्राप्ति होती है और परलोक।आपको बता दे की दान मैं सबसे बड़ा दान अन्न को माना जाता है जबकि लोग सबसे ज्यादा भंडारा करवाते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा अन्न दान किया जा सके।

भारत में तो वैसे तो कई धार्मिक स्थल जहां पर है 24 घंटे भंडारा चलता है। भंडारे के लिए हर वर्ग के जाति और संप्रदाय के लोग एक साथ नीचे बैठकर भोजन करते हैं भंडारे में सभी लोग अपने सामर्थ्य के अनुसार अन्य दान करते हैं और भंडारे में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता है।

आपको बता दें कि पौराणिक काल में जब कोई राजा या महाराजा कोई यज्ञ अनुष्ठान का आयोजन करवाते थे तब बाद में वह अपनी प्रजा को बुलाते थे और उन्हें अन्न और वस्त्र दान किया करते थे। लेकिन समय के बदलाव के साथ अन्य की परंपरा भंडारे में परिवर्तित हो गए।

 भंडारे का प्रकार 

मित्रों आपको बता दें कि भंडारे में बना हुआ खाना कई प्रकार का होता है अगर भंडारा किसी देवी-देवताओं को प्रसन्न करें या उसे भोग लगाकर किया जा रहा हो तो उसे खाने से आपको भगवान की कृपा मिलेगी इसके साथ ही उस देवी की कृपा मिलेगी जिसके साथ भोग के साथ आपको प्रसाद रूपी भंडारा खाने को मिला।

पर कभी-कभी ऐसे भंडारे भी किए जाते हैं जिससे जब लोग अपने जीवन की बड़ी विपदा, परेशानी परिवार में किसी की बीमारी या किसी की मृत्यु के बदले में कराया जाता हो। आपको बता दें कि इस तरह के भंडारे को खाना विशेष रुप से नुकसानदायक होता है।

जो लोग अपने जीवन के कष्ट को उतारने के लिए किसी तांत्रिक द्वारा कहे जाने पर भंडारा करते हैं तो कृपया आप ऐसे भंडारे में ना जाएं यह सिर्फ आपकी उर्जा को हीन करता है यह आपको किसी भी तरह का शारीरिक मानसिक किया अध्यात्मिक सुविधा नहीं देता तो मित्रों आपने देखा कि क्यों भंडारे कराना चाहिए और इससे क्या फायदे है

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